श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 19
सूत्र -13,14
सूत्र -13,14
चारित्र मोहनीय कर्म संयम ग्रहण नहीं करने देता है। चारित्तम् पणिमित्तम् कषायदो होंति परिणाम:। कषायों के उदय होने पर तीव्र परिणामों से चारित्र गुण का घात होता है। क्रोध कषाय। मान कषाय। माया कषाय। लोभ कषाय। नोकषाय भी आस्रव के कारण हैं। हास्य कषाय। प्रसन्न भी सावधानीपूर्वक रहें हँसाने से भी कर्म का आस्रव होता है। रति कषाय। अरति कषाय। अरति में विरक्ति में अन्तर। अरति बिना उद्द्येश के भी उत्पन्न हो जाती है। शोक भाव। भय कषाय।
केवलि-श्रुत-संघ-धर्म-देवा-वर्णवादो दर्शनमोहस्य।।1.13।।
कषायो-दयात्तीव्र-परिणामश्चारित्र-मोहस्य।।1.14।।
2st Sept 2023
Subhash Jain
Ghaziabad
WINNER-1
Vipin kumar Jain
Kalyan
WINNER-2
Reena Jain
Ghaziabad
WINNER-3
घृणा का भाव क्या है?
रति
अरति*
विरति
प्रतिरति
हमने जाना कि दर्शन मोहनीय कर्म सम्यग्दर्शन का
और चारित्र मोहनीय कर्म सम्यग्चारित्र का घात करता है
सूत्र चौदह कषायो-दयात्तीव्र-परिणामश्चारित्र-मोहस्य के अनुसार
कषाय के उदय से तीव्र परिणाम होना
चारित्र मोहनीय के आस्रव का कारण है
कषायों का उद्वेग बढ़ने से हमारे परिणामों में उसकी intensity बढ़ जाती है
समयसार जी के अनुसार कषाय ही चारित्र का प्रतिबंधक है
और चारित्र गुण का घात करती है
पर हम कर्मोदय से होने वाले वैभाविक परिणाम को जानकर
उसे control कर सकते हैं
कषायों के माध्यम से कषाय वेदनीय चारित्र मोहनीय कर्म का आस्रव होता है
क्योंकि हम इनका वेदन, अनुभव करते हैं इसलिए इसमें वेदनीय शब्द आता है
जैस तीव्र क्रोध कषाय का परिणाम करने पर हमें गुस्सा महसूस होता है
इसलिए यह क्रोध कषाय वेदनीय कर्म है
इसी प्रकार मान कषाय के कारण से व्यक्ति
बड़े-बड़े झूठ बोलता है
अनर्थ करता है
मायाचारी के तीव्र परिणाम में हमेशा दूसरों को ठगने का
छल-कपट का भाव करता है
लोभ की तीव्रता में बाहरी परिग्रह के प्रति मेरे पन का भाव करता है
जिससे वह किसी भी चीज के परिग्रह की मर्यादा नहीं कर पाता
आचार्यों ने कषायों में नोकषायों
हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुत्सा, स्त्री वेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद
का भी वर्णन किया है
नोकषाय अपने आप से तीव्र परिणाम रूप नहीं होती
लेकिन कषाय इनका सहारा ले करके तीव्र हो जाती हैं
भद्दी मजाक या बिना बात के गलत sense में बात कह कर हंस लेने से
हास्य नोकषाय कर्म का आस्रव होता है
दीन-दुखियों के ऊपर, तपस्वी, व्रती के ऊपर हँसने से विशेष कर्म का आस्रव होता है
और हम जग हंसाई के पात्र बनते हैं
हमने जाना कि ऐसा नहीं कि हम हंसेंगे तो हँसते ही रहेंगे
प्रसन्न रहना और कषाय के साथ हंसना अलग-अलग बात हैं
शास्त्रों में विदूषक और आजकल laughter channel पर comedy करने वाले भी
कर्म का आस्रव करते हैं
किसी को हंसाकर सुख पहुँचाना तो ठीक है
मगर किसी के साथ व्यंग्य करना, निंदा करना घातक है
रति नोकषाय के कारण पदार्थ में रति भाव, attachment उत्पन्न होता है
वस्त्रादि से, अपनी चेष्टाओं से
अपने अंदर या दूसरों के अंदर राग पैदा करने वाली
प्रवृत्तियाँ रति कषाय के माध्यम से होती हैं
इसके फल से हमेशा पदार्थों में रति बनी रहती है
इसलिए रति उत्पन्न करने वाले साधनों से बचना चाहिए
इसी प्रकार मन-वचन-काय की क्रियाओं से
हम अपने अंदर और दूसरों के अंदर
किसी पदार्थ के प्रति अरति उत्पन्न कर सकते हैं
अरति में व्यक्ति असमंजस में रहता है
ग्रहण भी करना है और परेशानी भी है
समाज में चार लोगों के अच्छा कहने के बावजूद
किसी एक व्यक्ति का बुरा कहना ही उसका दिमाग खराब करता है
जैसे किसी ने आपके अच्छे कपड़ों को low quality का बता दिया
या अच्छे मकान में वास्तु दोष निकाल दिए
इसमें विरति नहीं, अरति है
हमने समझा कि ये चीजें अभिप्राय dependent हैं
यूँ तो अरति भाव करने वाले को आस्रव होता है
पर यदि अरति उत्पन्न कराने वाले ने इसी उद्देश्य से कहा था
कि वह मकान आदि न ले
तो उसको भी विशेष आस्रव होगा
किसी को उजड़ स्थान पर रखना
जहाँ कुछ भी अच्छा न लगे
भी अरति नोकषाय के आस्रव का कारण है
स्वयं शोकाकुल होना
और अपनी क्रियाओं से दूसरों को शोकाकुल करना
दोनों ही शोक नोकषाय के आस्रव का कारण है
इसी प्रकार स्वयं भयभीत होना
और दूसरों को भयभीत करना
दोनों ही भय नोकषाय के आस्रव का कारण है
जैसे डरावनी फिल्में देखना और दिखाकर आनंदित होना