श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 29
सूत्र - 31,32,33,34
सूत्र - 31,32,33,34
धातकीखंड द्वीप की रचना, जम्बूद्वीप से दुगनी-दुगनी है । ढाई द्वीप में क्षेत्र और पर्वतों की स्थिति। पुष्करार्ध द्वीप में भी धातकीखंड के समान व्यवस्था है। पुष्कर द्वीप का वर्णन। लवण समुद्र की भौगोलिक स्थिति। लवणसमुद्र में पातालों की रचना और संख्या। लवण द्रसमुद्र में कर्मभूमि की व्यवस्था और जलचर जीवों का वर्णन।
विदेहेषु संख्येयकालाः॥3.31॥
भरतस्य विष्कम्भो जंबूद्वीपस्य नवतिशतभागाः ॥3.32॥
द्विर्धातकीखण्डे ॥3.33॥
पुष्करार्द्धे च।l3.34ll
WIINNER- 1
WINNER-2
WINNER-3
जंबूद्वीप में सुमेरु पर्वत कितना ऊँचा है?
अस्सी हजार योजन
एक लाख योजन*
अस्सी लाख योजन
ढाई लाख योजन
1.हमने जाना कि धातकीखंड द्वीप की रचना, जम्बूद्वीप से दुगनी-दुगनी है
जहाँ जम्बूद्वीप में एक सुमेरु,
एक-एक भरत, ऐरावत, हैमवत, विदेह, हरि, रम्यक, हैरण्यवत् क्षेत्र होते हैं
घातकीखंड में दो-दो होते हैं
उनके विभाजन करने वाले पर्वत भी दो-दो होंगे
और पर्वतों पर रहने वाले कमल आदि भी double-double होंगे
हमने जाना कि पहले नंबर का द्वीप जम्बूद्वीप है
उसके चारों ओर लवण समुद्र
फिर दूसरे नंबर का धातकीखंड द्वीप
उसके चारों ओर कालोदधि समुद्र
और फिर तीसरे नंबर द्वीप पुष्करार्ध है
ईष्वाकार पर्वत के माध्यम से धातकीखंड द्वीप में दो विभाजन होते हैं
एक सुमेरु पूर्व दिशा में और एक सुमेरु पश्चिम दिशा में होता है
पुष्करार्ध द्वीप में भी इसी तरह से ईष्वाकार पर्वत और विभाजन होते हैं
प्रत्येक भाग में जम्बूद्वीप की ही तरह
दक्षिण दिशा में भरत क्षेत्र
फिर क्रमशः पर्वत, क्षेत्र पार करते हुए विदेह क्षेत्र होगा
फिर विदेह के उत्तर में दक्षिण जैसी ही व्यवस्था होगी
भरत से लेकर ऐरावत क्षेत्र तक क्षेत्र और पर्वत ऐसे ही चलते हैं
बस सभी चीजें यहाँ पर दूनी हो गई हैं
सूत्र चौंतीस - पुष्करार्द्धे च से हमने जाना कि आधे पुष्कर द्वीप में धातकीखंड द्वीप जैसी ही व्यवस्था है
जंबुद्वीप में सुमेरु पर्वत एक लाख योजन ऊँचा है
अन्य सुमेरू चौरासी हजार योजन ऊँचे हैं
यहाँ पर भी भद्रसाल, नंदन सोमनस, पाण्डुक आदि वन हैं
हमने लवण समुद्र के विस्तार और उसमें रहने वाले जलचरों के बारे में भी जाना
यह जम्बूद्वीप के बाहर चारों ओर गोलाई में दो लाख योजन की मोटाई में फैला हुआ है
तल भाग पर इसका विस्तार दस हजार योजन है
लवण समुद्र की गहराई के विषय में आचार्यों के मतों में अंतर है
राजवार्तिक में आचार्य अकलंक देव ने इसे एक हजार योजन माना है
श्लोकवार्तिक में आचार्य विद्यानन्दी महाराज के इसे एक लाख योजन माना है
यानि यह सोलह हजार योजन के खरभाग के पार चौरासी हजार योजन के पंकभाग तक पहुँच जाएगा
इस मतभेद के बाद भी इसकी गहराई कम से कम एक हजार योजन है
और यह दूसरे नम्बर की वज्रा पृथ्वी तक तो होगा ही
लवण समुद्र और कालोदधि समुद्र में बड़े-बड़े पाताल बने हुए हैं
इसमें चार बड़े पाताल हैं
और कई लाख क्षुद्र पाताल हैं
हमने जाना कि लवणसमुद्र और कालोदधि समुद्र में कर्मभूमि की व्यवस्था है
अंतिम द्वीप-समुद्र स्वयंभूरमण द्वीप और स्वयंभूरमण समुद्र में भी कर्मभूमि है
कर्मभूमि में समुद्रों में जलचर जीव जैसे कछुए, मछली आदि पाए जाते हैं
ढाई द्वीप और स्वयंभूरमण द्वीप के बीच में असंख्यात समुद्रों में जलचर जीव नहीं होते