श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 01
सूत्र - 01
Description
तीनों लोकों में जीव का वर्णन । सम्यग्दृष्टि जीव को नरकों का वर्णन सुनने से संवेग भाव में वृद्धि होती है । वातवलयों के नाम । सातों पृथ्वियों के नामों की सार्थकता । रत्नप्रभा । शर्कराप्रभा । बालुकाप्रभा । पंकप्रभा । धूमप्रभा । तमःप्रभा । महातमःप्रभा । काले पदार्थों की भी अपनी एक अलग कांति होती है । ये पृथ्वियाँ एक के नीचे एक क्रमशः अवस्थित है । अधोलोक की सात पृथ्वियाँ छः राजू क्षेत्र में है । लोक में सबसे नीचे एक राजू में कलकला पृथ्वी है । रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन भाग । खर भाग के सोलह भाग ।
Sutra
रत्न-शर्करा-बालुका-पंक-धूम-तमो-महातम:प्रभाभूमयोघनाम्बु-वाताकाशप्रतिष्ठा: सप्ताऽधोऽध: ॥1॥
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WINNERS
Day 01
19th Sept, 2022
सौ. राजश्री महावीर
झांबरे. उस्मानाबाद
WIINNER- 1
Sudha
Ajmer
WINNER-2
Kiran
Sagar
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
नरक की अंतिम पृथ्वी का नाम क्या है ?
तमःप्रभा
पंक प्रभा
रत्न प्रभा
महातमः प्रभा *
Abhyas (Practice Paper):
Summary
CLASS-01: Summary
हम इस अध्याय में जानेंगे कि तीनों लोकों में जीव कहाँ कहाँ और किस-किस पर्याय में रहते हैं
इसका प्रारम्भ सबसे नीचे के लोक, अधोलोक के वर्णन से होता है
अधोलोक के ऊपर मध्यलोक होता है और सबसे ऊपर उर्ध्वलोक
संसार में सबसे अधिक दुःख नरकों में ही है
और आचार्य अकलंक देव ने अनुसार, इन दुखों का वर्णन सुनकर ही
सम्यग्दृष्टि जीवों को संसार से भीति लगती है
संवेग भाव की वृद्धि होती हैं
अतः हमें इसे अच्छे से सुनकर, इसपर श्रद्धा करनी चाहिए
सूत्र-1 में हमने नरक की सात पृथ्वियों और तीन वातवलयों के बारे में जाना
घनोदधि, घन और तनु वातवलय के आधार पर नरकों की भूमियाँ प्रतिष्ठित हैं
ये सातों पृथ्वियां की अनवर्त-संज्ञाः है
अर्थात इन भूमियों के जैसे नाम है, वैसे ही इनकी स्थितियाँ भी हैं
क्रमशः एक के नीचे एक स्तिथ इन भूमियों के नाम हैं
रत्नों की प्रभा के समान जगमगाती हुई रत्नप्रभा
शर्करा यानि बालू की आभा के समान प्रभा वाली शर्कराप्रभा
बालुका यानि शर्करा से थोड़ी-सी ज्यादा fine प्रभा वाली बालुकाप्रभा
पंक यानि कीचड़ की प्रभा वाली पंकप्रभा
धूम यानि धुएं की प्रभा वाली धूमप्रभा
तम यानि अंधकार की कांति वाली तमःप्रभा
और विशेष, गहन अंधकार की प्रभा वाली महातमःप्रभा
अंधकार की कांती या brightness को भी यहाँ दो प्रकार का बताया गया है
सामान्य अर्थात तमः
और विशेष अर्थात महातमः
सबसे नीचे की सातवीं पृथ्वी के नीचे के एक राजू का स्थान खाली है
क्योंकि मध्यलोक से नीचे तक सात राजू का विस्तार है
और अधोलोक की सात पृथ्वियाँ छः राजू क्षेत्र में ही हैं
पहली दो एक राजू में शेष सभी एक-एक राजू में
इसमें निगोद जीव के साथ अन्य स्थावरकाय रहते हैं
इसको 'कलकला या कलंकला' पृथ्वी भी कहा गया है
पहली रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन भाग होते हैं-
सोलह हजार योजन मोटा खर भाग
चौरासी हजार योजन मोटा पंक भाग
और अस्सी हजार योजन मोटा अब्बहुल भाग
सोलह हजार योजन के खर भाग में एक-एक हज़ार योजन की सोलह परतें हैं, slab हैं
ये सभी अलग-अलग तरह के रत्नों की बनी हुई हैं
इसलिए इस पूरी पृथ्वी का नाम रत्नप्रभा है
इसकी पहली भूमि को चित्रा भूमि कहते हैं
उसके बाद वज्रा, वैडूर्य इत्यादि कुल सोलह परतें हैं