श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 48
सूत्र -35
सूत्र -35
अच्छे और बुरे आजीविका ज्ञान जरूरी ही है, जीवन को शुद्ध, पवित्र रखने हेतु। बिना परख का काम, कराएगी अच्छाई का नुकसान। जिसका जैसे स्वभाव, वैसे ही हो उसकी उपयोगिता। धर्म ध्यान में ही हमारी, हमारे धर्म की अच्छाई। रौद्र ध्यान के अनेक निमित्त। खेल ऐसे हो, जिससे मिले जीवन का ज्ञान, न बने रौद्र ध्यान का निमित्त। गलत खेल, बढ़ाते हैं- दु:साहस, होता है- रौद्र ध्यान। job vs Luxurious life। अति विलासता का संग्रह, अति परिग्रह, रौद्र ध्यान का कारण। परिग्रह, विषय संरक्षण, ही होता है रौद्र ध्यान का कारण और आर्त ध्यान का भी कारण।
हिंसानृत-स्तेय-विषय-संरक्षणेभ्यो रौद्र-मविरत-देशविरतयोः॥9.35॥
08, Jan 2025
WINNER-1
WINNER-2
WINNER-3
बंदूक आदि चलाने वाले आदि गलत खेलों से कौनसा ध्यान बढ़ता है?
आर्त ध्यान
रौद्र ध्यान*
धर्म्य ध्यान
शुक्ल ध्यान
हमने जाना-
रौद्र ध्यान से बचने के लिए हमें
classification का attitude रखना चाहिए।
आजकल बच्चों को schools में सिखाया जाता है कि सब बराबर हैं,
लेकिन useful और useless,
harmful और beneficial चीजों में अन्तर होता है।
हम pure water use करते हैं
dirty water नहीं।
सब human beings तो हैं
लेकिन जो गलत तरह से धन कमाते हैं
यदि हम उन्हें समान मानकर,
उनके साथ रिश्तेदारियाँ बनाकर enjoy करेंगे
तो हम गुड़ गोबर कर देंगे।
हम, लोगों से अपना व्यवहार limit में रखेंगे
तभी हम अपना जीवन शुद्ध बना पाएँगे।
हम उच्च जैन कुल के, अच्छी quality के लोग हैं।
अगर हम निम्न quality के लोगों से मिलेंगे तो हम गोबर बन जाएँगे।
हमें अपने बच्चों को classification का यह practical ज्ञान देकर safe रखना चाहिये।
जिसका जैसा use है उसको वैसे ही use करना चाहिए।
सबको mix नहीं करना चाहिए।
जैसे गोबर का use कंडा बनाने और कच्ची जमीन लेपने में है
और गुड़ का use खाने में।
स्कूलों में सब एक साथ बैठते हैं,
जिनके घरों में nonveg बनता है
हमारे बच्चे उनका भी tiffin share करते हैं,
उनके साथ parties करते हैं,
यह सब रौद्रध्यान होता है।
हमें उन्हें धर्म ध्यान की शिक्षा देनी चाहिए
ताकि वे safe रहें और धर्म जीवित रहे।
हिंसा के साथ झूठ भी आ जाता है।
जो हिंसा में आनन्द मनाता है
वह झूठ में भी खुशी मनाएगा।
क्योंकि वह गलत बोलेगा, झूठ बोलकर लोगों को फंसाएगा,
दूसरों को धोखा देकर प्रसन्न होगा,
अच्छे लोगों को अपने जैसा गोबर बनाने पर खुश होगा।
आज गोबर ही बढ़ता जा रहा है
गुड़ अपनी quality भूल रहा है।
जिससे धर्म की हानि हो रही है
क्योंकि हम समझते नहीं कि हमारी अच्छाई धर्म ध्यान करने में है,
रौद्र ध्यान करने में नहीं।
पहले बच्चे games खेलते हुए भी कुछ सीखते थे,
धर्म करते थे,
खेल से उनकी योग्यता पता चल जाती थी।
जैसे श्रुत केवली गोवर्धन जी ने बालक भद्रबाहु को
एक के ऊपर एक चौदह गोटियाँ लगाते हुए देख समझ लिया था
कि यह बच्चा चौदह पूर्व का धारी श्रुत केवली बनेगा।
तब उन्होंने उन्हें पढ़ा-लिखा कर श्रुत केवली बना दिया।
इसके विपरीत, आज के games हिंसात्मक होते हैं।
freefire जैसे games से बच्चे बंदूक चलाना सीखते हैं
और हिंसा करके खुश होते हैं।
अपने दुःसाहस में वे किसी को भी मारने पर उतारू हो जाते हैं,
अपने माता-पीता को भी गोली मार देते हैं।
खुद भी, कहीं से भी कूद पड़ते हैं।
यह सब हिंसात्मक रौद्र ध्यान होता है
और इन खेलों के नाम पर झूठ बोला जाता है,
और हमारे पैसों की चोरी करी जाती है।
विलासिता की चीज़ों को इकट्ठा करके-
परिग्रह में आनन्द मनाने से,
लोभ-कषाय की तीव्रता से,
हम विषय-संरक्षण रौद्र ध्यान करते हैं।
हम चाहते हैं कि हमारे पास सबसे ज्यादा चीज़ें हों,
हम luxurious life जियें
इसलिए job करते हैं।
हम अपने तरीके से घूम पाएं, ऐश कर पाएँ,
यदि यह सोच कर बेटियाँ job करती हैं
तो यह उनका रौद्रध्यान होता है।
मुनि श्री कहते हैं कि
job करने की,
पैसा कमाने की,
अपना grade बनाने की मनाही नहीं है।
बस हमें ज्ञान होना चाहिए
कि यह सब बाहरी दिखावा है।
यह परिग्रह हमारी विलासिता का कारण बना हुआ है,
इसमें हमारा सुख नहीं है।
परिग्रह अर्जन करके हर्षित होने से हमारा रौद्र ध्यान होगा।
और जब यह हमसे छूट जाएगा तो हमें दुःख होने से आर्त ध्यान होगा।
इसलिए हम इनमें ज्यादा indulge न हों।
आज के परिप्रेक्ष्य में
Mobile में apps download करके save रखना भी
विषय-संरक्षण परिग्रह का ही रूप है।