श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 14
सूत्र - 09
सूत्र - 09
जीव के प्रदेश कब अचल होते है? चल प्रदेश के उदाहरण । भय और ग़ुस्से में आत्मप्रदेश ज्यादा एक्टिव होते हैं। आत्मा के असंख्यात प्रदेश होते है। अनेक के साथ एक कैसे होता है? सर्वज्ञ बनकर क्या देखना है? आकाश में कहीं एकपना है और कहीं अनेकपना। धर्म द्रव्य में अनेकपना कैसे देंखे?
आकाशस्यानन्ताः॥09॥
Jayant Kale (Jain)
Amravati
WINNER-1
Vijaya Budruk
Pune
WINNER-2
Nilima Jain
Indore
WINNER-3
कौनसे जीव के प्रदेश चलायमान होंगे?
आयोग केवली के
मुक्त जीव के
अरिहंत के*
सिद्ध के
हमने जाना कि सिर्फ सिद्ध भगवान और चौदहवें गुणस्थान वाले अयोगी केवली के सभी प्रदेश अचल होते हैं
क्योंकि अरिहंत भगवान भी कायवान हैं
और उनके भी काययोग, वचनयोग और एक अपेक्षा से द्रव्य मनोयोग चलता है
इसलिए उनके भी सभी प्रदेश अचल नहीं होते
मुनि श्री ने समझाया कि आत्मा के प्रदेशों का अनुभव हम उदहारण से समझ सकते हैं
जैसे बहुत तेज घूमने पर
चलायमान प्रदेश की speed ज्यादा हो जाती है
और हमें सभी चीजें घूमती नजर आती हैं
vision stable नहीं होता और
ज्ञान कहीं स्थिर नहीं रहता
इसी प्रकार जब शरीर भय या गुस्से से कांपता है तो आत्मप्रदेश ज्यादा कंपायमान हो जाते हैं
गुस्से में व्यक्ति की आँखों के सामने अंधेरा सा और शरीर में कंपन होता है
वह बोल भी नहीं पाता
क्योंकि उस समय आत्मा के प्रदेश ज्यादा चलायमान होते हैं
ऐसे समय में उससे कुछ भी कहना, समझाना बेकार होता है
इसी प्रकार का अनुभव किसी अप्रत्याशित घटना घटने पर होता है
शरीर में कंपन हो जाता है
हम कर कुछ रहे होते हैं और हो कुछ और रहा होता है
संसारी जीव में चल और अचल प्रदेशों के माध्यम से हमेशा कर्मों का आस्रव भी होता रहता है
लेकिन चल प्रदेश सब से ज्यादा होते हैं
किसी भी प्रकार की क्रियाओं से खुद को जोड़ने से प्रदेशों में चलपना अधिक हो जाता है
चाहे वो क्रियाएँ सोचनेवाली हों, बोलनेवाली, बैठे-बैठे करने वाली या कोई और
आत्मा के प्रदेश, करोड़-करोड़ पूर्व कोटी आदि से भी बहुत ज्यादा, असंख्यात संख्या में होते हैं
यानि हमारा खुद का अस्तित्व छोटा-मोटा नहीं है!
बहुत बड़ा है
इन असंख्यात प्रदेशों में अगर कोई उथल-पुथल, खलबली मचती है
तो वह हमारा ही system खराब करती है
जैसे भयभीत, क्रोधित होने पर पूरे शरीर में अलग तरीके के vibration होते हैं
या चिंतित आदमी को भूख नहीं लगती
क्योंकि उसके सारे प्रदेश और उनका ज्ञान एक तरफ चला गया
पेट को अपना function करने के लिए जो energy चाहिए थी
वह चिंता में लग गयी
यह आर्त ध्यान होता है
इस प्रकार आत्मा के प्रदेशों में होने वाले परिणमन को समझने से हम प्रदेश को समझ सकते हैं
आकाश के अनन्त प्रदेश हैं
लेकिन अनन्त आत्माओं के असंख्यात प्रदेश अनन्त आकाश में नहीं रह रहे
असंख्यात प्रदेश वाले लोकाकाश में ही रह रहे हैं
हमने जाना कि जब कोई चीज एक होती है
तो किसी अपेक्षा से उसमें अनेकपना भी होता है
यही अनेकांत है
जैसे आकाश एक अखंड द्रव्य है
किन्तु लोकाकाश और अलोकाकाश की अपेक्षा इसमें खण्ड हो जाते हैं
अनेकपना आ जाता है
द्रव्य का स्वभाव एक-अनेक रूप होता है
हर द्रव्य जैसे धर्म, अधर्म द्रव्य में एकत्व भी है और अनेकत्व भी है
क्योंकि अगर वे बिना अनेकता के एकरूप हो गए
तो भी द्रव्य का स्वभाव नहीं बनेगा
उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति अपने आप में तो एक है
लेकिन उसके हाथ, पैर, आँख, नाक, नाखून, घुटने, blood आदि सब अनेक हैं
इन अनेकों के साथ में भी वह एक है
इसी प्रकार लोकाकाश अनेक रूप में देखने को मिलेगा
पूरे लोकाकाश में एकपना तो है लेकिन हर point पर अनेकपना भी है
कहीं पर असंख्यात पुद्गल द्रव्य हैं तो कहीं अनन्त पुद्गल द्रव्य
किसी point पर त्रस जीव ज्यादा हैं तो किसी पर स्थावर जीव
कहीं पर सिद्ध जीव हैं तो कहीं पर नहीं हैं
हमें सर्वज्ञ बन कर ही यह अनेकता दिखेगी
इसी प्रकार जीव के प्रदेश भी अलग-अलग रूप में होते हैं
उसके हर point पर अनेकपना होता है