श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 33

सूत्र - 19

Description

इन्द्रियों के नाम सही तरीके से लेना l ‘स्पर्शन-रसन-घ्राण-चक्षु-श्रोत्राणि’ lसभी इन्द्रियों का आधार स्पर्शन इन्द्रिय है lइन्द्रियों का सम्बन्ध ज्ञानात्मक उपयोग से हैl प्रत्येक जीव में स्पर्शन-इन्द्रिय का क्षयोपशम अलग-अलग होता है lद्रव्य इन्द्रिय और भाव इन्द्रिय किन कर्मों पर निर्भर करती है? इन्द्रियों की रचना कैसे होती है?

ज्ञानेन्द्रिय क्यों कहा?इन्द्रिय जानने का एक माध्यम है lभेद ज्ञान ध्यान में काम आता है lआत्मा को बाहर की जानकारी इन्द्रियाँ ही देती हैं lदुनिया का कोई भी जीव इन्द्रियों में और मुझमें का अन्तर नहीं जानता l ज्ञान आत्मा का है पर उसे सीधे नहीं होता l Meditation में क्या-क्या किया जा सकता है l चक्षु के अलावा बाकि चारों इन्द्रियों के विषय का ज्ञान आत्मा को direct नहीं होता l

Sutra

स्पर्शनरसनघ्राणचक्षु:श्रोत्राणि।l19।l

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WINNERS

Day 33

10th June, 2022

Sunita Jain

Nathdwara

WIINNER- 1

Manoj Kumar Jain

ghaziabad

WINNER-2

Rajesh Jain

Rawath bhata

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

सभी इन्द्रियों का आधार कौनसी इन्द्रिय है?

  1. स्पर्शन इन्द्रिय *

  2. रसना इन्द्रिय

  3. चक्षु इन्द्रिय

  4. मन

Abhyas (Practice Paper):

Summary

  1. सूत्र 19 में हमने पाँचों इन्द्रिय - स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और कर्ण के बारे में जाना

  2. पहली इन्द्रिय स्पर्शन है, न कि स्पर्श

  3. स्पर्शन इन्द्रिय आधारभूत है क्योंकि अन्य इन्द्रियाँ इसके बाद ही बनती हैं

    • यह सभी संसारी जीवों के पास होती है

    • और पूरे शरीर में फ़ैली होती है

    • इसलिए इसकी ज्ञान की प्रवृत्ति सबसे ज्यादा दिखाई देती है

    • सभी जीवों में स्पर्शन-इन्द्रिय का क्षयोपशम होता है किन्तु वह सबका अलग-अलग होता है


  1. इन्द्रियों का सम्बन्ध ज्ञानात्मक उपयोग से है

  2. और इसके लिए मति-ज्ञानावरण-कर्म का क्षयोपशम चाहिए

  3. हमने जाना कि द्रव्य-इन्द्रिय के लिए शरीर-नाम-कर्म आदि का उदय चाहिए

  4. वहीं भाव-इन्द्रिय के लिए वीर्यान्तराय, स्पर्शन-इन्द्रियावरण आदि मतिज्ञानवरण का क्षयोपशम चाहिए

  5. आत्मा ने इन्द्रियों की रचना की तो इन्द्रियों में ज्ञान आया इसलिए इनको ज्ञानेन्द्रिय कहते हैं

  6. इन्द्रियाँ एक करण हैं मतलब जानने का एक माध्यम है जैसे-

    • स्पर्शन से स्पर्श जानना

    • रसन से रस चखना

    • घ्राण से गंध सूँघना

    • चक्षु से रूप देखना

    • कर्ण या श्रोतृ से शब्द सुनना


  1. आत्मा को बाहर की जानकारी इन्द्रियाँ ही देती हैं

    • कर्मों के क्षयोपशम के कारण आत्मा ने इन्द्रिय रचना की

    • और अब वह इन्द्रियों के अधीन हो गयी

    • वह अब सिर्फ इनके माध्यम से ही जानेगी, direct नहीं

    • जैसे आत्मा बिना रसन इन्द्रिय के नहीं पता कर सकती कि नींबू खट्टा है


  1. यह विचारणीय है कि

    • आत्मा का ही ज्ञान है,

    • आत्मा में ही क्षयोपशम है,

    • आत्मा ही जानने की इच्छा कर रही है और

    • आत्मा ही जानने की क्रिया कर रही है

    • सब कुछ आत्मा ही कर रही है

    • लेकिन फिर भी किसी-भी पदार्थ का direct contact आत्मा से नहीं होता


  1. भेद-ज्ञान तभी होगा जब इन्द्रियों की प्रवृत्ति और आत्मा में उपयोग की प्रवृत्ति को हम अच्छे ढंग से समझेंगे

    • पुद्गल का ज्ञान पुद्गल इन्द्रिय के माध्यम से हो रहा है

    • और करने वाला चैतन्य आत्मा है


  1. हमने जाना कि भेद ज्ञान से ध्यान करना सरल हो जाता है

  2. कुछ भी न जानते हुए भी आप बस ध्यान में केवल बैठ जाएँ और देखें

    • हमारा उपयोग क्या कर रहा है?

    • इन्द्रियों से, मन से हमको किन-किन चीजों का ज्ञान हो रहा है? और

    • किस तरह के विचारों से हो रहा है?

  1. यही देखते-देखते आप बहुत समय तक meditation कर सकते हो

  2. meditation में करना कुछ नहीं पड़ता

    • जो जान रहा है,

    • जिसके द्वारा जाना जा रहा है या

    • जो जान कर के खुद और ज्यादा याद कर रहा है

    • इन सबको अलग-अलग देखना होता है कि

      1. यह इन्द्रिय के माध्यम से, मन के माध्यम से जाना जा रहा है

      2. और यह उपयोग स्वभाव से अनुभव में आ रहा है