श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 35
सूत्र - 11
सूत्र - 11
आतप और उद्योत नामकर्म में अन्तर। बंध तत्त्व में नामकर्म के भेद- उच्छवास नामकर्म। एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय जीवों में उच्छवास नामकर्म के कार्य की विशेषता। उच्छवास नामकर्म की सही परिभाषा, पर्याप्ति की अपेक्षा से भी। शरीर बनाये रखता है, उच्छवास नामकर्म। बंध तत्त्व में नामकर्म के भेद- विहायोगति नामकर्म। विहायोगति और आकाश के अवगाहनत्व गुण का परस्पर में संबंध।
गति-जाति-शरीराङ्गोपाङ्ग-निर्माण-बंधन-संघात-संस्थान-संहनन-स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णानुपूर्व्यगुरु- लघूपघात-परघाता-तपो-द्योतोच्छ्वास-विहायोग-तयः प्रत्येक-शरीर-त्रस-सुभग-सुस्वर-शुभ- सूक्ष्मपर्याप्ति-स्थिरादेय-यशःकीर्ति-सेतराणि तीर्थकरत्वं च॥8.11॥
18, Jun 2024
मीनाक्षी दोशी अहमदाबाद
अहमदाबाद
WINNER-1
Rachna jain
Harpalpur
WINNER-2
ब्रह्मचारिणी सौम्या जैन
शाहगढ़
WINNER-3
श्वासोच्छ्वास निम्न में से कौनसा प्राण है?
इन्द्रिय प्राण
बल प्राण
आयु प्राण
आना प्राण*
उद्योत का मतलब होता है चम-चमाने, जगमगाने वाला प्रकाश
उद्योत नामकर्म के उदय से कुछ जीवों के शरीरों में
विशेष रूप से तिर्यंचों में
एक विशेष light देखी जाती है
जैसे जुगनू आदि में
चन्द्रमा का प्रकाश भी
उसके विमान की outer surface पर उत्पन्न हो रहे
उद्योत नामकर्म के उदय वाले जीवों से होता है
उद्योत का प्रकाश आँखों को अच्छा लगता है
लेकिन आतप के प्रकाश की चकमकाहट आँखें देख नहीं पाती
हमने अग्नि की उष्णता और आतप नामकर्म के जीवों की उष्णता के अन्तर को भी जाना
अग्नि की उत्पत्ति का मूल स्थान और उसकी किरणें तथा लौ दोनों ही गरम होते हैं
लेकिन आतप में मूल भाग ठण्डा होता है
और निकलने वाली किरणें गरम होती हैं
उद्योत में मूल स्थान और rays दोनों ही ठण्डी होती हैं
अतः सूर्य एक तपा हुआ बहुत बड़ा अग्नि का गोला नहीं है
सूर्य विमान में देवताओं के रहने में भी कोई विरोध नहीं है क्योंकि
देव अन्दर रहते हैं और अग्नि का प्रभाव बाहर होता है
दूसरा आतप के कारण विमान का मूल भाग ठण्डा रहता है
उसमें भट्टी जैसी गरमी नहीं होती
उच्छवास नामकर्म से श्वासोच्छवास यानि श्वास लेने और श्वास छोड़ने की प्रक्रिया चलती है
विचारणीय है कि श्वास लेने और छोड़ने का काम सिर्फ उन जीवों में नहीं होता
जिनमें नाक यानि घ्राणेन्द्रिय हो
यह सभी जीवों में होता है
द्रव्य संग्रह जी के अनुसार चार प्राण सभी जीवों में होते हैं
इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छवास
बिना नाक, फेफड़े और breathing process के भी
एक इन्द्रिय आदि जीवों में श्वासोच्छवास की प्रक्रिया चलती है
यह गला, फेफड़े आदि किसी अंग विशेष से नहीं
बल्कि प्राण रूप में पूरे शरीर के अन्दर चलती है
इस प्रक्रिया में जीव अपने शरीर को जीवित रखने के लिए
बाहर वातावरण से वायु का ग्रहण
और शरीर से इसका निष्कासन करते हैं
श्वासोच्छवास बहुत स्थूल चीज है
कभी-कभी नाक से श्वास बन्द होने पर भी यह भीतर चलती रहती है
इसलिए हमें pulse या नाड़ी को ही प्राण और श्वासोच्छवास के रूप में जानना चाहिए
अच्छे वैद्य भी मृत्यु के समय इसे ही देखते हैं
यह body में हाथ, पैर, heart आदि में कहीं भी हो सकती है
श्वासोच्छवास नामकर्म के उदय के कारण श्वासोच्छवास पर्याप्ति पूर्ण होती है
जिसके कारण पानापान अर्थात् श्वासोच्छवास प्राण बनता है
और जीव के अन्दर पूरा जीवन चलता है
श्वासोच्छवास प्रक्रिया को हम एक beating जैसे heart beating मान सकते हैं
इसके बन्द होने पर आदमी को silent attack पड़ जाता है
attack में तो आदमी को कुछ पता चलता है
चक्कर आदि आते हैं
लेकिन silent attack में आयु कर्म पूरा होते ही
श्वासोच्छवास प्राणों के रुक जाने पर
heart beating बन्द हो जाती है
विहायोगति नामकर्म के माध्यम से विहायस् यानि आकाश में गति अर्थात् गमन होता है
इसके कारण जीव अपने शरीर को लेकर गमन करते हैं
जीव इसी नामकर्म के कारण से चलता है
पक्षी आदि आकाश में उड़ने वाले खगचर प्राणी भी
कदम उठा कर चलने वाले जीव भी
और सरीसृप जाति के घिसटने वाले जीव भी
चूँकि आकाश अवगाहन देता है
एक स्थान से चलकर, उड़कर या घिसटकर दूसरे स्थान पर अवगाहन लेना भी
विहायोगति से ही होता है
हमें लगता है कि हम पृथ्वी पर चलते हैं
हम जब भी step-by-step चलते हैं तो
एक पैर नीचे जमा कर,
दूसरा पैर उठाकर आकाश में आगे बढाते हैं
फिर उसे आगे रखकर
पीछे वाला पैर उठाते हैं
वस्तुतः जमीन का आलम्बन लेकर, हमारी गति तो आकाश में ही होती है