श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 22
सूत्र -22
Description
जीव के पूर्व संस्कारों का प्रभाव उसकी आगामी पर्याय पर होता है । नरक से आकर के जीव तीर्थंकर बन सकता है लेकिन शलाका पुरुष नहीं। भवनत्रिक से आये जीव मोक्ष प्राप्त कर सकते है। भवनत्रिक से आया हुआ जीव तीर्थंकर नहीं बन सकता। भवनत्रिक से आया हुआ जीव तिरेसठ शलाका पुरुषों में भी उत्पन्न नहीं होता। इन उत्कृष्ट पदों को वैमानिक देव ही अपनी लेश्याविशुद्धि से पाते हैं। लेश्या से तात्पर्य। सोलह तीर्थंकर भगवान की पीत द्रव्य लेश्या। पद्म और शुक्ल द्रव्य लेश्या वाले तीर्थंकर भगवान। नील द्रव्य लेश्या वाले तीर्थंकर भगवान। अशुभ लेश्याओं के परिणाम। कृष्ण लेश्या। नील लेश्या। कापोत लेश्या। दिन में सोना, अशुभ लेश्या का लक्षण है। शुभ लेश्या के परिणाम। पीत लेश्या। पद्म लेश्या। शुक्ल लेश्या। द्रव्य लेश्या और भाव लेश्या में कोई अनुबंध नहीं होता। द्रव्य लेश्या जीवन पर्यंत एक जैसी रहती है। भाव लेश्या अन्तर्मुहूर्त में परिवर्तित हो सकती है। मनुष्यों में, तिर्यञ्चों में छहों भाव लेश्याएँ हो सकती हैं।
Sutra
पीत-पद्म-शुक्ललेश्या-द्वि-त्रि-शेषेषु॥22॥
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WINNERS
Day 22
19th Jan, 2023
मंजू जैन
DELHI
WINNER-1
Reema Jain
JAIPUR
WINNER-2
Shashiprabha jain
Kareli
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
कौनसी लेश्या को तेजो लेश्या भी कहा जाता है?
कापोत लेश्या
पीत लेश्या*
पद्म लेश्या
शुक्ल लेश्या
Abhyas (Practice Paper):
Summary
हमने जाना कि जीव के पूर्व जन्म के संस्कारों का प्रभाव उसकी आगामी पर्याय पर पड़ता है
नरक या देव पर्याय से आकर वह मनुष्य या त्रियंच में से क्या बनेगा और क्या नहीं बनेगा इसका भी नियम रहता है
जैसे तीर्थंकर प्रकृति का कर्म बांध कर नरक पर्याय में गया जीव
मनुष्य पर्याय में आकर के तीर्थंकर तो बन सकता है
लेकिन त्रेसठ शलाका पुरुष नहीं बन सकता
इसी प्रकार भवनत्रिक में उत्पन्न जीव मरण करके मनुष्य बन कर मोक्ष तो जा सकता है
किन्तु तीर्थंकर या त्रेसठ शलाका पुरुष नहीं बन सकता
देवों में सिर्फ वैमानिक देव ही अपनी लेश्याविशुद्धि से इन उत्कृष्ट पदों को पाते हैं
हमने जाना कि लेश्या से पता चलता है कि अन्दर की भावात्मक परिणति कितनी कषायों से अनुरंजित हो रही है
लेश्या दो प्रकार की होती है
द्रव्य लेश्या यानि शरीर का रंग
और भाव लेश्या यानि भावों में कषाय की परिणति के कारण उत्पन्न परिणाम
और यह ही महत्त्वपूर्ण है
द्रव्य और भाव लेश्या एक जैसी ही हों ऐसा ज़रूरी नहीं है
द्रव्य लेश्या जीवन पर्यंत एक जैसी रहती है
लेकिन भाव लेश्या अन्तर्मुहूर्त में परिवर्तित हो सकती हैं
सूत्र बाईस - पीत-पद्म-शुक्ललेश्या-द्वि-त्रि-शेषेषु में हमने वैमानिक देवों की लेश्याओं को समझा
पीत या तेजो लेश्या स्वर्ण के समान पीले रंग की
पद्म लेश्या लाल कमल के समान
और शुक्ल लेश्या शंख या चन्द्रमा के समान बिल्कुल सफेद होती है
ये भावात्मक और द्रव्यात्मक दोनों होती हैं
सोलह तीर्थंकर भगवान की पीत
पद्मप्रभ और वासुपूज्य भगवान की पद्म
और चन्द्रप्रभ और पुष्पदन्त भगवान की शुक्ल द्रव्य लेश्या हैं
मुनिसुव्रतनाथ और नेमीनाथ भगवान की नील द्रव्य लेश्या है
कबूतर जैसे grey colour के कापोत द्रव्य लेश्या वाले भी लोग होते हैं
हमने भाव लेश्याओं के परिणामों को भी समझा
कृष्ण लेश्या में अत्यधिक हिंसा, दुराचार, अराजकता और अत्याचार, बैर बांधने वाले भाव होते हैं
नील लेश्या में थोड़ा हल्कापन होता है
जीव प्रमादी, विवेकहीन होगा और हिंसा आदि में भी थोड़ी होगी
कापोत लेश्या में हिंसा आदि में और भी कमी होगी
लेकिन उसके अंदर आलस्य होगा, मूर्खता होगी
दिन में सोना, शास्त्र चर्चा के समय सोना, उसमें रुचि नहीं लेना भी अशुभ लेश्या के परिणाम हैं
शुभ लेश्या में जीव के परिणाम सदाचार मय, धर्ममय, अच्छे होने लग जाते हैं
पीत लेश्या में व्यक्ति के अन्दर धार्मिकता, हित-अहित और भक्ष्य-अभक्ष्य का ज्ञान होगा
पद्म लेश्या में उसके अंदर और ज्यादा विशुद्धि होगी
वह अपने व्रतों के माध्यम से आत्महित के लिए तत्पर होगा
किसी का नुकसान न करने का, दया और क्षमा का भाव रखेगा
शुक्ल लेश्या में उसके लिए दुनिया में कोई भी शत्रु या मित्र नहीं होगा
वह राग-द्वेष से परे होगा
मनुष्यों और तिर्यंचों में छहों भाव लेश्याएँ हो सकती हैं