श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 15
सूत्र - 12,13
सूत्र - 12,13
कुलाचल पर्वतों की विशेषता। अकृत्रिम रचनाएँ, कृत्रिम रचनाओं से बहुत अधिक रमणीय है।अकृत्रिम जिनालय का ध्यान पुण्य बंध एवं सम्यक्त्व वर्धन का कारण है। अकृत्रिम जिनालयों की ध्यान और श्रुतज्ञान के माध्यम से वन्दना।
हेमार्जुन-तपनीय-वैडूर्य-रजत-हेममयाः।l12।l
मणिविचित्रपार्श्वा ऊपरि मूले च तुल्य विस्ताराः।l13।l
मालती जैन
धरियावद प्रतापगढ़
WIINNER- 1
Maina F.Bohra
Bangalore
WINNER-2
Pratibha Jain
Buldana
WINNER-3
वैडूर्यमणि का रंग कौनसा होता है?
सफेद
नीला*
चाँदी के समान
सोने के समान
1 . हमने जाना कि मेरु पर्वत एक लाख योजन ऊँचे होते हैं
और उनमें चार वन है
पहला भद्रसाल वन
दूसरा नंदन वन
तीसरा सोमनस वन
और चौथा पाण्डुक वन
इन वनों की चारों दिशाओं में एक-एक जिनालय होता है
इस तरह एक मेरु पर 4x4 = सोलह जिनालय होते हैं
और पाँचों मेरुओं पर अस्सी जिनालय
हमने जाना कि मध्यलोक के कुल 458 जिनालय हैं
सूत्र बारह में हमने छह कुलाचल पर्वत के बारे में जाना कि
ये किसके बने हुए हैं?
इनके रंग क्या है?
ये पर्वत - हेमार्जुन तपनीय
हेम यानि सोने के
अर्जुन यानि सफेद रंग की चाँदी के
तपनीय यानि तपे हुए हुआ सोने के होते हैं
नील पर्वत वैडूर्य यानि नीलमणि का
रुक्मि पर्वत रजत का
शिखरिणी पर्वत हेम का होता है
सूत्र तेरहा में हमने इन पर्वतों की संरचना को समझा
इनका पार्श्व भाग अर्थात आजु-बाजू का भाग अनेक प्रकार की मणियों से नाना प्रकार की आभा वाला होता है
इनकी विशेषता है कि इनका विस्तार ऊपरि मूले च तुल्य विस्तारा अर्थात जितनी चौड़ाई नीचे होगी, उतनी ही मध्य में होगी और उतनी ही सबसे ऊपर होगी
बीच में यह कुछ भी हो सकता है
ये सभी पर्वत अकृत्रिम रूप हैं
अपने स्वभाव से बने हुए हैं
इस भूगोल को पढ़ने से हमने जाना दुनिया में कृत्रिम चीजों से ज्यादा अकृत्रिम रचनाएँ बनी हुई हैं
और वे कृत्रिम रचनाओं से बहुत अधिक सुन्दर, मनोहर, रमणीय और वैभव पूर्ण होती हैं
इन रचनाओं के आगे दुनिया में चीन की दीवाल, कहीं घंटाघर, कहीं चिड़ियाघर या बर्फ पर skating सब फीके हैं
हमें कृत्रिम रचनाओं पर ज्यादा गर्व नहीं करना चाहिए क्योंकि वे सब मिट जाती हैं
इन पर्वतों पर घूमने-फिरने और क्रीड़ा करने का आनंद भी देव ही ले सकते हैं
आचार्य कहते हैं कि इन अकृत्रिम जिनालय का स्मरण करने से पुण्य का बंध होता है और सम्यक्त्व की वृद्धि होते है
मुनि श्री प्रेरित करते हैं कि हमें सिर्फ ध्यान में भावों से सिर्फ सम्मेदशिखर के कूटों की ही वंदना नहीं करनी चाहिए
इन अकृत्रिम जिनालयों की भी वंदना करते हुए यात्रा करनी चाहिए
पहले छहों कुलाचलों पर,
सुमेरू पर्वत पर,
गजदंत पर,
जम्बूद्वीप के बाद फिर ढाई द्वीप की यात्रा पर निकल जाना
फिर तेरहवें द्वीप रूचकवर द्वीप पर।
इन अकृत्रिम पर्वतों बने बड़े-बड़े जिनालय, सिद्धायतन कूट पर बने जिनालय और उनमें 108 प्रतिमा का ध्यान करके पुण्य का बंध होगा, श्रद्धान दृढ़ बनेगा और सम्यक्त्व के लिए कारण बनेगा
फिर वहाँ से आओ देवकुरु-उत्तरकुरु, भोगभूमि में
हमने जाना कि भोगभूमि के जिनालय वहां के लोगों के काम नहीं आते
क्योंकि भोगभूमि में दर्शन करने की या कोई भी धर्म क्रिया का कोई वातावरण नहीं होता है
इन जिनालयों पर वंदना करने वाले लोग या तो देव लोग होंगे या फिर ऋद्धिधारी मनुष्य
ऐसे जिनालयों की श्रुत ज्ञान के माध्यम से आँख बंद करके वंदना करने से लाभ मिलता है