श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 05
सूत्र - 03
Description
सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में क्या हेतु है? तीनों ही प्रकार के सम्यग्दर्शन, दोनों ही कारणों से होते हैं? सम्यग्दर्शन स्वभाव से भी उत्पन्न हो सकता है? क्या अधिगम के बिना केवल निसर्ग से सम्यग्दर्शन हो सकता है? जिन बिम्ब देखने से तत्त्व का श्रद्धान कैसे? अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति निसर्ग से भी? देशना लब्धि: केवल देशना से ही नहीं गुरु के सानिध्य से भी? निसर्ग से, तो फिर ज्ञान लेने की क्या जरूरत?
Sutra
तन्निसर्गादधिगमाद्वा।l1.3ll
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WINNERS
Day 05
12th Feb, 2022
दीपाली नंदकुमार जैन
औरंगाबाद
WINNER-1
प्रतिभा सोगानी
दिल्ली
WINNER-2
सरला जैन
पटना
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
इनमें से सम्यग्दर्शन का प्रकार कौनसा नहीं है?
1. उपशम सम्यग्दर्शन
2. क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
3. क्षयाक्षायिक सम्यग्दर्शन *
4. क्षायिक सम्यग्दर्शन
Summary
आइये अब हम quick recap करते हैं आज की class का:
कल हमने सम्यग्दर्शन के स्वरुप को जाना था
सामान्य रूप है इसका अर्थ है देव-शास्त्र-गुरु पर दृढ श्रद्धा
और विशेष विशेष रूप में तत्त्वार्थ पर दृढ श्रद्धा
आज हमने कारणों को समझा जिससे सम्यग्दर्शन होता है - तन्निसर्गादधिगमाद्वा
सम्यग्दर्शन दो कारणों से होता है-
निसर्ग से अर्थात स्वभाव से, बिना दूसरे के उपदेश से और
अधिगम से यानी पर उपदेश से होने वाला ज्ञान से
सम्यग्दर्शन के तीन प्रकार होते हैं
उपशम सम्यग्दर्शन
क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
क्षायिक सम्यग्दर्शन
और ये तीनों ही प्रकार के सम्यग्दर्शन निसर्ग और अधिगम दोनों से होते हैं
हमने जाना पर उपदेश के बिना भी अन्य कारण है, जिनसे सम्यग्दर्शन होता है जैसे जाति स्मरण, और जिन बिम्ब दर्शन
क्योंकि अरिहन्त में सब तत्त्व गर्वित हैं और जिसकी उन पर श्रद्धा हो गयी तो उसे जिनबिम्ब के दर्शन से, पर उपदेश के बिना भी निसर्ग सम्यग्दर्शन हो सकता है
एक प्रचलित भ्रान्ति है कि निसर्ग सम्यग्दर्शन भी कभी पूर्व के अधिगम के कारण होता है
मुनि श्री ने इस भ्रान्ति का खंडन किया है - सूत्र ऐसा कुछ इंगित नहीं करता
सूत्र में वर्तमान या भूत समय की या अनादि मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा कुछ भी नहीं कहा गया है अतः कोई भी जीव सम्यग्दर्शन की प्राप्ति पहली बार निसर्ग या अधिगम किसी से भी कर सकता है
अनादि मिथ्यादृष्टि जीव ने अनादि काल से कभी भी सम्यग्दर्शन को प्राप्त नहीं किया
हमने जाना कि सम्यग्दर्शन के लिए पांचों लब्धियों का होना ज़रूरी है
क्षयोपशम लब्धि
विशुद्धि लब्धि
देशना लब्धि
प्रायोग्य लब्धि
और करण लब्धि
अब सवाल कि निसर्ग सम्यग्दर्शन के लिए देशना लब्धि कैसे मिलेगी?
तो मुनि श्री ने बताया कि लब्धिसार ग्रन्थ के अनुसार देशना लब्धि दो प्रकार की है:
आचार्य आदि का सान्निध्य मिलना और
उनके द्वारा कहे हुए 6 द्रव्यों और 9 पदार्थों को ग्रहण करना
आचार्य आदि उपदेशक के केवल आचार-व्यवहार को देख, उनके सानिध्य में; बिना कुछ सुने हुए, अगर हमारेअन्दर विशुद्धि बनती है, पुरुषार्थ बनता है; जो देशना लब्धि को पूर्ण कर निसर्ग सम्यग्दर्शन के रूप में प्रकट होता है
आइए हम भी ऐसे गुरु के सानिध्य में तत्त्वार्थ सूत्र ग्रन्थ का स्वाध्याय करके; अपने अन्दर योग्यता और विशुद्धि को बढ़ाते हुए सम्यग्दर्शन को प्राप्त करें।
आइये अब हम सभी जिनवाणी स्तुति करेंगे और तत्पश्चात समय होगा आज के सवाल का