श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 39
सूत्र - 30,31
सूत्र - 30,31
पर्याय दो प्रकार की होती है। उत्पाद,व्यय और ध्रौव्य को समझने के लिए उदाहरण। उत्पाद,व्यय,ध्रौव्य को स्वर्ण के उदाहरण से समझिए। आगम ताम्र पत्र में सुरक्षित रहेगा। तद्भाव का क्या अर्थ है? एकत्व प्रत्यभिज्ञान किसे कहते है?
उत्पादव्ययध्रौव्य युक्तं सत् ॥5.30॥
तद्-भावाव्ययं नित्यम् ॥5.31॥
Yash Jain
Indore
WINNER-1
Rakesh Jain
Pratapgadh
WINNER-2
सुनीता सोगानी
जयपुर
WINNER-3
जो चीज हमने कल जैसी देखी थी, वह आज भी वैसी दिखायी दे। इसको बोलते हैं?
सद्भाव
असद्भाव
तद्भाव*
अतद्भाव
सूत्र तीस उत्पादव्ययध्रौव्य युक्तं सत् में हमने जाना कि जो ‘उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य’ से युक्त है वही सत् है
उत्पाद, व्यय पर्याय में होता है और द्रव्य ध्रौव्य होता है
पर्याय भी दो प्रकार की होती हैं - अर्थ पर्याय और व्यंजन पर्याय
अर्थ पर्याय केवल समझ में आती है, पकड़ में नहीं
ये शुद्ध और अशुद्ध दोनों द्रव्यों में होती है
व्यंजन पर्याय बहुत समय वाली होती है,
स्थूल होती है
और पकड़ में भी आती है
हम व्यंजन पर्याय समझ और समझा सकते हैं
अर्थ पर्याय को नहीं
जैसे सिद्ध भगवान में उत्पाद, व्यय हम देख तो नहीं सकते
लेकिन स्थूल पदार्थों के उदाहरण से समझ सकते हैं
उदाहरण के लिए अगर हमने एक घड़े पर भारी चीज से चोट की
और वह टूट कर कपाल बन गया, तो
घड़े की पर्याय का नाश हो गया
और उसी क्षण कपाल की पर्याय जो एक खपरा या खप्पर सी है उत्पन्न हो गयी
पर मिट्टी का कुछ नहीं बिगड़ा
वो ध्रौव्य रही
इसी प्रकार दीपावली पर हम सोने की चीजें को गलाकर
नया हार आदि बनवा लेते हैं
तो स्वर्ण तो ज्यों का त्यों रहता है
सिर्फ उसकी पर्याय टुकड़ों-टुकड़ों से हार के रूप में बदल जाती है
हर जगह व्यक्ति में, वस्तु में यही हो रहा है
जिस समय पर कोई नयी चीज बनेगी उस समय पर पुरानी चीज नष्ट होगी
और द्रव्य ज्यों का त्यों बना रहेगा
मुनि श्री ने उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य समझाते हुए अच्छे ढंग से दीपावली मनाने की प्रेरणा दी
जहाँ हम हर साल नयी चीजें खरीदकर पुरानी चीजों को replace करते हैं
हमें कुछ चीजें जो धर्म की याद दिलाती रहें
उन्हें द्रव्य रूप, सत्ता रूप रखना चाहिए
हम अपने-अपने घरों में वर्द्धमान भगवान की भक्ति के रूप में
ताम्रपत्र पर या चांदी पर उत्कीर्ण की गई श्री वर्द्धमान स्तोत्र की रचना रखेंगे तो
उससे हमारे अन्दर सत् का भाव आयेगा
इस तरह भगवान की स्तुतियाँ, मंत्र हम सबको स्थायित्व प्रदान करेंगे
मुनि श्री कहते हैं कि अनित्य चीजों को सामने रखने से अनित्यता के भाव आयेंगे
ताम्र पत्र आदि पर लिखे स्तोत्र से नित्य भक्ति का भाव बना रहेगा
सूत्र इक्कतीस तद्-भावाव्ययं नित्यम् में हमने जाना कि तद्भाव का व्यय नहीं होना ही नित्य है
नित्य मतलब हमेशा बना रहने वाला
तद्भाव मतलब this is that
this यहाँ के लिये है
that वहाँ के लिये है
यानि भले ही उसका form ऊपर कुछ बदले लेकिन वो चीज हमें वैसी ही लगनी चाहिये
यह ही नित्यपना है
हमने जाना कि सत् हमेशा बना रहता है
लेकिन उसमें उत्पाद व्यय भी होता है
तो वह नित्य कैसे होगा?
मुनि श्री समझाते हैं कि छोटे पुराने सोने के टुकड़ों के व्यय होकर उससे नए हार का उत्पाद होने पर भी सोना तो सोना ही रहा
यही उसका नित्य भाव है
अगर हम दुनिया में देखें तो सभी चीजें ऐसी ही हैं
शादी के बीस साल में पत्नी में भी changes आते हैं
मगर हम मानते हैं this is that
किसी भी चीज को हम सालों बाद भी recognise कर पाते हैं
उसमें यह नित्यपने का भाव होता है
न्याय की भाषा में इसे ‘एकत्व प्रत्यभिज्ञान’ कहते हैं
मतलब उसी में एकपना आना कि यह वही है, यह वही है
यह सदृश्य नहीं है क्योंकि सदृश्य तो similar होता है
दस साल बाद भी - यह वही पत्नी है, वही पुत्र है एकत्व प्रत्यभिज्ञान के माध्यम से कहा जाता है
इसी से वस्तु का अस्तित्व नित्य के रूप में प्रतिभासित होता है