श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 33
सूत्र -
33,34,35,36,37,38,39,40,41,42
सूत्र -
33,34,35,36,37,38,39,40,41,42
सौधर्म-ऐशान से आगे के स्वर्गों के देवों की जघन्य आयु।द्वितीय आदि नरकों के नारकियों की जघन्य आयु। पहले नरक की जघन्य आयु।भवनवासी देवों की जघन्य आयु।व्यन्तर देवों की जघन्य आयु।व्यन्तर देवों की उत्कृष्ट आयु।ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट आयु।ज्योतिषी देवों की जघन्य आयु।इस सूत्र पर आचार्य महाराज का चिन्तन।ज्योतिषी देवों की यह जघन्य आयु तारों और नक्षत्रों में पायी जाती है।लौकान्तिक देवों की आयु।लौकान्तिक देवों की आयु ब्रह्म लोक के देवों से भिन्न है।सभी लौकान्तिक देवों की आयु, वैभव, अवगाहना आदि सब समान होते है।सागरोपम की आयु वाले देवों का आहार एवं श्वासोच्छ्वास का अन्तराल।देवों में मानसिक आहार होता है, कवलाहार नहीं।
अपरा पल्योपम-मधिकम्॥4.33॥
परत:परत:पूर्वा-पूर्वाऽनन्तरा॥4.34॥
नारकाणां च द्वितीयादिषु ॥4.35॥
दशवर्ष-सहस्राणि-प्रथमायां ॥4.36॥
भवनेषु च॥4.37॥
व्यन्तराणां च ॥4.38॥
परा पल्योपम-मधिकम् ॥4.39॥
ज्योतिष्काणां च॥4.40॥
तदष्ट-भागोऽपरा ॥4.41॥
लौकान्तिका-नामष्टौ-सागरोपमाणि-सर्वेषाम् ॥4.42॥
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देवों में कौनसा आहार होता है?
कवलाहार
लेपाहार
ओजाहार
मानसिक आहार
सूत्र तैंतीस से हम देवों की जघन्य आयु के बारे में जान रहे हैं
सूत्र चौंतीस परत:परत:पूर्वा-पूर्वाऽनन्तरा में हमने जाना कि आगे-आगे के स्वर्ग की जघन्य आयु पिछले-पिछले स्वर्ग की उत्कृष्ट आयु होती है
जैसे सानत्कुमार-माहेन्द्र स्वर्ग की सात सागर की उत्कृष्ट आयु ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर में जघन्य आयु होगी
कल्पोपन्न और कल्पातीत स्वर्ग तक यही व्यवस्था रहती है
स्वर्गों की जो जघन्य एवं उत्कृष्ट आयु बताई है, उसके बीच के आयु के सभी विकल्प वहाँ पाए जाते है
जैसे ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में सात सागर से कुछ अधिक दस सागर तक की आयु के विकल्प होते है
आचार्य उमास्वामी ने तीसरे अध्याय में नारकियों की उत्कृष्ट आयु का वर्णन किया है परंतु विषय की पुनरावृत्ति न हो इसलिए जघन्य आयु का वर्णन उस अध्याय में नहीं किया है
सूत्र पैंतीस नारकाणां च द्वितीयादिषु में उन्होंने बताया कि नरक की भूमियों की जघन्य आयु की व्यवस्था भी स्वर्ग की जघन्य आयु के समान होती है
द्वितीय से सप्तम पृथ्वी तक यह व्यवस्था होती है
जैसे पहली पृथ्वी की उत्कृष्ट आयु दूसरी पृथ्वी में जघन्य आयु होगी
और सूत्र छत्तीस दशवर्ष-सहस्राणि-प्रथमायां के अनुसार पहली पृथ्वी में जघन्य आयु दस हजार वर्ष होती है
सूत्र पैंतीस की व्यवस्था पृथ्वियों में नीचे-नीचे और स्वर्गों में ऊपर-ऊपर की जघन्य आयु के लिए होती है
सूत्र सैंतीस भवनेषु च और सूत्र अड़तीस व्यन्तराणां च में “च” शब्द से सूत्र छत्तीस की अनुवृत्ति है
अर्थात भवनवासी और व्यन्तर देवों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष होती है
सूत्र उन्तालीस परा पल्योपम-मधिकम् में हमने जाना कि व्यंतर देवों की परा यानि उत्कृष्ट आयु “पल्योपम” मतलब एक पल्य में कुछ अधिक होती है
सूत्र चालीस ज्योतिष्काणां च के अनुसार ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट आयु भी “एक पल्य से कुछ अधिक” है
चन्द्रमा की आयु पल्य से एक लाख वर्ष अधिक
सूर्य की एक हजार वर्ष अधिक
और शुक्र ग्रह की सौ वर्ष अधिक होती है
सूत्र इकतालीस तदष्ट-भागोऽपरा के अनुसार ज्योतिषी देवों की अपरा यानि जघन्य आयु पल्य का आठवाँ भाग होती है
आचार्य महाराज के चिंतन के अनुसार “तद्” का अर्थ ऊपर बताई ज्योतिषियों की उत्कृष्ट आयु, जो पल्य से कुछ अधिक है, उसका आठवाँ भाग यहाँ लेना चाहिए
लेकिन आगम में ऐसा वर्णन नहीं मिलता है, इसलिए इसे सिर्फ आचार्य महाराज के चिन्तन के रूप में स्वीकार कर सकते हैं
हमने जाना कि ताराओं और नक्षत्रों की जघन्य आयु पल्य का आठवाँ भाग होती है
और चन्द्र आदि देवों की केवल पल्य का चौथा भाग
सूत्र बयालीस लौकान्तिका-नामष्टौ-सागरोपमाणि-सर्वेषाम् के अनुसार सभी लौकान्तिक देवों की आयु आठ सागरोपम होती है
त्रिलोकसार ग्रंथ में अन्तिम अरिष्ट जाति के देवों की आयु नौ सागर बताई गयी है
लौकान्तिक देवों की आयु ब्रह्मलोक के अन्य देवों की दस सागर की उत्कृष्ट आयु से भिन्न होती है
सभी लौकान्तिक देवों की आयु, वैभव, अवगाहना आदि समान होते हैं
इन्हें चौदह पूर्व और ग्यारह अंग का ज्ञान होता है
हमने जाना कि जिस देव की जितने सागर की आयु होती है
वह उतने हजार वर्ष के बाद मानसिक आहार करते हैं
और उतने ही पक्ष के बाद श्वास लेते हैं
जैसे दो सागर की आयु वाला देव दो हजार वर्ष के बाद में आहार लेंगें और दो पक्ष यानि एक महीने बाद श्वास ग्रहण करेंगे
देवों को जब क्षुधा का विचार आता है तो उनके कंठ में अमृत झर जाता है
गले के अन्दर कुछ भी टपकते रहने पर वह जूठेपने में नहीं आता,
जैसे उपवास में गला सूखने पर गले के ऊपर पानी लगा लेने पर उपवास खण्डित नहीं होता
समय आने पर देव समवशरण सभा में बैठकर या पंचकल्याणक में भी मानसिक आहार कर सकते हैं
यह कवलाहार से अपने आप में बिल्कुल अलग है