श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 32

सूत्र - 14,15,16,17,18

Description

चक्षु इन्द्रिय का आकार मसूर का दाने जैसा होता है l बाह्य निर्वृत्ति पुद्गलों की रचना है l निर्वृत्ति की रक्षा करने के लिए यह उपकरण बनते हैं l Doctor की needle निर्वृत्ति को नहीं छू सकेगी l जौ नाली की तरह यह कर्ण इन्द्रिय की रचना होती है l घ्राण इन्द्रिय की निर्वृत्ति उपकरण मुक्तक पुष्प के समान है l रसना इन्द्रिय, खुरपा के आकार की होती है l निर्वृति और उपकरण में भावों का कुछ काम नहीं है l भाव इन्द्रिय के भेद l द्रव्य मन की रचना अष्ट पंखुड़ी वाले कमल के रूप में है l भाव मन जो है वह ज्ञानात्मक है l द्रव्य मन के ऊपर कोई उपकरण नहीं होता l

Sutra

'द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः'।l१४ll

'पंचेन्द्रियाणि'।l१५।l

'द्विन्द्रियाणि' इन्द्रियाँ' ॥१६

'निर्वृत्त्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम्'।l१७।l

'लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम्'।l१८।l

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WINNERS

Day 32

9th June, 2022

Sarala

Mumbai

WIINNER- 1

Kumkum Jain

Shahdara Delhi

WINNER-2

विमला जैन नायक

टीकमगढ़ मध्य प्रदेश

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

श्रोतृ इन्द्रिय का आकार कैसा है?

  1. मसूर के दाने की तरह

  2. जौ की नाली की तरह *

  3. अति मुक्तक पुष्प की तरह

  4. खुरपी की तरह

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. सूत्र 17 में हमने समझा कि निर्वृत्ति और उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहलाती हैं

  2. जो पुद्गल द्रव्य की संरचना बनती हुई दिखाई देती हैं

  3. अभ्यन्तर और बाह्य के प्रभेद से यह रचना भी चार प्रकार की हो जाती है

    • अभ्यन्तर निर्वृत्ति

    • बाह्य निर्वृत्ति

    • अभ्यन्तर उपकरण और

    • बाह्य उपकरण


  1. निर्वृत्ति मतलब आत्मा से‌ शुरु हुई भीतरी रचना

  2. अभ्यन्तर निर्वृत्ति में आत्मा के शुद्ध प्रदेश उस इन्द्रिय के आकार के रूप में इकट्ठे हो जाते हैं और इन्द्रिय के आकार की एक रचना बन जाती है

  3. वहीं बाह्य निर्वृत्ति पुद्गलों की रचना है

  4. जैसे चक्षु इन्द्रिय की अभ्यन्तर निर्वृत्ति में आत्मा के असंख्यात प्रदेश में असंख्यात्वाँ भाग मतलब उत्सेधांगुल का असंख्यात्व भाग मसूर के दाने के आकर में ढल जाते हैं

  5. और बाह्य निर्वृत्ति में उन प्रदेशों पर कर्म के उदय से पुद्गलों की रचना उसी आकार में हो जाती है

  6. उपकरण निर्वृत्ति की रक्षा करते हैं

  7. आँख में retina, काली गोलक आदि सब अभ्यन्तर उपकरण हैं

  8. वहीं हमारी पलकें बाह्य उपकरण हैं जो धूल आदि से इसकी रक्षा करती हैं

  9. डॉक्टर की needle सिर्फ उपकरण तक पहुँचती है निर्वृति तक नहीं

  10. कर्ण इन्द्रिय की रचना जौ नाली की तरह होती है

  11. इसमें कान का पर्दा अभ्यन्तर उपकरण है और उसके ऊपर सब बाहरी उपकरण

  12. चक्षु इन्द्रिय की रचना मसूर के दाने के बराबर होती है

  13. घ्राण इन्द्रिय की रचना मुक्तक पुष्प जैसे तिल का फूल के समान होती है

  14. रसना इन्द्रिय जिह्वा के समान खुरपा के आकार की होती है

  15. जीभ इसका बाह्य उपकरण है

  16. स्पर्शन इन्द्रिय का कोई एक आकार नियत नहीं है

  17. यह शरीर की रचना के अनुसार उसी आकार की होगी

  18. सूत्र 18 में हमें जाना कि भाव इन्द्रिय लब्धि रूप और उपयोग रूप होती हैं

  19. लब्धि मतलब लाभ

  20. इसमें जीव के पास जितनी इन्द्रिय होंगी उतनी ही इन्द्रिय सम्बन्धी मतिज्ञान आदि का क्षयोपशम होगा

  21. उस लब्धि या कर्मों के क्षयोपशम के अनुसार आत्मा का जो उपयोग है वह उपयोग रूप भाव इन्द्रिय हो गयी

  22. यह ज्ञानात्मक होती है

  23. इसी क्षयोपशम के अनुसार ही हम इन द्रव्य इन्द्रियों से जानते हैं

  24. द्रव्य मन अष्ट पंखुड़ी वाले कमल के रूप में होता है

  25. इसकी रचना एक स्थान पर होते हुए भी जो भाव मन की कोई एक नियत स्थिति नहीं है

  26. भाव मन ज्ञानात्मक है

  27. द्रव्य मन के ऊपर कोई उपकरण नहीं होता

  28. मन को अनिंद्रिय मतलब ईषत् इन्द्रिय भी कहते हैं

    • क्योंकि यह थोड़ा इन्द्रिय जैसा है लेकिन पूर्णतः नहीं

    • हमें इसका अन्तरंग दिखाई नहीं देता

    • और न ही परिणाम पकड़ में आते हैं