श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 15
सूत्र - 24
सूत्र - 24
ऋजुमति मन:पर्यय ज्ञान और विपुलमति मन:पर्यय ज्ञान दोनों में अन्तर का आधार! अन्दर जो ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम बढ़ रहा है, यही विशुद्धि है? मन:पर्यय ज्ञान विशिष्ट व्यक्तियों को होता? मन:पर्यय ज्ञान, अवधिज्ञान से भी विशिष्ट क्यों? मनःपर्यय ज्ञान में और telepathy में अन्तर?
विशुद्धयप्रतिपाताभ्यां तद्विशेष: ।।1.24।।
Manisha Jain
Jabalpur
WINNER-1
Tejas Jain
Jhansi
WINNER-2
प्रमोद प्रभा गाँधी जैन
मध्यप्रदेश
WINNER-3
निम्न में से अधिकतम विशुद्धि किस ज्ञान में होती है?
मति ज्ञान
ऋजुमति मन:पर्यय ज्ञान
विपुलमति मन:पर्यय ज्ञान *
अवधि ज्ञान
आज हमने सम्यक्ज्ञान के प्रकरण में मन:पर्यय ज्ञान की विशेषताओं को जाना
ये दो प्रकार का होता है - ऋजुमति और विपुलमति
ऋजुमति ज्ञान से विपुलमति ज्ञान ज्यादा विशुद्धि वाला होता है
यह प्रतिपाती अर्थात इसमें संयत मुनि महाराज उपशम श्रेणी से गिर सकते हैं
विपुलमति ज्ञान अप्रीतिपाती होता है
हमने जाना कि विशुद्धि कर्मों के क्षयोपशम से, क्षय से, उपशम आदि से आत्मा में उत्पन्न होने वाली प्रसन्नता है
इस विशुद्धि से हम ज्ञानावरण आदि घातिया कर्मों का विनाश कर सकते हैं
जैसे जैसे विशुद्धि बढ़ेगी, ज्ञान भी बढ़ेगा और उससे मोह कम होगा
मोह कम होने से ज्ञान बढ़ेगा और उससे विशुद्धि अपने आप बढ़ेगी
विशुद्धि बढ़ने से संक्लेश भीतर ही भीतर नष्ट होता जाएगा
और परिणामों में हमेशा प्रसन्नता बनी रहेगी
मनः पर्यय ज्ञान सिर्फ विशिष्ट व्यक्तियों को होता है
यह
वर्धमान चारित्र वाले,
छठवें-सातवें गुणस्थान वाले
ऋद्धिधारी संयमी मुनियों को ही होगा
ऋजुमति मनःपर्यय ज्ञान, विपुलमति मनःपर्यय ज्ञान दोनों ऋद्धियाँ हैं
ये ४८ ऋद्धियाँ में णमो उजमदीणं और णमों विउलमदीणं नाम से आती हैं
मनःपर्यय ज्ञानी बड़े से बड़े अवधिज्ञानी से भी सूक्ष्मता से जानता है
मन:पर्यय ज्ञानी की विशुद्धि अवधिज्ञानी से हमेशा ज्यादा होगी
विपुलमति ज्ञान वाले संयत मुनि की विशुद्धि ऋजुमति ज्ञान वाले मुनि से अधिक होती है
क्योंकि उनके पास उस ज्ञान की और भी शक्तियाँ प्रगट हो गई है
मन में चल रहे सूक्ष्म विचारों की परिणति को पकड़ना मनःपर्यय ज्ञान का विशिष्ट कार्य है
हम भाव अमूर्त चीज है
हम उसको नहीं पकड़ पाते मगर मनःपर्ययी मुनि महाराज उस भाव को, future में आने वाले भाव को भी पकड़ लेते हैं
जैन दर्शन के अलावा इस तरह के ज्ञानों की समीक्षा कहीं नहीं मिलेगी
english translation में शास्त्रों के साथ अन्याय-सा किया जा रहा है
अवधिज्ञान, मनःपर्यय के लिए कोई शब्द fit नहीं बैठता है
मनःपर्यय ज्ञान को telepathy और अवधिज्ञान को clairvoyance शब्द में fit करने की कोशिश की है
मगर ये नाम देकर इन ज्ञानों को बहुत हल्का बना दिया है, इसकी गरिमा को खत्म कर दिया है
ये नाम हमेशा roman english में ही लिखने चाहिए
हमने जानाकि ज्ञान और आत्मा अलग-अलग नहीं है
ज्ञान में purity मतलब आत्मा में purity आना
ज्ञान के क्षयोपशम की वृद्धि मतलब आत्मा का level बढ़ना