श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 15
सूत्र - 09,10,11
सूत्र - 09,10,11
पुद्गल के पास तीनों प्रदेश होते हैं।अणु और परमाणु अप्रदेशी है।शुद्ध जीव में क्रिया कैसे होती है?
आकाशस्यानन्ताः॥09॥
संख्येयाsसंख्येयाश्च पुद्गलानाम्।।10।।
नाणोः।।11।।
Padam Katariya
Ajmer
WINNER-1
Sonika
Susner
WINNER-2
Sandhya Prakash Khadke
Pune
WINNER-3
संख्यात, असंख्यात और अनन्त तीनों प्रकार के प्रदेश किसके होते हैं?
पुद्गल परमाणु
पुद्गल स्कन्ध *
लोकाकाश
अधर्म
हमने जाना कि हर द्रव्य की तरह धर्म द्रव्य में एकत्व भी है और अनेकत्व भी
यह द्रव्य एक है जो अन्य द्रव्यों को चलने में सहायक है
लेकिन अन्य द्रव्यों की अपेक्षा से, इसके अलग-अलग points पर अलग-अलग द्रव्य अलग-अलग गति से चल रहे हैं
जैसे कहीं पुद्गल, कहीं जीव और कहीं जीव और पुद्गल दोनों चल रहे हैं
मुनि श्री ने बताया कि इस श्री तत्त्वार्थ सूत्र ग्रन्थ में वो भी पढ़ाया जायेगा जो
द्रव्य संग्रह ग्रन्थ में नहीं पढ़ाया गया
हमें इस ऊपर के level को भी, बार-बार सुनकर, समझना है
अपने ज्ञान को ऐसे शुभ में लगाकर हम
दुनियादारी की विस्फोटक चिंताओं से बचते हैं
मानो किसी practical lab में dark room में practical कर रहे हैं
और इस दुनिया से अलग, जो हमारे लिए सार्थक है, उसको space दे रहे हैं
यदि हम इसे थोड़ा भी समझ पाते हैं तो हमारे लिए वो पर्याप्त है
हमने जाना कि आकाश के अनन्त प्रदेशों में से लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों पर अस्तिकाय भरे हुए हैं
कोई भी point खाली नहीं है
और उन असंख्यात प्रदेशों पर हर द्रव्य एक रूप भी है और अनेक रूप भी
द्रव्यों को इस तरह समझने के लिए हमें अनेकांत का चिंतन लाना चाहिए
सूत्र दस संख्येयाsसंख्येयाश्च पुद्गलानाम् में हमने जाना कि पुद्गल स्कन्धों के पास तीनों प्रकार के प्रदेश होते हैं
संख्यात प्रदेश यानि दो या दो से अधिक परमाणु का स्कंध
असंख्यात प्रदेश यानि innumerable atoms
और अनन्त प्रदेश यानि infinite atoms
शेष पाँच द्रव्यों में प्रदेशों की संख्या निश्चित होती है
जीव, धर्म और अधर्म द्रव्य में यह असंख्यात होती है
हमने जाना कि जैन गणित में संख्या अंक दो से शुरू होती है
अंक एक से गणना शुरू होती है
और स्कन्ध में ही एक से अधिक प्रदेश होते हैं
इसमें संख्यात प्रदेशी पुद्गल कम ही दिखता है
अधिकतर असंख्यात और अनन्त प्रदेशी पुद्गल ही दिखते हैं
दिखाई देने वाले स्कन्ध या molecule अनन्त परमाणुओं के संयोग से बने हुए होते हैं
इनमें परमाणुओं की गिनती नहीं हो सकती
सूत्र ग्यारह नाणोः से हमने समझा कि अणु के प्रदेश नहीं हैं
यानि अणु बहुप्रदेशी नहीं है
अणु एक अविभाज्य कण है
इसमें एक प्रदेश होता है
चूँकि जैन गणित में एक की संख्या नहीं होती
इसलिए इसे अप्रदेशी या प्रदेश रहित भी कहते हैं
अगर इसका कोई प्रदेश नहीं होगा तो इसका अस्तित्व ही नहीं होगा
science में परमाणु और अणु अलग-अलग होते हैं
जैन दर्शन में ये एक ही होते हैं
पुद्गल सिर्फ परमाणु रूप या स्कन्ध रूप होता है
हमने प्रदेश के माध्यम से जाना कि
पुद्गल में रचनायें होती हैं
जुड़ना और इकट्ठा होना आदि क्रियायें होती हैं
इसी कारण पुद्गल क्रियावान होते हैं
हमने पहले जाना कि था जीव और पुद्गल क्रियावान होते हैं
लेकिन अन्य द्रव्यों में क्रिया नहीं होती
क्योंकि वे शुद्ध होते हैं
लेकिन एक अपेक्षा से शुद्ध जीव भी क्रिया करते हैं
जब वे चौदहवें गुणस्थान से सात राजू की दूरी एक समय में तय करके लोक के अग्रभाग में जाते हैं
सिद्धलोक में वे सिद्ध जीव फिर से क्रिया रहित हो जाते हैं
जैन science एक-एक समय की परिणति को भी पकड़ता है
इन सूत्रों का अच्छे ढंग से चिंतन-मनन करने से ही हमारे ज्ञान का विकास होगा