श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 49
सूत्र -35
सूत्र -35
वर्तमान परिपेक्ष में विषय संरक्षण की परिभाषा। Modern life style की गलत धारणा। रौद्र ध्यान, पाप का कारण, यह ज्ञान हमें रोकेगा पाप बंध से। रौद्र ध्यान में होती है, अशुभ लेश्याएँ। पाप-पुण्य के बंध में भावों का महत्व। आदर्श वह नहीं हो सकता, जिसकी हो अशुभ लेश्याएँ। चारों प्रकार के अशुभ भाव में आनन्द, ही रौद्र ध्यान। अन्दर-बाहर से होना साफ सुथरा, असम्भव सा। रौद्र ध्यान से बचना, बनेगा शुभ लेश्याओं का कारण। अच्छे भावों से किया धर्म बचाएगा अशुभ, आर्त और रौद्र ध्यान से।
हिंसानृत-स्तेय-विषय-संरक्षणेभ्यो रौद्र-मविरत-देशविरतयोः॥9.35॥
10, Jan 2025
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कौनसी लेश्या का रंग पीला बताया गया है?
कृष्ण लेश्या
नील लेश्या
कापोत लेश्या
पीत लेश्या*
रौद्र ध्यान के प्रकरण में हमने जाना
हमें जो चीज़ें अच्छी लगती हैं,
उन्हें इक्कठा करना विषय-संरक्षण रौद्र ध्यान होता है।
Mobile में apps download करके save रखना,
हम जो चाहें वह click करते ही open हो जाए,
यह विषय-संरक्षण का ही modern रूप है।
modern lifestyle बनाने में हम
तरह-तरह की विलासताओं में, परिग्रह में,
हिंसा, झूठ और चोरी में, खुश होते हैं।
लेकिन यह lifestyle सिर्फ पाप बन्ध कराता है।
जब हमारा mood disturb होगा तो हमें संभालने वाला कोई नहीं मिलेगा।
रौद्र ध्यान में प्रवृत्ति वही बंद कर सकता है जो पाप से डरता है।
गृहस्थों को ऐसे काम करने पड़ते हैं
पर हमें जागरूकता रहे कि यह गलत है।
हम इसे पाप ही समझें
और इसमें खुश न हों
यह भाव भी हमें बहुत बड़े पाप से रोक लेगा।
जो रौद्र ध्यान में लिप्त हो जाते हैं,
उन्हें कभी पछतावा नहीं होता।
वे बस अम्बानी, टाटा की तरह अरबपति बनने की दौड़ में लगे रहकर
रौद्र ध्यान से पाप कमाते हैं
और अशुभ लेश्याओं के कारण
नरक गति का बन्ध करते हैं।
लेश्या अर्थात् हमारे भावों का रंग
भाव हमारे विचारों से चलते हैं ।
विचार auspicious और unauspicious - दोनों होते हैं।
रौद्र ध्यान में हमारे परिणाम अशुभ होने से
अशुभ लेश्याएँ होती हैं
जिस कारण- बाहर से सब सुन्दर, साफ़-सुथरा, और चमकदार दिखते हुए भी
हम भीतर से काले, नीले या कापोत यानि grey color के होते हैं।
बाहर की luxury और जलवा देख कर बच्चे ऐसा ही बनना चाहते हैं।
लेकिन हमें भीतर के परिणाम देखने चाहिए
क्योंकि महत्व भावों का होता है।
आज corporate level के बड़े-बड़े businessman,
अपना standard बनाने में खूब कर्जा ले लेते हैं
और काले भावों से इतने कर्म बाँध लेते हैं कि
उनका सारा पुण्य नष्ट हो जाता है
और फिर banks के या
supreme court के order आने पर मुँह छिपाने की जगह ढूँढते हैं
अधिकतर लोग पाप की कमाई से ही बड़ा आदमी बनते हैं।
किसी से अपनी पोल खुल जाने का डर हो
तो अपना business बचाने के लिए
उसे भी अपने रास्ते से हटाने से नहीं डरते।
इस प्रकार हिंसा, झूठ, चोरी सभी में आनन्द मनाते हैं
और अशुभ भाव करते हैं।
ऐसे बहुत कम लोग होते हैं
जो इन चीज़ों में आनन्द ना लें और
बाहर से भी उज्जवल और भीतर से भी साफ़-सुथरे रहें।
इन अशुभ लेश्याओं के भावों से बचने पर ही हम
रौद्र ध्यान के भावों से बच पाएँगे
और तभी धर्म ध्यान संभव होगा।
धर्म ध्यान से लेश्याएँ शुभ हो जाती हैं।
शुभ लेश्याएँ तीन होती हैं।
पीत यानि पीला,
पद्म मतलब लाल और
शुक्ल मतलब सफेद
ये अच्छे भावों के रंग होते हैं।
शुभ चीज़ें इन्ही रंगों में होती हैं
जैसे- मंदिर में लोग पीले या सफ़ेद वस्त्रों में ही
या कहीं-कहीं लाल वस्त्रों में पूजा करते हैं
काले वस्त्रों में कोई नहीं करता।
हमें अपने भावों को संभालना होगा।
अशुभ लेश्या के भावों को छोड़कर,
आर्त और रौद्र ध्यान को छोड़कर
जब हम शुभ लेश्या के भावों में आएँगे
तभी धर्म ध्यान कर पाएँगे।
धर्म का मतलब दिखावा नहीं होता,
आडंबर नहीं होता।
धर्म अच्छे भावों के लिए ही किया जाता है।
जब धर्म हमारे भावों में आता है,
तो हमारे परिणामों को उज्जवल बनाता है।
ज्ञान नहीं होने से
हम ज्यादा तवज्जो उसे देते हैं जो बाहर से अच्छा दिखता है
उसे नहीं जो बाहर से तो गरीब हो पर भीतर से उजला हो।
दुनिया का ज्ञान हमें बाहर की बातें बताता है
पर तत्त्वार्थ सूत्र का ज्ञान हमें भीतर तक ले जाता है।