श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 26

सूत्र - 28,29,30

Description

जम्बूद्वीप की अवस्थित भूमियों की गणनाकल्पवृक्षों से ही मनुष्यों और तिर्यंचों का पूरा जीवन चलता हैदस प्रकार के कल्पवृक्षों में से पहले मद्यांग नामक कल्पवृक्ष का वर्णनकल्पवृक्षों के नाम और कार्यों का वर्णनभोगभूमियों कि व्यवस्थाएँ

Sutra

ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिता: ॥3.28॥

एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षक दैवकुरवका:।l3.29।l

तथोत्तरा: ॥3.30॥

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WINNERS

Day 26

04th November, 2022

Nitesh Jain

Rajasthan

WIINNER- 1

Vimal kumar patni

Jaipur

WINNER-2

Mahima jain

Vidisha

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

कल्पवृक्ष कितने प्रकार के होते हैं?

7

10*

14

18

Abhyas (Practice Paper):

https://forms.gle/cHKQv9uNVJFf4TSS9

Summary

1.हमने जाना कि जम्बूद्वीप में छह अवस्थित भोगभूमियाँ हैं

    • भरत और ऐरावत में अनवस्थित भोगभूमियाँ हैं


  1. इसमें एक विदेह क्षेत्र है

    • जो पूर्व-पश्चिम विदेह के भी भेद करने से कुल बत्तीस होते हैं


  1. हमने जाना कि भोगभूमियों में कल्पवृक्षों का बहुत बड़ा role होता है

    • इन्हीं से मनुष्यों और तिर्यंचों का पूरा जीवन चलता है

    • इनके माध्यम से ही वहाँ पर सब भोग सामग्री उपलब्ध होती है


  1. ये कल्पवृक्ष कोई दैवीय वृक्ष नहीं होते

    • ये कोई वनस्पतिकायिक इत्यादि भी नहीं होते


  1. हमने आगम में बताये गए दस प्रकार के कल्पवृक्षों के बारे में भी जाना

  2. पहले मद्यांग जाति के कल्पवृक्ष होते हैं

    • यहाँ मद्य का अर्थ शराब नहीं होता

    • ये कल्पवृक्ष मद्य नहीं, मीठा मधुर रस देते हैं

    • जिसे पीकर के, थोड़ा मादकता आ जाती है

    • जैसे कोई अच्छे व्यंजन खाने से मादकता आ जाती है

    • थोड़ा उन्मत्त भी हो सकते हैं

    • लेकिन वह नशीले पदार्थ नहीं होते हैं


  1. भोगभूमि के पुरुष आर्य कहलाते हैं और स्त्रियाँ आर्या

  2. ये कभी भी शराब आदि गलत चीजों का कोई सेवन नहीं करते हैं

  3. मुनि श्री ने हमें विद्वानों द्वारा की गयी गलत व्याख्यानों से भी अवगत कराया

    • पद्मपुराण के एक प्रसंग में आता है कि देव लोग भी मधु आदि, मद्य आदि का सेवन करते हैं

    • विद्वान लोगों ने इसको अलग ढंग से व्याख्यायित कर दिया

    • मुनि श्री ने बताया कि अड़तालीस ऋद्धियाँ में से एक ऋद्धि होती है- 'णमो महुर सवीणं'

    • इसका अर्थ है मधुर का श्रवण करने वाली महुर,

    • इसमें तो मधुर शब्द आता है वह मधु से ही बनता है

    • इसका मतलब यह नहीं है कि यह ऋद्धि मधुर रस की रिद्धि है


  1. दूसरे वादित्र जाति के कल्‍पवृक्ष

    • तरह-तरह के वादित्र यानि संगीत के वाद्य यंत्र देते हैं


  1. तीसरे भूषणांग जाति के कल्पवृक्ष

    • हमको आभूषण प्रदान करते हैं

    • चौदह प्रकार के स्त्रियों के और सोलह प्रकार के पुरुषों के


  1. चौथे मालांग जाति के कल्पवृक्ष

    • गले में डालने वाली फूल मालाएँ, कानों के कर्णपुर, गजरा आदि देते हैं


  1. पांचवें दीपांग जाति के कल्पवृक्ष

    • तरह-तरह के दीपक आदि प्रकाश के स्रोत प्रदान करते हैं


  1. छटवें ज्योतिरांग जाति के कल्पवृक्ष

    • के माध्यम से बहुत प्रकाश होता है

    • जिससे सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश भी दब जाता है

    • भोगभूमि के अवसान होने पर है, कर्मभूमि आने पर - जीवों को सूर्य और चंद्रमा देख कर बड़ा आश्चर्य होता है

    • फिर कुलकर उन्हें समझाते हैं कि कल्पवृक्षों के प्रकाश के जाने से ऐसा है


  1. सातवें गृहांग जाति के कल्‍पवृक्ष

    • से तरह-तरह के वास्तु, गृह, मकान मिलते हैं


  1. आठवें भोजनांग जाति के कल्‍पवृक्ष

    • से तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन मिलते हैं


  1. नवमें भाजनांग जाति के कल्‍पवृक्ष

    • से तरह-तरह के बर्तन आदि मिलते हैं


  1. दसवें वस्‍त्रांग जाति के कल्‍पवृक्ष

    • से तरह-तरह के वस्त्र मिलते हैं


  1. आचार्यों के अनुसार जैसे वृक्ष हमें यहाँ फल देते हैं, ऐसे ही कल्पवृक्ष हमारे पुण्य फल से हमें सब चीजें देते हैं