श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 29
सूत्र -27,28
सूत्र -27,28
नयी छहढाला के माध्यम से सूक्ष्म और बादर जीवों को सरलता से समझा जा सकता है।ऐसे एकेन्द्रिय जीव जिन पर द्रव्य, क्षेत्र, काल का प्रभाव नहीं पड़ता वो हमेशा लोक में रहते हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों को रहने के लिए किसी आधार की जरूरत नहीं । सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव लोक में हर जगह सूक्ष्म नाम कर्म के उदय से बाधा रहित रहते हैं। भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयु का वर्णन।
औपपादिकमनुष्यभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः॥4.27॥
स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणाम्सागरोपमत्रिपल्योपमार्द्धहीनमिताः।l4.28ll
MADHURI PATIL
Sangli
WINNER-1
मनोज जैन वालावत
Udaipur Rajasthan
WINNER-2
Usha Jain
Shridham
WINNER-3
निम्न में से सूक्ष्म जीव कौनसे हैं?
एकेन्द्रिय *
द्वीन्द्रिय
त्रिन्द्रिय
तीनों
हमें समझाने के लिए मुनि श्री ने सूत्र पर दो आरोप लगाकर भूमिका बनाई
पहला तो यह सूत्र अप्रासंगिक है - देवों के प्रकरण में तिर्यंचों का वर्णन आ गया
और दूसरा इसका कुछ गंभीर अर्थ भी नहीं निकलता है
पूज्य मुनि श्री रचित नई छहढाला की पहली ढाल में जीवों के विषय में बहुत अच्छा ज्ञान है
जो पुरानी छहढाला में नहीं है
हमने जाना कि सिर्फ एक इन्द्रिय जीव सूक्ष्म और बादर होते हैं
अन्य सभी जीव बादर ही होते हैं
बहुत छोटी सी अवगाहना वाले, चल-फिर रहे जीवों को हम सूक्ष्म कह देते हैं
लेकिन सिद्धांत की दृष्टि से वे सूक्ष्म नहीं होते
दूसरे अध्याय के सूत्र तेरह - पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतय:स्थावरा: में हमने इन जीवों को जाना
लेकिन लोक में उनका स्थान कहाँ है? यह नहीं जाना
देव, मनुष्य, नारकी और मनुष्य की संगति वाले तिर्यंच आदि के स्थान तो हमने जानें
लेकिन ऐसे भी तिर्यंच हैं जिनका मनुष्यों से, उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल आदि से कोई लेना-देना नहीं है
वे हमेशा इस लोक में रहते हैं
छठवें काल के अंत में जब सब समाप्त हो जाएगा फिर भी ये तिर्यंच जीव यहाँ होंगे
सूक्ष्म या बादर एकेन्द्रिय जीव हमेशा हर जगह रहते हैं
बादर जीव पृथ्वी आदि के आधार से रहते हैं
सूक्ष्म जीवों का कोई आधार नहीं होता
किसी भी वातावरण से, काल से, युग से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं होता
उनकी आयु आदि किसी उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी के मनुष्य या तिर्यंच पर निर्भर नहीं है
आचार्य कहते हैं कि तीन लोक के वर्णन में
विमानों आदि में असंख्यात योजनों के खाली स्थान हैं
विमानों की, मकानों आदि की ऊँचाइयाँ हैं
सात पृथ्वियों में नीचे एक राजू की कलकला भूमि है
इन सब खाली स्थानों में जीव भरे हुए हैं
लोक में पटल, विमान, बिल आदि जिनका वर्णन हो गया है
उसके अतिरिक्त सभी बचे हुए स्थान में ये सूक्ष्म और बादर एकेन्द्रिय तिर्यंच जीव रहते हैं
ये पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक हो सकते हैं
सिद्ध लोक में जहाँ सिद्ध भगवान विराजमान हैं, वहाँ पर भी ये एकेन्द्रिय जीव जन्म ले रहे हैं
सूक्ष्म नामकर्म के उदय से सूक्ष्म जीव किसी भी द्रव्य, क्षेत्र, काल से न बाधित होते हैं और न बाधा करते हैं
इसलिए ये अपने जन्म-मरण के लिए स्वतंत्र हैं
जब इस धरती पर प्रलय होगा और यहाँ तिर्यंच और मनुष्य का अभाव होगा
इन एकेन्द्रिय जीवों का अभाव नहीं होगा
अतः ये धरती सर्वथा जीव रहित नहीं होगी
यह सूत्र सही जगह पर सही समय पर लिखा गया है
क्योंकि सबका वर्णन करने के बाद में लोक के अन्दर जो शेष बचा
वो तिर्यंच जीवों का स्थान है
आगे आचार्य महाराज ने चार निकाय के देवों की आयु
और नारकियों की जघन्य आयु का वर्णन
कम से कम सूत्र और समय में किया है
सूत्र अठ्ठाईस स्थिति-रसुर-नाग-सुपर्ण-द्वीप-शेषाणां-सागरोपम-त्रिपल्योपमार्द्धहीनमिताः में स्थिति शब्द से शुरुआत कर सूत्रकार ने आयु का वर्णन प्रारंभ किया