श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 08
सूत्र - 07, 08, 09
सूत्र - 07, 08, 09
सूत्र में बताए छह चीज़ों के माध्यम से बाहरी पदार्थ को भी पूर्णतः जानना सम्भव? पदार्थों को अगर और विस्तार से जानना है? केवल मन से भी होता है ज्ञान? दूसरे के मन में कोई पदार्थ है, तो उसका ज्ञान कर सकते हैं?
निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थिति विधानत:।।1.7।।
सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च।।1.8।।
मति श्रुतावधि मन:पर्यय केवलानि ज्ञानम् ।।1.9।।
संजय अग्रवाल
दिल्ली
WINNER-1
शिल्पा जैन
आगरा
WINNER-2
सुरभी जैन
महाराजपुर
WINNER-3
सराग सम्यग्दर्शन कौनसे गुणस्थान तक रहता है?
1. चौथे गुणस्थान तक
2. आठवें गुणस्थान तक
3. दसवें गुणस्थान तक *
4. तेरहवें गुणस्थान तक
कल हमने पदार्थों को जानने के उपाय में निर्देश, स्वामित्व और साधन को समझा।
आज इसी श्रंखला में हम ने अधिकरण यानि आधार को समझा
सम्यग्दर्शन का अंतरंग आधार आत्मा है जहाँ यह होगा
और बाह्य आधार पूरी त्रस् नाड़ी है जहां के जीवों को यह हो सकता है
स्थिति का मतलब है काल, वस्तु का समय, कितनी देर रहेगी आदि
हमने जाना कि औपशमिक सम्यग्दर्शन अन्तर्मुहूर्त तक, क्षयोपशम सम्यग्दर्शन छियासठ सागर और क्षायिक सम्यग्दर्शन तैंतीस सागर काल सामान्य से तक रहता है
यह उनकी उत्कृष्ट स्थितियाँ हैं।
जघन्य स्थिति सभी सम्यग्दर्शन की अन्तर्मुहूर्त होती है क्योंकि अन्तर्मुहूर्त में सम्यग्दृष्टि जीव मोक्ष जा सकता है
विधान का अर्थ है वस्तु के भेद करके समझना जैसे सम्यग्दर्शन के कितने भेद है?
सम्यग्दर्शन के तीन भेद होते हैं जो हमने पहले पढ़े थे
पर एक अपेक्षा से दो भेद भी होते हैं-
सराग सम्यग्दर्शन जहाँ यह राग के साथ रहता है, दसवें गुणस्थान तक
वीतराग सम्यग्दर्शन जहाँ यह राग बिना रहता है, दसवें गुणस्थान से ऊपर
हमने जाना की सराग सम्यग्दर्शन में प्रशम, संवेग अनुकम्पा, आस्तिक्य भाव अभिव्यक्त होते हैं।
वीतराग सम्यग्दर्शन में केवल आत्मविशुद्धि ही रह जाती है
क्षायिक सम्यग्दर्शन को भी वीतराग उपचार से कहा जाता है
पदार्थ को और अधिक विस्तार से जानने के लिए हमने सूत्र 8 में 8 चीजों को जाना -
सबसे पहले सत्! यानि अस्तित्व किस चीज को आप जानना चाह रहे हैं
उसके पश्चात् संख्या: मतलब उसकी संख्या कितनी है? उसके भेद कितने है?
क्षेत्र मतलब वर्तमान में वह चीज कहाँ है?
स्पर्शन यानि तीन काल में वस्तु कहाँ तक जा सकती है
काल मतलब जो उसका time है, अंतराल है। पिछले सूत्र में जैसे स्थिति थी वह यहाँ पर काल है।
भाव: जैसा सम्यग्दर्शन होगा वैसे उसका भाव हो जाएगा।
हमने जाना मनुष्य गति भी कर्म के उदय से मिली है इसलिए वह औदयिक भाव है
अल्प बहुत्व comparison के काम आता है
इससे अच्छी या लौ quality वाला कौन है आदि
सूत्र 9 में हमने पॉंच ज्ञान के बारे में जाना - मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवल ज्ञान।
मति ज्ञान जो इन्द्रिय और मन दोनों से होता है।
श्रुत ज्ञान केवल मन से ही होता है। इसकी महत्ता तो हमने कल अच्छी तरह से समझी थी।
अवधिज्ञान अवधि ज्ञान चारों गतियों में हो सकता है और प्रत्यक्ष आत्मा से होता है
मन: पर्यय मतलब अपने मन के माध्यम से दूसरे के मन में जो पदार्थ है उसको जान लेगा।
यह ज्ञान संयमी ॠद्धि धारी विशिष्ट मुनियों को ही होता है
केवलज्ञान? 13वें गुणस्थान में अरिहन्त परमेष्ठि बनने पर होता है।