श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 29
सूत्र - 22
सूत्र - 22
परिणमन को समझे। सादि परिणमन स्वाभाविक परिणमन होता है। वैस्रसिक परिणाम आपको कम दिखेंगे। जो निश्चय और व्यवहार का अंतर नहीं जानते वे ये अवश्य पढ़ें। वैस्रसिक और प्रायोगिक में अंतर। गुणस्थान बदलना हमारे हाथ में नहीं।
वर्तना-परिणाम-क्रिया: परत्वापरत्वे च कालस्य ॥5.22॥
मनीषा
बड़ौत
WINNER-1
Surekha Kothari
गुलबर्गा
WINNER-2
Anupama jain
गुजरात
WINNER-3
गुरु जो उपदेश देते हैं, वो कैसा है?
अकाल
वैस्रसिक
प्रायोगिक*
अप्रायोगिक
सूत्र बाईस वर्तना-परिणाम-क्रिया: परत्वापरत्वे च कालस्य में हम काल द्रव्य के प्रकार, लक्षण और उपकारों को जान रहे हैं
परमार्थ या निश्चय काल का मुख्य लक्षण वर्तना है
वर्तना शब्द के आगे प्र लगाकर समझने की कोशिश करें तो प्रवर्तना बनता है
अर्थात प्रवर्तन होना
परिणमन इससे स्थूल होता है
यह परिणाम से जुडा है - परिणमनं परिणाम:
अपने परिणमन स्वभाव के कारण हर द्रव्य स्वभाव या विभाव रूप परिणमन कर रहा है
यही परिणमन परिणाम है
इससे ही व्यवहार काल शुरू हो जाता है
फिर चाहे वो परिणमन एक समय का ही हो
उस परिणमन को बनाए रखने की स्थिति ही वर्तना है
हमने जाना कि उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य और षट्गुणी हानि-वृद्दि में प्रति समय परिवर्तन होता है
लेकिन यह परिणमन समय सापेक्ष देखने से व्यवहार होगा
और केवल परिणमन की दृष्टि से देखना वर्तना होगी
परिणमन अनादि और सादि के भेद से दो प्रकार का होता है
दोनों ही वर्तना के हेतु से होते हैं
अनादि परिणमन में परिणमन की क्रिया अनादिकाल से उसी रूप चल रही है
जैसे अनादि व्यवस्था वाली चीजें - अकृत्रिम जिनबिम्ब, आठ पृथ्वियाँ, कुलाचल पर्वत आदि
इनके परिणमन अनादि से बिना किसी अंतर के वैसे ही रूप में होते हैं
और हमें पकड़ने में नहीं आते
सादि परिणमन दो प्रकार का होता है - वैस्रसिक और प्रायोगिक
वैस्रसिक अर्थात स्वभाव
वैस्रसिक परिणमन स्वभाव से, पुरुष के प्रयोग की अपेक्षा रहित होते हैं
जैसे बादल बनना, इंद्रधनुष बनना आदि
इन्हें कोई मनुष्य या भगवान नहीं बनाता
ये अपने आप बनते हैं
सूत्र में प्रयुक्त परिणाम वैस्रसिक परिणमन के परिणाम के लिए ही आया है
प्रायोगिक परिणमन पुरूष कृत होता है
इसे हम प्रयोग के माध्यम से कराते हैं
जैसे वस्त्र, चटाई, chair, Table, घड़ी आदि
हमें दिखने वाली चीजें अक्सर प्रायोगिक परिणाम होती हैं
वैस्रसिक परिणाम कम दिखते हैं
बादल, हवाएँ, मौसम आदि अपने आप बदलते हैं
मौसम विभाग भी इन्हें केवल देखता है
इनका कर्त्ता नहीं होता
हमने जाना कि जीव के अंदर कर्म के उपशम आदि से उत्पन्न भाव भी वैस्रसिक परिणाम होते हैं
ये उन लोगों के लिए समझना ज़रूरी है
जो निश्चय और व्यवहार का अंतर,
द्रव्य और भाव लिंग का अंतर
गुणस्थानों के भाव और उनकी बाह्यक्रियाओं से उत्पन्न भावों के अंतर को नहीं जानते
इससे बहुत गुत्थियां सुलझेंगी
गुणस्थान कर्म आश्रित होता है
कर्मों के उपशमन से औपशमिक और क्षय से क्षायिक सम्यग्दर्शन होगा
कर्म आश्रित परिणाम वैस्रसिक हैं
अतः गुणस्थान भी वैस्रसिक है
हमारे हाथ में केवल बाहरी परिणाम हैं
जैसे देव-शास्त्र-गुरू की श्रद्धा, सात तत्व पर आस्था रखना
लेकिन हम अपने गुणस्थान नहीं बदल सकते हैं
इसे हमने वैस्रसिक और प्रायोगिक में अंतर से, वातावरण में परिवर्तन के उदाहरण, से समझा
जहरीली गैस वाली फैक्ट्रियां लगाकर और कार्बन उत्सर्जन कर
हमने वातावरण को बिगाड़ा
पर इससे temperature कितना maintain होगा ये हम नहीं कह सकते
बढ़ती गर्मी, असमय बरसात आदि वैस्रसिक परिणाम हैं
हम इसको control करने के लिए फैक्ट्री आदि बंद कर सकते हैं
पर environment को pure करना अपने हाथ में नहीं है
ऐसा नहीं कि आज हम कुछ करें और तुरंत उसका Result सामने दिख जाए
इसी प्रकार कर्मों के उपशमन आदि अपने हाथ में नहीं हैं
कि मन में भाव किया और तुरंत कर्मों का उपशमन कर हम सम्यग्दृष्टि हो गए
मुनिश्री ने दूसरों की बातों में आकर भटकते हुए लोगों को समझाया कि
हमारे पास केवल बाहरी चीजों का ही control है
गुरु का उपदेश, शिष्य का उसे अपनाना दोनों प्रायोगिक हैं
लेकिन कर्मों का उपशमन आदि वैस्रसिक है
वो जब होगा तब होगा