श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 13
सूत्र - 5
सूत्र - 5
किंचित त्याग के परिणाम उत्पन्न न होने देना- अप्रत्याख्यान कषाय है l अप्रत्याख्यान कषाय मतलब बारह व्रतों को धारण नहीं करने देना l क्रम-क्रम से ही ये चारों कषाय काम करती हैं और क्रम से ही इनका अभाव होता है l प्रत्याख्यान कषाय का सद्भाव महाव्रत धारण नहीं करने देता l चार कषाय हमारे आत्मा में चार दरवाजे है, जिन्हें क्रम से खोलकर ही संयम की प्राप्ति होगी l आत्मा में क्षयोपशम चारित्र भाव प्रकट होने की विधि l
ज्ञानाज्ञान-दर्शन-लब्धयश्चतुस्त्रि-त्रि-पंचभेदा: सम्यक्त्व चारित्र-संयमासंयमाश्च।l५।l
Meenu Jain
Ballabgarh, Faridabad
WIINNER- 1
Mc.Jain
Kota
WINNER-2
Shilpi Chabra
Indore
WINNER-3
किस कषाय के कारण किंचित भी त्याग के परिणाम उत्पन्न नहीं होते?
अनंतानुबंधी कषाय
प्रत्याख्यान कषाय
अप्रत्याख्यान कषाय *
संज्वलन कषाय
हमने कर्म-सिद्धान्त के अनुसार कषाय की व्यवस्था को समझा
अनन्तानुबन्धी कषाय: क्रोध, मान, माया, लोभ सम्यग्दर्शन का घात करती है
सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में अनन्तानुबन्धी कषाय का भी उपशमन या क्षय होना चाहिए
मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी कषाय सम्यग्दर्शन होने नहीं देते
प्रत्याख्यान का अर्थ होता है त्याग और अ मतलब इषत् जिसका अर्थ थोड़ा त्याग
अतः अप्रत्याख्यान कषाय हमें किंचित त्याग के परिणाम उत्पन्न नहीं होने देती
यह देश संयम का घात करती है
और बारह व्रतों को धारण नहीं करने देती यानि प्रतिमाओं को ग्रहण नहीं करने देती
प्रत्याख्यान कषाय का सद्भाव महाव्रत धारण नहीं करने देता
इससे सकल संयम का घात होता है
ये तीनों प्रकार की कषायें हमारी आत्मा में त्याग भाव, संयम भाव का घात करती हैं
और इनके स्पर्धक सर्वघाती हैं
अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन कषायें क्रम-क्रम से ही काम करती हैं और क्रम से ही इनका अभाव होता है
यदि अनन्तानुबन्धी का उदय है तो अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन कषाय का भी होगा
अनन्तानुबन्धी का अभाव होगा तब सम्यग्दर्शन होगा
अप्रत्याख्यान का अभाव होगा देशव्रत आएँगे
और प्रत्याख्यान का अभाव हो गया तो सकल संयम होगा
यदि अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान तीनों का अभाव हो गया तो संज्वलन कषाय बचेगी
यह कषाय संयम के साथ बनी रहती है और यथाख्यात चारित्र नहीं होने देती
यह कषाय दसवें गुणस्थान तक रहती है और वहाँ तक यथाख्यात चारित्र नहीं होता
चार कषाय हमारे आत्मा में चार दरवाजे है, जिन्हें क्रम से खोलकर ही संयम की प्राप्ति होगी
सैद्धान्तिक भाषा में बारह कषायों यानि अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान के चार चार भेद क्रोध, मान, माया और लोभ के सर्वघाती स्पर्धकों में क्षयोपशम भाव घटित होगा
इन बारह कषायों के सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभावी क्षय होने से और उपशमन भी होने से क्षयोपशम चारित्र होता है
बची हुई संज्वलन कषाय देशघाती प्रकृति की है
इसमें दोनों देशघाती और सर्वघाती स्पर्धक हो सकते हैं
सकल चारित्र लेने के पश्चात् संज्वलन कषाय का उदय रहेगा
और उसके साथ-साथ जो भी नौ नोकषाय हैं उनमें से भी किसी भी कषाय का उदय रह सकता है