श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 02
सूत्र - 01,02
Description
पंक भाग में अधोलोक के अकृत्रिम जिनालय । सातों पृथ्वियों का बाहुल्य । ये सभी पृथ्वियाँ वातवलयों के आधार पर टिकी हुई हैं । वातवलयों के रंग । पृथ्वियों में बिलों की संख्या । बिलों के प्रकार व उनकी सँख्या । पटलों में बिलों की संरचना ।
Sutra
रत्न-शर्करा-बालुका-पंक-धूम-तमो-महातम:प्रभाभूमयोघनाम्बु-वाताकाशप्रतिष्ठा: सप्ताऽधोऽध: ॥1॥
तासुत्रिंशत्-पञ्चविंशति-पञ्चदश-दश-त्रि-पञ्चोनैक-नरकशतसहस्राणि-पञ्च चैव यथाक्रमम्।l२।l
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WINNERS
Day 02
20th Sept, 2022
Archana Jain
Burhar (Shahdol)
WIINNER- 1
सो अनिता पहाड़े
औरंगाबाद
WINNER-2
Sunita Jain
Pune maharashtra
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
नरक की सातों पृथ्वियों में कुल कितने लाख बिल हैं?
80
30
84*
पाँच कम एक लाख
Abhyas (Practice Paper):
Summary
हमने जाना कि खर भाग की रत्नों की पृथ्वियों के नीचे, रत्नप्रभा भूमि का दूसरा भाग पंक भाग शुरू होता है
ये चौरासी हजार योजन मोटा है और इसका फैलाव एक राजू तक है
इसमें भवनवासी और व्यंतर देवों के आलय बने हुए हैं
भवनवासी देवों के सभी अकृत्रिम जिनालयों यहीं पर होते हैं
फिर उसके बाद अस्सी हजार योजन मोटा अब्बहुल भाग होता है
यहाँ राक्षस जाति के व्यंतर देव और असुरकुमार जाति के भवनवासी देव रहते हैं
रत्नप्रभा भूमि के आगे की पृथ्वियों की मोटाई आगम के अनुसार क्रमशः
पहली की एक लाख अस्सी हजार योजन
दूसरी की बत्तीस हजार योजन
तीसरे की अठाईस हजार योजन
चौथे की चौबीस हज़ार योजन
पाँचवें की बीस हजार योजन
छठवें की सोलह हजार योजन और
सातवीं की आठ हजार योजन होती है
ये सभी पृथ्वियाँ नौ दिशाओं से वातवलय को छूती हैं और उनके आधार पर टिकी हुई रहती हैं
स्वर्गों के विमान तो किसी भी आधार से नहीं होते
वातवलय तीन प्रकार के होते हैं
मूंगा के रंग का घनोदधि वातवलय
गोमूत्र के रंग का घन वातवलय
और अनेक तरह के रंग का तनु वातवलय
ये सभी वातवलय नीचे बीस हजार योजन मोटे और ऊपर थोड़े कम-कम मोटे होते चले जाते हैं
इन multistorey building जैसी पृथ्वियों के अन्दर नारकियों के बिल बने रहते हैं
जिनमें नारकी जीव रहते हैं
सूत्र 2 में हमने जाना की किस पृथ्वी में कितने बिल हैं
पहली में तीस लाख
दूसरी में पच्चीस लाख
तीसरी में पन्द्रह लाख
चौथी में दस लाख
पाँचवीं में तीन लाख
छटवीं में पाँच कम एक लाख
और सातवीं में पाँच बिल हैं
हमने जाना कि नीचे-नीचे पृथ्वियों में बिलों की संख्या और उनमें रहने वाले नारकियों की संख्या कम होते है
मगर उनके दुःख बढ़ते जाते हैं
ये बिल अकृत्रिम हैं , अनादिकाल से हैं
पर बड़े वीभत्स आकृति के होते हैं जैसे ऊँट का मुख, सिंह की दाढ़ आदि
ये अलग-अलग पटल या प्रस्तर में बने होते हैं
पहली पृथ्वी में तेरह पटल हैं
दूसरी में ग्यारह
तीसरी में नौ
चौथी में सात
पाँचवीं में पाँच
छटवीं में तीन और
सातवीं में एक पटल है
पटलों में बिलों की संरचना विधान के मांडणा जैसे होती है
बीचों-बीच में इन्द्रक बिल
चारों दिशाओं और चारों विदिशाओं में श्रेणीबद्ध बिल
और बीच-बीच में बचे हुए स्थान पर बिखरे हुए प्रकीर्णक बिल
नारकी जीव एक राजू विस्तार वाली त्रस नाड़ी में ही रहते हैं
इन बिलों में नारकी-जीवों का उपपाद जन्म होता है
अन्तर्मुहूर्त में वह जीव बिल्कुल युवा अवस्था की तरह तैयार हो जाता है
वह उन बिलों से अपनी ही भूमि पर पहले सिर के बल गिरता है और उछलता है