श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 40
सूत्र - 11
सूत्र - 11
आदेय नाम कर्म किसे कहते हैं? आदेय नाम कर्म का फल। अनादेय नाम कर्म क्या है? बोलना अलग बात है, ज्ञान होना अलग बात है। अनादेय नाम कर्म के फल। यशः कीर्ति नाम कर्म क्या है? यशः कीर्ति नाम कर्म का उदाहरण। गुण का ख्यापन होना। अयशः कीर्ति, अपयश का होना।
गति-जाति-शरीराङ्गोपाङ्ग-निर्माण-बंधन-संघात-संस्थान-संहनन-स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णानुपूर्व्यगुरु- लघूपघात-परघाता-तपो-द्योतोच्छ्वास-विहायोग-तयः प्रत्येक-शरीर-त्रस-सुभग-सुस्वर-शुभ- सूक्ष्मपर्याप्ति-स्थिरादेय-यशःकीर्ति-सेतराणि तीर्थकरत्वं च॥8.11॥
27,Jun 2024
Komal jain
Nanded
WINNER-1
Kiran Jakheria
Bhopal
WINNER-2
अंबर जैन
मध्य प्रदेश
WINNER-3
किस कर्म के उदय से व्यक्ति के दोषों की ख्याति दुनिया में फैलती है?
आदेय नाम कर्म
यश:कीर्ति नाम कर्म
अयशकीर्ति नाम कर्म*
दुर्भावना नाम कर्म
इस कक्षा में हमने जाना - आदेय नाम कर्म
पहले हमने सुभग नाम कर्म जाना था, जो सौभाग्य उत्पन्न करता है
हमने शुभ नाम कर्म जाना था, जिसके कारण से अंगोपांगो में मनोहरता आती है
अब हमने जाना आदेय नाम कर्म, जिसके माध्यम से लोग ग्रहण करते हैं।
आदेय मतलब मान्यता। इस कर्म के कारण-
लोग हमारी बात को गौर से सुनते हैं
हमारी बात को मान करके उसके अनुसार सोचते हैं
लोग चाहते हैं कि हमें भी इनके वचन सुनने को मिलें और इनका सान्निध्य मिले।
यह जरुरी नहीं कि हम बहुत ज्ञान की बात करें, तभी कोई सुनेगा।
किसी के पास ज्ञान थोड़ा भी हो,
लेकिन आदेय कर्म हो, तो उसकी महत्ता बढ़ जाती है।
हमने जाना - स्वीकारिता केवल सुनने से ही नहीं, देखने से भी होती है
किसी को देखने से ही हमारे अन्दर यह भाव आना
कि He is acceptable, हम इन्हें सुनें
यह उनके आदेय नाम कर्म के उदय के कारण से ही हम तक पहुँचता है।
कुछ आचार्य इसकी एक और परिभाषा देते हुए कहते हैं -
आदेय नाम कर्म शरीर में विशेष रूप से कान्ति करता है।
यह शरीर की natural brightness का कारण है,
कॉस्मेटिक लगा कर brightness लाना artificial होता है
artificial चमक थोड़ी देर के लिए रहती है, बाद में उतर जाती है।
साथ ही हमने जाना जो सामान्य से कुछ कान्ति हर किसी के शरीर में रहती है,
वह तैजस नाम कर्म के कारण से होती है।
जबकि विशेष कान्ति आदेय के कारण
आदेय के विपरीत होता है- अनादेय नाम कर्म।
अनादेय के कारण
हमारी बात मान्य नहीं होती
हमारे बोले जाने पर कोई गौर नहीं फरमाता।
या फिर, शरीर में विशेष कान्ति का न होना इसके कारण होता है ।
मुनि श्री कहते हैं -
जरूरी नहीं कि हर कर्म का उदय हमें तत्काल समझ में आ जाए।
लेकिन नाम कर्म के भेदों को जानने से हमारे लिए बहुत कुछ समाधान हो जाता है।
फिर हमने जाना - यशः कीर्ति नाम कर्म
यश मतलब गुणों का होना
और कीर्ति यानी उसका फैलना
यशः कीर्ति माने गुणों का फैलना
इस कर्म के कारण
लोग हमारे गुणों का बखान करते हैं
गुणों का एक दूसरे के मुख से बखान होना कीर्तन भी कहा जाता है
गुण और दोष सभी में होते हैं
यश: कीर्ति के उदय में, गुणवान व्यक्ति के
दोष भी गुण के रूप में उभर कर आते हैं
नाम कर्म के उदय से कोई दोष दब नहीं जाता
पर वह दोष की जगह, गुण के रूप में ख्यापित होता है ।
यश: कीर्ति में जो गुण होते हैं वे तो फैलते ही हैं
साथ ही जो नहीं भी होते उनका भी ख्यापन होता है।
इसके विपरीत हमने जाना - अयश: कीर्ति नाम कर्म
अयश अर्थात् अपयश का होना
इसके कारण
दुनिया में दोषों की ख्याति होती है।
और गुण भी दोष के रूप में उभर कर आते हैं
जैसे- किसी कर्म के उदय से अपराध हो गया तो अयश: कीर्ति का उदय
उसकी सरलता को बेवकूफी के रूप में प्रकाशित करेगा
और नम्रता को चापलूसी के रूप में