श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 21

सूत्र - 8

Description

द्रव्य के विशिष्ट-गुणधर्म को लक्षण कहते हैं l जीव की पहचान उसके लक्षण से होगी l उपयोग का अर्थ ? वस्तु को जानने का जो व्यापार है वह उपयोग है l संसार के सभी जीवों का उपयोग एक जैसा नहीं होता l आत्मभूत और अनात्मभूत लक्षण का अर्थ l ऐसे ही जीवों के लिए बाहरी लक्षण आत्मभूत भी है और अनात्मभूत भी है l

Sutra

उपयोगो लक्षणं।lll

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WINNERS

Day 21

12th May, 2022

रश्मि जैन

फिरोजाबाद

WIINNER- 1

Mani Jain

Bina

WINNER-2

Renu jain

Jaipur

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

निम्न में से अनात्मभूत अन्तरंग हेतु कौनसा है?

  1. मन की वर्गणा *

  2. ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम

  3. दर्शनावरण कर्म का क्षयोपशम

  4. वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपशम

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. हमने सूत्र 8 में जीव का लक्षण समझा

  2. द्रव्य के विशिष्ट-गुणधर्म या special quality जिससे एक वस्तु को बहुत सारी वस्तुओं से पृथक कर सकें लक्षण कहते हैं

  1. संसार-अवस्था में जीव कर्म के साथ, पुद्गल-शरीर के साथ मिला हुआ है, उसकी पहचान करने के जीव का लक्षण जानना जरूरी है

    • अजीव-पदार्थ तो हमें प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं

    • उनके बीच में जीव को लक्षण से पहचानते हैं


  1. आत्मा का असाधारण लक्षण ऐसा होना चाहिए जो अन्य द्रव्यों में न पाया जाए

  2. साधारण लक्षण सभी द्रव्यों में पाए जाने वाले गुणधर्म होते हैं

  1. हमने जाना आत्मा का लक्षण है "उपयोगो लक्षणं"

    • इसके ही माध्यम से हम जीव को अन्य दूसरे जीवों से अलग कर सकते हैं

    • और कर्म आदि से भी अलग कर सकते हैं

    • जीव कभी भी अपने उपयोग रूपी लक्षण को नहीं छोड़ता


  1. यहाँ उपयोग का मतलब किताब के, वस्त्र के, सोने-चांदी के उपयोग से नहीं है

  2. उपयोग का अर्थ है जो आत्मा के साथ निरन्तर रहने वाला उसका चैतन्य-परिणाम

    • जिसका वह हमेशा अनुकरण करता है

    • उसकी हमेशा धारण करता है

    • और कभी छोड़ता नहीं है


  1. उपयोग को चैतन्य का अनुविधायी परिणाम भी कहते है

  1. सिर्फ पंचेन्द्रिय-जीव को जीव समझना बहुत ही व्यवहारिक स्थूल दृष्टि है

  2. हमने समझा कि जीव सिद्धान्त समझने से हम अनेक तरह के जीवों की पर्यायों का ज्ञान कर पाएंगे और जीव को जान पायेंगे

  1. चैतन्य-स्वभाव जीव पारिणामिक-भाव है

    • यह हर जीव में पाया जाने वाला, अनुभव करने वाला एक सामान्य भाव है


  1. जब यह वस्तुओं को जानने में काम करता है उसे जानने का व्यापार कहते हैं

    • यहाँ व्यापार का अर्थ व्यवसाय नहीं बल्कि क्रिया, प्रक्रिया, आदान-प्रदान

    • जैसे जब हमने आँख खोलकर किसी वस्तु को देखा तो यह चक्षु-इन्द्रिय का व्यापार हो गया


  1. आत्मा के अन्दर निरन्तर यह जानने-देखने का व्यापार चलता है उसे ही उपयोग कहते हैं

  1. संसार के सभी जीवों का उपयोग अलग अलग होता हैं

    • और यह बाह्य और अभ्यंतर हेतुओं के सन्निधान पर उत्पन्न होता है

    • जिसके पास जितनी अन्तरंग और बहिरंग सामग्री है, उसी के अनुसार उपयोग की क्रिया होगी


  1. लक्षण हमेशा दो प्रकार के होते हैं आत्मभूत और अनात्मभूत

  2. आत्मभूत लक्षण वस्तु में मिले होते हैं, उसी स्वभाव वाले होते हैं

    • जैसे अग्नि की उष्णता; इसमें अग्नि और उष्णता दोनों अलग-अलग नहीं है


  1. अनात्मभूत लक्षण वस्तु के अन्दर नहीं समाये होते और ऊपर से उसने ले किये होते हैं

    • संयोग के कारण से वे उसकी पहचान बन गए होते हैं

    • जैसे चश्मे वाला कहकर किसी की पहचान करना


  1. किसी नारियल को अगर रंग से रंग दें तो यह इसका अनात्मभूत लक्षण है

  2. और इसके अन्दर की सफेद गिरी उसका आत्मभूत लक्षण है