श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 03
सूत्र - 01
सूत्र - 01
सबको लेकर के चलो: वैनयिक मिथ्यात्व। अज्ञान मिथ्यात्व। अज्ञान मिथ्यात्व अण्डा मांस शाकाहार। पाँच मिथ्यात्व संसार की जड़। सब बन्धों का राजा-मिथ्यात्व।
मिथ्या-दर्शना-विरति-प्रमाद-कषाय-योगाबन्ध-हेतव:॥8.1॥
28th, March 2024
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निम्न में से सब बंधों का राजा कौन है?
मिथ्यात्व*
अविरति
प्रमाद
कषाय
हमने जाना कि चौथे वैनयिक मिथ्यात्व में
हम दुनिया के सभी देव, देवता, पशु, गुरुजन, माता-पिता आदि आदरणीय लोगों की
एक समान विनय करते हैं
लोग मानते हैं कि
सबकी मानने, विनय करने से समभाव बढ़ता है
लेकिन ऐसे समभाव से हमारे अन्दर मिथ्या विश्वास बढ़ता है
जैन विद्वानों को भी लगता है कि
किसी को छोड़ने से उनका निरादर हो जाएगा
वे आदर-निरादर का अंतर ही नहीं समझते
आदर की तरह ही, निरादर भी बुद्धिपूर्वक किया जाता है
मात्र छोड़ने से निरादर नहीं होता
ऐसी स्थिति में वे वैनयिक मिथ्यात्व को छोड़ नहीं पाते
पाँचवें अज्ञान मिथ्यात्व में व्यक्ति को ज्ञान से डर लगता है, अज्ञान से नहीं
वह कुछ नया नहीं सीखता
पहले के धारणाओं को ही सही मानता है
वह तर्क नहीं, कुतर्क करता है
तर्क न्याय सिद्ध होता है और सम्यग्ज्ञान का एक part है
कुतर्क अज्ञान में आता है और मिथ्याज्ञान का भेद है
जैसे कुछ लोग मानते हैं कि
जीव हिंसा के बिना, जीना संभव ही नहीं है
क्योंकि जीव रहित कोई स्थान नहीं है
वे हिंसा-अहिंसा में भेद जाने बिना ही
इसके विकल्प को बेकार मानते हैं
ऐसे ही कुछ लोग
वनस्पति और मांस दोनों खाने में जीव हिंसा मानते हैं
मांस सिर्फ एक जीव की
और वनस्पति खाने में अनन्त जीव की
वे वनस्पति और मांस के अंतर को नहीं सीखना चाहते
क्योंकि उन्हें ये सिद्धांत अपनी intellegence से अज्ञान लगते हैं
और यह intelligence उनमें स्वतः ही दोस्तों से आ जाती है
यह सिर्फ अज्ञान, ignorance है
और कुतर्कों के माध्यम से वे अज्ञान पर पर्दा डालकर
मनचाही चीजों का सेवन करते रहना चाहते हैं
इसी अज्ञान मिथ्यात्व के कारण
अण्डा और मांस भी शाकाहार होता है
और शाकाहार चीजों में भी मांसाहार सिद्ध हो जाता है
आज व्यसन आदि बुरी चीजों को
freedom, morality के नामपर अच्छा बनाकर परोसा जाता है
जिससे अन्दर अज्ञान बढ़ता रहे
आज सब अज्ञान की बातें सुनना चाहते हैं
हमने जाना कि ज्ञान सही-गलत का निर्णय करता है
और जहाँ आदमी यह करना ही नहीं चाहे
वहाँ पर अज्ञान मिथ्यात्व है
अज्ञान के कारण ही हमें पटाखे चलाने के विषय में कुतर्क सुनाई देते हैं
कि इससे प्रदूषण पर क्या फर्क पड़ जायेगा?
या कौन सी हिंसा बढ़ जाएगी?
हर जगह, हर चीज में प्रदूषण है, हिंसा है
इनसे वे अपने आप को safe समझते हैं
और अज्ञान मिथ्यात्व का बड़ा पाप कर बैठते हैं
इसी प्रकार रात्रि भोजन करने के लिए बच्चा-बच्चा कुतर्क देगा
कि पहले lights नहीं होती थी
अब full light में कोई कीड़ा, मक्खी-मच्छर आदि नहीं होते
हमने जाना कि ये पाँच प्रकार के मिथ्यात्व ही संसार की जड़ हैं
आज के शिक्षित ज्ञानवान आदमी के ज्ञान पर सबसे ज्यादा आवरण मिथ्यात्व के ही हैं
किसी के अंदर एक तरह का मिथ्यात्व है
तो किसी के अंदर दो, तीन, चार या पाँचों तरह के
मिथ्यात्व सबका राजा है
हमने जाना कि संसार से जोड़ने वाला मिथ्यादर्शन अनंत होता है
चूँक कारण अनंत है
इसलिय कार्य रूप संसार भी अनंत है
जिसमें अनन्त पर्यायें, अनन्त जन्मस्थान, अनंत बार मरण आदि होते हैं
मिथ्यात्व के टूटने पर ही यह अनंत की श्रृंखला टूटती है
मनुष्य पर्याय में गृहीत मिथ्यात्व सबसे ज्यादा होता है
और यहीं हमें इसे बुद्धि पूर्वक छोड़ने का भाव करना चाहिए
तभी हम अगृहीत मिथ्यात्व से अपने को बचा पायेंगे
जो लोग इसे छोड़ने से डरते हैं वे कभी मिथ्यात्व से नहीं बच सकते
बंध का दूसरे हेतु अविरति है
मतलब संसार के पदार्थों से विरति नहीं होना
इसकी जननी मिथ्यात्व ही है
जहाँ मिथ्यात्व होगा अविरति भी होगी