श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 38
सूत्र - 11
सूत्र - 11
आहार पर्याप्ति। छह पर्याप्तियाँ , अपर्याप्तक नाम कर्म क्या है? श्वासोच्छवास पर्याप्ति। भाषा पर्याप्ति। मनःपर्याप्ति।
गति-जाति-शरीराङ्गोपाङ्ग-निर्माण-बंधन-संघात-संस्थान-संहनन-स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णानुपूर्व्यगुरु- लघूपघात-परघाता-तपो-द्योतोच्छ्वास-विहायोग-तयः प्रत्येक-शरीर-त्रस-सुभग-सुस्वर-शुभ- सूक्ष्मपर्याप्ति-स्थिरादेय-यशःकीर्ति-सेतराणि तीर्थकरत्वं च॥8.11॥
25,Jun 2024
ज्योति
विदिशा
WINNER-1
Atulkumar Jain
Kandivali, Mumbai
WINNER-2
Manisha Kasliwal
Aurangabad
WINNER-3
तीसरी पर्याप्ति कौनसी होती है?
शरीर पर्याप्ति
इन्द्रिय पर्याप्ति*
भाषा पर्याप्ति
श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति
सूत्र ग्यारह में हमने पर्याप्ति नामकर्म के वर्णन में पर्याप्तियों के विज्ञान को समझा
इस कर्म के उदय से पर्याप्तियों की पूर्णता मिलती है
पर्याप्तियाँ 6 हैं
पहली आहार पर्याप्ति -
इसकी पूर्णता से
ग्रहण की हुई आहार वर्गणायें
खल और रस भाग के रूप में परिणमन होती हैं
दूसरी शरीर पर्याप्ति - इससे आहार पर्याप्ति से बना
रस भाग आगे रुधिर आदि liquid form
खल भाग हड्डी आदि solid form के रूप में convert होता हैं
इस कर्म के उदय से यह system automatically चलता रहता है
इसे कोई नहीं बना सकता
भगवान भी नहीं बनाता
जीव खुद नहीं समझ पाता वह किन शक्तियों का उपभोग कर रहा है
जब इनमें कुछ कमी आती है तब समझ आता है कि कुछ रोग हो गया
पहले से पूर्ण पर्याप्ति में कमी भी आ सकती है
इस कर्म का उदय उम्र भर न होकर मात्र कुछ वर्षों के लिए भी हो सकता है
या आगे धीरे-धीरे उस system में अपने आप कमी भी आ सकती है
ऐसा होने पर जो changes होने चाहिए वो नहीं होते हैं
इससे रोग होते हैं
जैसे - जलोदर रोग
इसमें पहले से पूर्ण पर्याप्ति में कमी आ जाती है
भोजन खल भाग में परिणमित नहीं होता
सब पानी-पानी रहता है
मुनि श्री ने इस रोग से पीड़ित एक युवा जैन patient के विषय में बताया
उसका कुछ भी खाया हुआ पानी बन जाता था
डॉक्टर उसका इलाज न कर सके तो अन्ततः उसने समाधि पूर्वक मरण किया
तीसरी - इन्द्रिय पर्याप्ति अर्थात्
इन्द्रियाँ बनाने की योग्यता की पूर्णता आना
यानि अब इन्द्रियाँ बन जाएगी
इसी के कारण
जो इन्द्रिय जहाँ बननी है,
उसे बनाने योग्य पुद्गल परमाणु उसी जगह पर ही इकट्ठे होंगे।
हर इन्द्रिय के पुद्गल परमाणु अलग-अलग shape में आते है
इन्द्रियों के निर्माण के लिए, उन्हें अपने आप आहार मिलता रहता है।
चौथी - श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति - अर्थात्
श्वासोच्छ्वास लेने की पूर्ण योग्यता आना,
इसी से जीवन चलता है
श्वास लेना नहीं पड़ती, सदैव खुद चलती रहती है
जीवात्मा का उस पर हक़ स्वामित्व मात्र है,
क्योंकि इन कर्मों का क्षयोपशम उसी के अन्दर है।
पर्याप्ति होने के बाद ही प्राण आदि प्राप्त होते हैं
पाँचवी - भाषा पर्याप्ति
इसी शक्ति के कारण भाषा वर्गणा वचन रूप परिणमित हो पाती हैं
हमारे वचनों का creation शरीर के अन्दर अलग-अलग parts में होता है
उस सबका master है- भाषा पर्याप्ति।
अन्तिम है - मनःपर्याप्ति
मन के द्वारा
हम कुछ विचार कर सकते हैं।
चीज़ों को जानते हैं, सीखते-सिखाते हैं।
मन:पर्याप्ति के कारण
मन की रचना हो पाती है और
उसे अपनी शक्ति मिलती है
शरीर और जीवन इन 6 की पूर्णता से चलता है।
और हम मकान आदि जैसी चीजों की पूर्णता चाह रहे हैं!
बिना पर्याप्तियों की पूर्णता के अन्य किसी भी चीज़ की पूर्णता व्यर्थ है!
हमने जाना
सभी पर्याप्तियों की रचना शुरू एक साथ होती है
लेकिन पूर्णता क्रम-क्रम से होती है।
यह क्रम एक-एक अन्तर्मुहूर्त में चलता है
पहले अन्तर्मुहूर्त में आहार पर्याप्ति फिर अगले अन्तर्मुहूर्त में शरीर पर्याप्ति आदि
हमने पर्याप्तक और अपर्याप्तक के बारे में जाना
आहार और शरीर पर्याप्ति पूरी होने पर जीव पर्याप्तक कहलाता है
अब वह आगे की चारों भी पूरी कर लेगा
अपर्याप्तक जीव के एक भी पर्याप्ति पूरी नहीं होती
पर्याप्तक नाम कर्म के उदय से जीव पर्याप्तक होता है
और अपर्याप्तक नाम कर्म के उदय से अपर्याप्तक