श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 16

सूत्र - 6

Description

श्रद्धा की विपरीतता ही मिथ्यादर्शन कहलाता है l सम्यग्दर्शन का भाव उपशम, क्षयोपशम और क्षायिक तीनों रूप है l क्षयोपशम सम्यग्दर्शन में किस कर्म का उदय होता है? क्षयोपशम जो हुआ वो किसका हुआ? सम्यग्दर्शन औदयिक भाव क्यों नहीं है l मिथ्यादर्शन का एक ही प्रकार है l क्षयोपशम की प्रकिया बहुत सशक्त है l मिथ्यात्व और सम्यक् प्रकृति कर्म के उदय में आने से क्या-क्या होता है? सम्यक् प्रकृति के अस्तित्व के बिना क्षयोपशम सम्यग्दर्शन नहीं होगा l औदयिक अज्ञान भाव और क्षयोपशम अज्ञान भाव में अन्तर l ज्ञानावरण कर्म का उदय है, तो आपके अन्दर अज्ञान नाम का औदयिक भाव बना रहेगा l बारहवें गुणस्थान तक तो औदयिक भाव है, अज्ञान है l

Sutra

गति-कषाय-लिङ्ग-मिथ्यादर्शना-ज्ञाना-संयता-सिद्ध-लेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्ये-कैकैकैक-षड्भेदाः ।l६।l

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WINNERS

Day 16

4th May, 2022

Sushma Jain

Delhi

WIINNER- 1

मंजु जैन गंगवाल

गुवाहाटी

WINNER-2

S.C.Jain

Ghaziabad

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

सम्यग्दर्शन का भाव किस रूप नहीं है?

  1. उपशम

  2. क्षयोपशम

  3. क्षायिक

  4. औदायिक*

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. सूत्र 6 में हम औदयिक भावों का समझ रहे हैं

  2. हमने जाना कि मिथ्यात्व कर्म, जो कि दर्शन मोहनीय का एक भेद है, के उदय में मिथ्यादर्शन औदयिक भाव उत्पन्न होता है

    • इसमें तत्त्व पर सच्चा श्रद्धान नहीं बनता, विपरीत रहता है

    • फिर चाहे वो देव-शास्त्र-गुरु के प्रति हो या जीवादि सात तत्त्वों के प्रति

    • यह एक ही प्रकार का होता है

    • और इसके उदय में मिथ्यादृष्टि नाम का पहला गुणस्थान होता है


  1. मिथ्यादर्शन की विपरीत श्रद्धा को उल्टी करने से सम्यग्दर्शन होता है

  1. हमने सम्यग्दर्शन और कर्म उदय के बारे में कुछ गूढ़ सैद्धांतिक बातें समझी

    • मिथ्यादर्शन एक औदयिक भाव है

      • वहीं सम्यग्दर्शन उपशम, क्षयोपशम और क्षायिक तीनों रूप है; लेकिन औदयिक नहीं है

    • क्षयोपशम सम्यग्दर्शन में सम्यक्त्व प्रकृति का उदय होता है मगर फिर भी उसे औदयिक भाव नहीं कहते

      • क्योंकि यहाँ मुख्यता शेष छः प्रकृति यानि मिथ्यात्व, सम्यक-मिथ्यात्व और चार अनंतानुबंधी कषाय के क्षयोपशम की है

      • सम्यक्त्व के उदय की अपेक्षा

    • सम्यक्त्व के उदय से इसमें सिर्फ चल-मल-अगाढ़ दोष लगते हैं

      • वहीं शेष किसी प्रकृति के क्षयोपशम हटने से सम्यग्दर्शन का भाव ही समाप्त हो जाता है

      • जबतक इन छह प्रकृतियों के सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय और सद् अवस्था रूप उपशम रहेगा तब तक ही सम्यग्दर्शन रहेगा

      • यदि इनमें से एक भी प्रकृति उखड़ गई तो गुणस्थान गिर जाएगा


  1. क्षयोपशम की प्रकिया बहुत सशक्त है

    • क्योंकि यदि यह प्रक्रिया थोड़ी-सी भी डामाडोल हुई यानि हमारा भाव या श्रद्धा बिगड़ी तो दबाये हुए कर्मों से कुछ भी उदय में आ सकता है

    • मिथ्यात्व कर्म उदय में आ गया तो तुरन्त चौथे से पहला गुणस्थान हो जायेगा

    • फिर यदि एक अन्तर्मुहूर्त बाद, श्रद्धा फिर सही हुई तो फिर क्षयोपशम हो सकता है

    • और सम्यक्त्व के उदय होने पर फिर क्षयोपशम सम्यग्दर्शन हो सकता है

    • इस तरह सम्यग्दर्शन का क्षयोपशम कई बार हो सकता है

  1. उपशम भाव की विशुद्धि क्षयोपशम भाव की विशुद्धि से अधिक होती है

    • परन्तु यह भाव अन्तर्मुहूर्त के लिए ही रहता है

    • वहीं क्षयोपशम भाव लगातार बहुत समय के लिए रह सकता है

    • इसलिए आज हमें सिर्फ क्षयोपशम सम्यक् दृष्टि ही दिखाई देंगे


  1. हमने जाना कि जब तक ज्ञानस्वभावी आत्मा का ज्ञान प्रकट न हो जाए तब तक आत्मा में अज्ञान औदयिक भाव रहता है

  2. यह अज्ञान क्षयोपशम भाव में मिथ्यात्व के उदय होने वाले अज्ञान से भिन्न है

    • उसमें कुमति, कुश्रुति और विहंग ज्ञान के क्षयोपशम भाव आते हैं

    • और वह तीसरे गुणस्थान तक होता है


  1. यह अज्ञान औदयिक भाव मिथ्यादृष्टियों और सम्यग्दृष्टियों दोनों में होगा

  2. यह केवल ज्ञानावरण कर्म के उदय से होता है

  3. और पहले से बारहवें गुणस्थान तक रहता है

  4. तेरहवें गुणस्थान में आत्मा यत् स्वभावी होता है

  5. और इस अज्ञान भाव से रहित होता है