श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 12
सूत्र - 08,09,10,11
सूत्र - 08,09,10,11
उपचार कथन पद्धति। जम्बूद्वीप का आकार नारंगी की तरह गोल नहीं है। जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र हैं। जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र का स्थान एवं आकार। जम्बूद्वीप के क्षेत्रों के नाम। भरतक्षेत्र के नाम से भारत का नाम भारत पड़ा। क्षेत्रों का विभाग करने वाले छह कुलाचलों के नाम। किन क्षेत्रों के बीच में कौन से कुलाचल पर्वत हैं? विजयार्ध पर्वत। भरतक्षेत्र के छह खण्ड। एक आर्यखण्ड और पाँच म्लेच्छखण्ड। आर्यखण्ड और म्लेच्छखण्ड की विशेषताएँ। अयोध्या और वृषभांचल पर्वत। ऐरावत क्षेत्र की रचना भरतक्षेत्र के समान है। विदेह क्षेत्र। पंचमेरू ढाई द्वीप में हैं। मध्यलोक के चार सौ अठ्ठावन(458) जिनालय। अब आप इनकी संख्या लिखो।
द्वि-र्द्वि-र्विष्कम्भाःपूर्व-पूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥08॥
तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजन-शत-सहस्र विष्कम्भो जम्बूद्वीप:॥09॥
भरत-हैमवत-हरि-विदेह-रम्यक-हैरण्यवतैरावतवर्षा: क्षेत्राणि॥10॥
तद्विभाजिन:पूर्वापरायता हिमवन-महाहिमवन-निषध-नील-रुक्मि-शिखरिणो वर्षधर पर्वता:।।११।।
Pragya Modi
Bhopal
WIINNER- 1
Sangeeta jain
Guwahati
WINNER-2
Harsha Sushil Bhavsar
Bhusaval (Maharashtra)
WINNER-3
किस नगरी का दूसरा नाम विनीता नगरी है?
मथुरा
वाराणसी
कंपिला
अयोध्या*
हमने जाना कि धनुषाकार अर्धचंद्राकार आकृति के रूप में भरत क्षेत्र है
इसके बीचों-बीच में एक horizontal line के रूप में विजयार्ध पर्वत है
दो vertical lines जो गंगा और सिंधु नदियों को दर्शाती हैं भरत क्षेत्र को छह भागों में विभाजित करती हैं
तीन विजयार्ध पर्वत के ऊपर और तीन नीचे
विजयार्ध पर्वत के नीचे मध्य वाला भाग आर्यखण्ड है
हम इसी आर्यखण्ड में रहते हैं
बाकी के पाँचों भाग म्लेच्छखण्ड हैं
म्लेच्छखण्डों में भी मनुष्य रहते हैं और इनकी कुछ विषेशताएँ है जैसे
यहाँ नपुंसक वेद वाले जीव नहीं होते
यहाँ लब्धि-अपर्याप्तक सम्मूर्च्छन मनुष्य नहीं होते
यहाँ पर कोई धर्म-कर्म नहीं होता
यहाँ तीर्थंकरों का विहार नहीं होता
हमने जाना कि चक्रवर्ती छह खण्डों को विजय करके वापिस अयोध्या नगरी में लौटता है
यह आर्यखण्ड के बीचों-बीच में 2x9 योजन की है
इसे विनीता नगरी भी कहते हैं
यहीं से चक्रवर्ती अपनी विजय यात्रा शुरू करता है
वृषभांचल पर्वत आर्यखण्ड के ऊपर विजयार्ध पर्वत के बीच का block है
चक्रवर्ती विजय प्राप्त करके यहीं अपना नाम खोदता है
यह म्लेच्छखण्ड में पड़ता है
हमने जाना कि भरतक्षेत्र अभी कर्मभूमि है
ऐरावत क्षेत्र की रचना भरतक्षेत्र के समान है
वहाँ पर भी विजयार्ध, वृषभाचल मिलेंगे
वहाँ की नदियों के नाम अलग होंगे
वहाँ छह खण्डों की रचना होती है
समय-समय पर वहाँ भी चक्रवर्ती, तीर्थंकर आदि होते हैं
और वहाँ पर भी काल का परिवर्तन होता है
जम्बूद्वीप के बीचों-बीच में सुमेरू पर्वत है
इसके पूर्व दिशा में पूर्व विदेह
और पश्चिम दिशा में पश्चिम विदेह होता है
यहाँ पर हमेशा तीर्थंकर रहते हैं
हमने ढाई द्वीप के बारे में भी जाना
जम्बूद्वीप की तरह ही सुमेरू पर्वत आश्रित रचनाएँ चार जगह और हैं
जम्बूद्वीप और लवण समुद्र के बाद धातकीखण्ड द्वीप में और फिर कालोदधि समुद्र के बाद पुष्करार्द्ध द्वीप में भी दो सुमेरू पर्वत हैं
वहाँ भी इसी तरीके के विदेह क्षेत्र और छह कुलाचल आदि की हैं
हमने देखा ये पाँच मेरू पर्वत एक line में हैं
इस ढाई द्वीप में विशेष रूप से कुछ ऐसे चैत्यालय इत्यादि होते हैं जिनकी वन्दना मनुष्य भी कर सकते हैं
अन्य अकृत्रिम जिनालयों की वन्दना सिर्फ देव लोग करते हैं
हमने जाना कि मध्यलोक के 458 जिनालय होते हैं
वक्षार पर्वत के 20
एक विदेह, एक सुमेरू सम्बन्धी 16 होते हैं तो 5 विदेह संबंधी 80
रुचकवर पर्वत के 4
कुण्डलवर के 4
विजयार्ध पर्वत के 170 क्षेत्र संबंधी 170
मानुषोत्तर पर्वत के 4
जम्बूद्वीप में कुलाचल संबंधी 6 तो पांच क्षेत्र संबंधी 30
इष्वाकार के 4
प्रत्येक देवकुरु-उत्तरकुरु में एक-एक वृक्ष होता है अतः पाँच क्षेत्र संबंधी कुरु के 2×5=10
नन्दीश्वर द्वीप के 52
पंचमेरु संबंधी 16×5=80
इस तरह मध्यलोक में कुल चार सौ अठ्ठावन जिनालय हैं
मध्यलोक के जिनालयों की वन्दना करने के भाव से हमें इन्हें याद कर लेना चाहिए