श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 24
सूत्र - 26
सूत्र - 26
मिथ्या उपदेश। ‘रहोभ्याख्यान’ यह। ‘कूटलेख क्रिया’। न्यासापहार। न्यास का अपहार। ‘साकारमंत्रभेदा। मिथ्या उपदेश। कूट लेख क्रिया। न्यास का अपहार। न्यासापहर। साकारमंत्र।
मिथ्योपदेश-रहोभ्याख्यान-कूटलेखक्रियान्यासापहार-साकारमन्त्र-भेदाः।।7.26।।
15th, Jan 2024
Poonam Jain
Delhi
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Shashi Jain
Babina Cantt
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Anjana Jain
Delhi
WINNER-3
धरोहर का हरण कर लेना क्या होता है?
रहोभ्याख्यान
कूटलेख क्रिया
न्यासापहार*
साकारमंत्र भेद
सूत्र छब्बीस में हमने सत्य अणुव्रत के पाँच अतिचारों को जाना
पहला अतिचार मिथ्योपदेश है
अर्थात् ऐसे उपदेश करना जिनको सुनकर लोग सही मार्ग छोड़कर, झूठे मार्ग पर चलने लगें
जो वीडियो, प्रवचन, दूसरों के उपदेश हमें मोबाइल पर अच्छे लगते हैं
उनको बिना सोचे समझे दूसरे को forward करना
जिससे अन्य व्यक्ति सही मार्ग छोड़कर झूठे मार्ग से जुड़ जाएँ
यही आज-कल practical मिथ्योपदेश दोष है
3. मुनि श्री ने समझाया कि
आपने तो बस जो आपको अच्छा लगा
उसे दूसरे को दे दिया
पर इसमें देखने-सुनने वाले की श्रद्धा उस प्रवचनकर्ता के प्रति बनती है
न कि सम्यक् मार्ग के प्रति
4. आज कल घर-बार की लड़ाई वाली बातें, चुटकुलों आदि की बातें अच्छी लगती हैं
जो हमें धर्म के मार्ग पर नहीं ले जाएंगी
तत्त्वज्ञान के अलावा, कुछ भी हमारे लिए अच्छा हो करके भी अच्छा नहीं होता
इसलिए हमें उनसे बचना चाहिए
और तत्त्व निश्चय के लिए अपना interest सम्यक् मार्ग पर लगाना चाहिए
जो चीजें दूसरों के सामने बताने, दिखाने योग्य नहीं होतीं
उन्हें आगे बढ़ाने, बताने की मानसिकता रखना रहोभ्याख्यान नाम का सत्याणुव्रत में दोष है
mobile में आयी किसी की video, गुप्त बातें आदि आगे बढ़ाना भी इसी में आता है
तीसरे दोष कूटलेख क्रिया में किसी को विश्वास में लेकर झूठे दस्तावेज पर sign कराकर
बाद में उसका गलत उपयोग करते हैं
business में कपट के माध्यम से, किसी दूसरे को फंसा देना
company में fraud करना आदि
सब चलता रहता है
सत्याणुव्रती इससे बचता है
वह इन चीजों को business का stunt नहीं मानता
चौथे दोष न्यासापहार में न्यास यानि धरोहर का अपहार यानि चोरी होती है
किसी की रखी हुई धरोहर को लिखा-पढ़ी में गड़बड़ कर,
ब्याज आदि बढ़ा कर,
झूठ बोल कर
उसका अपहरण कर लेते हैं
अंतिम दोष साकार मंत्र भेद में बिना झूठ बोले
अपनी चेष्टा से ऐसा इंगित करते हैं जिससे सामने वाला उसमें फंस जाये
किसी को ऐसी मंत्रणा कर देना कि उसका बनता काम बिगड़ जाए
जैसे दो व्यक्तिओं के बीच हो रहे सौदे में कुछ negative बोलने से
अगर किसी के अंदर भी वह बात fit हो गई
तो सौदा cancel हो जाएगा
यानि उनको झूठ के रास्ते से ले जाकर नुकसान पहुँचाना
मुनि श्री ने समझाया कि अहिंसा की तरह सत्य/असत्य भी व्यापक है
अक्सर लोग समझते हैं कि वे कभी झूठ नहीं बोलते
लेकिन असत्य केवल वचनों से ही नहीं होता
इसकी प्रवृत्ति मन और काय से भी होती है
बोलना तो मिथ्योपदेश में ही आ गया
कूटलेख क्रिया का छल-कपट भी असत्य है
न्यासापहार में, agreement में गड़बड़ी करने में, असत्य और चोरी दोनों छिपे हैं
असत्य ज्यादा है क्योंकि पहले झूठ का भाव ही उसे चोरी की ओर ले जाता है
साकारमंत्र भेद भी असत्य में आता है
ये सब चीजें मन-वचन-काय के माध्यम से असत्य की कोटी में आ जाती हैं
यदि हम किसी भी जीव को दुःख न पहुँचाने के अहिंसा के मूल का ध्यान रखें
तो हमें असत्य या अचौर्य को अलग से समझने की जरूरत ही नहीं है
लेकिन इसके अभाव में हमें सब चीजों को अलग-अलग समझना पड़ता है
झूठ बोलने से अगर सामने वाला गलत मार्ग पर लग गया
तो यह भी बहुत बड़ी हिंसा है
उसकी श्रद्धा की हिंसा - जो उसका जन्म-जन्म का संस्कार बनेगी
वह जीवित हो सकता है, हमसे खुश भी हो सकता है
मगर हमने उसके श्रद्धा गुण, चैतन्य भाव को मार दिया
असत्य को गहराई से समझकर, मन-वचन-काया से इससे बचकर
ही हम अहिंसा का पूरी तरह से पालन कर सकते हैं