श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 32
सूत्र - 11
सूत्र - 11
दूसरा संहनन- वज्रनाराच संहनन। तीसरा नाराच संहनन। अर्द्ध नाराच संहनन चौथा संहनन। कीलक संहनन पाँचवाँ संहनन। छठवाँ असम्प्राप्ता सृपाटिका संहनन। पंचम काल में बाद के तीन संहनन होते हैं। संहनन की शक्ति से ध्यान कर पाते हैं।
गति-जाति-शरीराङ्गोपाङ्ग-निर्माण-बंधन-संघात-संस्थान-संहनन-स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णानुपूर्व्यगुरु- लघूपघात-परघाता-तपो-द्योतोच्छ्वास-विहायोग-तयः प्रत्येक-शरीर-त्रस-सुभग-सुस्वर-शुभ- सूक्ष्मपर्याप्ति-स्थिरादेय-यशःकीर्ति-सेतराणि तीर्थकरत्वं च॥8.11॥
11th, Jun 2024
रजनी जैन
बडौत
WINNER-1
Neetu Bharill Jain
Guna M.P.
WINNER-2
Santosh Jain
Vasundhara
WINNER-3
अनुत्तर विमान में कौनसे संहनन वाला जीव जाता है?
वज्रवृषभनाराच संहनन*
वज्रनाराच संहनन
नाराच संहनन
अर्द्धनाराच संहनन
सूत्र ग्यारह में हमने वज्र-वृषभ-नाराच संहनन नामकर्म के वर्णन में जाना कि
प्राकृत में वज्र को बज्जर कहते हैं
इसलिए जिसके अंग वज्र के होते हैं
उसे वज्र-अंग-बली या बजरंगबली कहते हैं
सभी तीर्थंकर आदि महापुरुष ऐसे ही वज्र-वृषभ-नाराच संहनन वाले बजरंगबली हुए हैं
पहले संहनन से वृषभ शब्द हटाकर वज्र-नाराच संहनन बन जाता है
इसमें हड्डियों की आकृति और नाराच वज्र के होते हैं
उसके ऊपर वेष्टन या वृषभ वज्र के नहीं होते
यह अपेक्षाकृत थोड़ा सा कमजोर होता है
तीसरे नाराच संहनन में वज्र नहीं होता
नाराच और कीलियों से सहित हड्डियाँ होती हैं
लेकिन उनके ऊपर वेष्टन नहीं होते
कीलियों से जुड़े इन हड्डियों में मजबूती आ जाती है
पहले के तीनों संहनन उत्कृष्ट और प्रशस्त होते हैं
अच्छे से अच्छे और बुरे से बुरे काम इन्हीं से होते हैं
और फल मिलते हैं
वज्र-वृषभ-नाराच संहनन वाला जीव ही मोक्ष और पंच अनुत्तर विमानों में जाता है
वज्र-नाराच संहनन वाले अनुदिश विमान तक ही जन्म लेंगे
जैसे-जैसे संहनन कम होता जाता है
जीव नीचे के विमानों में ही जाता है
क्योंकि उसकी शक्ति, ध्यान, कर्म निर्जरा, अर्जित पुण्य आदि उसी तरह का होता है
हमने जाना कि ध्यान करना और कर्म करना दोनों संहनन पर depend करते हैं
‘ कम्मेसूरा सो धम्मेसूरा’
अर्थात् जो कर्म में शूर होते हैं वे धर्म में भी शूर होकर बड़ी-बड़ी पदवियों को प्राप्त करते हैं
जो बड़े-बड़े चक्र चलाते हैं युद्ध करते हैं
वे ही लोग अपने अन्दर समाधि के चक्र चलाते हैं और कर्मों से युद्ध करते हैं
नीचे के नरकों के लिए भी अच्छे संहनन चाहिए होते हैं
जैसे सप्तम नरक के योग्य पाप करने के लिए वज्र-वृषभ-नाराच संहनन चाहिए
अर्धनाराच संहनन में नाराचपना यानि कीलियाँ आर-पार नहीं निकलतीं
आर-पार होने से चीज अच्छी मजबूती से जुड़ती है
कीलियों का joint एक side तो होता है
लेकिन दूसरी side नहीं होता
पाँचवें कीलक संहनन में हड्डियों में हड्डियाँ फँस जाती है
हड्डियाें की shape इस तरीके से होती है कि उनकी सन्धियाँ ही आपस में जुड़ जाती हैं
छटवें असंप्राप्तासृपाटिका संहनन में हड्डियाँ आपस में बँधी नहीं होती
केवल हड्डियों की शिराएँ मांस में बँधी होती हैं
रेंगने वाले सर्प, छिपकली आदि सरीसृप जाति के बड़े लचीले जीवों के समान
यह संहनन सबसे जघन्य और हल्के दर्जे का होता है
जिसमें धर्म ध्यान नहीं हो सकता
इनके ऊपर छोटी सी चीज गिरने पर हड्डियाँ टूट जाती है
पंचम काल में ऊपर के तीन संहनन नहीं होते
last के ही तीन संहनन होते हैं
इसलिए वर्तमान में मोक्ष और अनुत्तर आदि विमान नहीं मिलते
और न ही नीचे के नरक
असंप्राप्तासृपाटिका संहनन वाला जीव लान्तव-कापिष्ट स्वर्ग तक
कीलक संहनन वाला बारहवें स्वर्ग तक
और अर्धनाराच संहनन वाला जीव सोलहवें स्वर्ग तक पहुँच सकता है
इसलिए वर्तमान में अधिक से अधिक सोलहवें स्वर्ग तक पहुँचना संभव है
हमने जाना कि संहननों के आधार पर ही धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान होते हैं
क्षपक श्रेणी पर चढ़ने वाले जीव नियम से वज्र-वृषभ-नाराच संहनन वाले ही होंगे
क्योंकि वे नियम से मोक्ष प्राप्त करते हैं
उपशम श्रेणी पर पहले तीन संहनन वाले जीव चढ़ सकते हैं
मुनि श्री ने समझाया कि
संस्थान से body को shape मिलती है
और संहनन से strength
दोनों चीजें अलग-अलग कर्मों के फल से मिलती हैं
डॉक्टर blood तो बदल सकते हैं
पर संहनन नहीं
आजकल के बच्चों को समझना चाहिए कि संहनन हड्डियों के ऊपर depend करता है
बाहरी दिखावट पर नहीं
sixpack के चक्कर में, gym जाकर और protein के डिब्बे खाकर
वे अपनी body के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं