श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 13
सूत्र - 09
सूत्र - 09
सर्वज्ञ की बात वैज्ञानिक भी स्वीकारते है। आकाश के अनन्त प्रदेश है। लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों में बहुत सारे पुद्गल द्रव्य रहते हैं। जीव में दो प्रकार के प्रदेश होते है।
आकाशस्यानन्ताः॥09॥
वंदना जैन
ऋषिकेश
WINNER-1
Vijay Jain
Indore
WINNER-2
सुनीता जोगी
पुणे
WINNER-3
निम्न में से क्या असंख्यात है?
जीव द्रव्य
पुद्गल द्रव्य
आकाश के प्रदेश
लोकाकाश के प्रदेश*
पंचम अध्याय में हम cosmos के अन्दर living और non-living entities का real nature समझ रहे हैं
इससे हमारे अन्दर अलौकिक जगत के प्रति अद्भुत विश्वास पैदा होता है
क्योंकि जिन चीजें को हम अपने ज्ञान से जान-देख नहीं सकते उन्हें हम सर्वज्ञ के ज्ञान से जानते और देखते हैं
वैज्ञानिक भी मानते हैं कि सर्वज्ञ की तरह ही इस universe में कोई सब कुछ जानने और देखने वाला है
Einstein ने भी माना है कि absolute truth को कोई universal observer ही जान सकता है
लेकिन वैज्ञानिकों को उनके बारे में कुछ भी नहीं पता है
हम तीर्थंकरों के माध्यम से सब जानते हैं
Jainism की philosophy में एक ही ईश्वर पूरे विश्व को देखने वाला नहीं होता
यहाँ हर आत्मा के अन्दर वही दिव्यत्त्व और देवत्त्व छिपा हुआ है
Universal observer भी अनंत होते हैं
हमने जाना कि संख्यात, असंख्यात और अनन्त की गणना भी अपने आप में science है
इस विज्ञान से आध्यात्मिक लोग अपने ज्ञान से अनन्त को भी जानने लगते हैं
उसकी गणना और तुलना करके अपने ज्ञान को असीमित बनाते हैं
सूत्र 5 आकाशस्यानन्ताः से हमने जाना कि आकाश द्रव्य के अनन्त प्रदेश हैं
सूत्र में प्रदेश शब्द पिछले सूत्र की अनुवृत्ति से आया है
प्रदेश परमाणु का अविभाज्य कण होता है
जिसका कोई further part नहीं हो सकता
पुद्गल के माध्यम से ही सब द्रव्यों के प्रदेशों को जाना जाता है
यह एक unit है
आकाश का एक प्रदेश पुद्गल परमाणु के बराबर होता है
हमने जाना कि इस universe यानि लोकाकाश में पुद्गल द्रव्य ही अनन्त प्रदेश वाला होता है
आकाश द्रव्य भी इस universe के परे ही अनन्त प्रदेश का होता है
लोकाकाश असंख्यात प्रदेश वाला है
इसके असंख्यात प्रदेशों में असंख्यात प्रदेश वाला एक धर्म द्रव्य, एक अधर्म द्रव्य और अनंत जीव द्रव्य रहते हैं
इसमें अनंतानंत पुद्गल द्रव्य भी रहते हैं
ऐसा पुद्गल परमाणु की अवगाहन शक्ति के कारण होता है
आकाश की अवगाहन शक्ति के कारण सभी द्रव्य आकाश में रहते हैं
हर द्रव्य के प्रदेश अपने आप में संकोच और विस्तार स्वभाव वाले होते हैं
सब जीवों के अन्दर और पुद्गल के अंदर भी संकोच विस्तार का स्वभाव है
हमने जाना कि परमाणु की अवगाहन शक्ति के कारण एक परमाणु भी अपने अन्दर अनन्त परमाणुओं को समाहित कर सकता है
जैसे perfume की एक बूँद से उसकी खुशबू अपने आप सब जगह पहुँच जाती है
एक बार perfume लगे कपडे के संपर्क में आने से वो भी खुशबूदार हो जाते हैं
पुद्गल द्रव्य की अवगाहन शक्ति के फैलाव से यह सब होता है
मुनि श्री के अनुसार atom bomb का सिद्धांत भी इसी पर आधारित है
यहाँ एक परमाणु में अनन्त परमाणुओं की शक्ति को विज्ञान ने discover किया है
हमने जाना कि जीव और पुद्गल के प्रदेश कभी भी स्थिर नहीं रहते
जीव में दो प्रकार के प्रदेश होते हैं
पहला चल प्रदेश - जो हमेशा चलायमान रहते हैं, घूमते रहते हैं
इनमें activity होती है, स्पंदन होता रहता है
और अचल प्रदेश - ये गिनती के केवल आठ होते हैं
अचल होते हुए भी इनमें स्पंदन होता है
संसारी जीव के अन्दर चल प्रदेश कभी भी स्थित नहीं रहते
कुछ extra activity करने से
ज्यादा ग़ुस्से करने से
या ज्यादा पीड़ा होने पर
ये प्रदेश ज्यादा चलायमान हो जाते हैं
इनका परस्पर परिस्पंदन विग्रह गति में भी चलता है
जब जीव एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में जाता है
इस परिस्पंदन के कारण ही कर्मों का आस्रव और बंध होता है