श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 44
सूत्र - 38,39,40
Description
पर्याय क्रमवर्ती होती है fix नहीं। क्रमबद्ध में परिवर्तन संभव नहीं। आचार्यों के अनुसार पर्याय परिवर्तन सहित क्रमवर्ती होती हैं। कुछ उदहारण को देकर सिद्धांत से खिलवाड़ उचित नहीं। गलत को सही सिद्ध करने की अकल सब में है। काल द्रव्य एक प्रदेशी स्वयं अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाला द्रव्य है।
Sutra
गुण-पर्ययवद् द्रव्यम् ।।5.38।।
कालश्च ।।5.39।।
सोऽनन्त-समयः ।।5.40।।
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WINNERS
Day 44
19th Jun, 2023
kailash kumar Jain
Bhopal
WINNER-1
Manjula Jain
Ujjain
WINNER-2
Pushpa Manoria
PUNE
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
कालाणु कितने होते हैं?
एक
संख्यात
लोकाकाश के प्रदेशों के बराबर*
आकाश के प्रदेशों के बराबर
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र अड़तीस में मुनि श्री ने समझाया कि द्रव्य गुण और पर्याय दोनों को धारण करता है
पर्यायें क्रमवर्ती होती हैं
और गुण अन्वयी होते हैं
मगर कुछ कपड़े वाले पंडित पर्यायों को क्रमबद्ध कहकर भ्रम फैलाते हैं
बद्ध का अर्थ है कि पर्याय को बाँध दिया
अर्थात् इसके बाद यही पर्याय उत्पन्न होगी
कोई दूसरी नहीं आ सकती
पर्यायें ऐसी क्रमबद्ध नहीं होती
क्रमवर्ती होती हैं
जैसे घड़ा बनाने के लिए हम
मिट्टी का लोंदा बना, चाक पे चढ़ा, आकार देते हैं
बनाते-बनाते अगर विचार बदला तो हम सुराही या गमला भी बना सकते हैं
अगर द्रव्य की पर्याय fix होती कि इस मिट्टी में से घड़ा ही बनेगा
तो हम उसे परिवर्तित कर ही नहीं पाते
लेकिन द्रव्य में निकली पर्याय एक समय पर एक ही होगी
चाहे वो घड़ा हो या सुराही
घड़ा मिटाकर फिर सुराही बना सकते हैं
मगर दोनों एक साथ नहीं होंगे
इसलिए इन्हें क्रमवर्ती कहते हैं
प्रत्यक्ष देखने वाली परिवर्तनशील चीजों में
क्रमबद्ध तरीके से परिवर्तन संभव नहीं है
लेकिन क्रमशः परिवर्तन संभव है
प्रत्यक्ष प्रमाण से घटित होती चीज सत्य होती है
लोग सर्वज्ञ की सर्वज्ञता का सहारा ले करके
जबरदस्ती पर्यायों को बाँधने की कोशिश करते हैं
क्रमबद्ध पर्याय आगम का शब्द ही नहीं है
हमें इन्हें न सुनना चाहिए और इन बातों में पड़ना चाहिए
आचार्यों का शब्द - क्रमवर्ती पर्याय है
सब चीजें अपने-अपने क्रम-क्रम से ही होती हैं
हमने जाना कि जिसका जन्म हुआ है वो बाल से युवा, युवा से वृद्ध होगा और वृद्ध से मरण करेगा
ये क्रम आयु कर्म के साथ बंध जाता है
और शरीर का परिणमन भी वैसे ही होता रहता है
यह क्रमवर्ती है
क्रमबद्ध नहीं
हम पर्याय के विरुद्ध काम कर इस क्रम में परिवर्तन कर पाते हैं
दूसरी पर्याय के आने की speed में परिवर्तन कर पाते हैं
जैसे ध्यान न रखने पर युवावस्था की पर्याय मिटकर, वृद्धावस्था जल्दी आ जाती है
या असमय मृत्यु होने पर, बालपन से युवापन आती ही नहीं है
मुनि श्री ने समझाया कि भामंडल में या सर्वज्ञता में सब दिखता है
ऐसा मानकर गलत बातें प्रस्तुत नहीं करनी चाहिए
नेमिनाथ भगवान और द्वीपायन मुनि के उदाहरण से लोग नए सिद्धांत बना कर
लोगों को भ्रमित करते हैं
पर्यायों का स्वरूप ऐसा नहीं है
क्रमवर्ती है
सर्वज्ञ के संदर्भ में मुनि श्री हमें सर्वज्ञता भी समझाएंगे
लोग समझाने के लिए कुछ भी समझा सकते हैं
दुनिया के 363 मत अपने-अपने तरीके से घुमाकर सब बातें सिद्ध करते हैं
जैसे बौद्ध मत वाले सब कुछ अनित्य सिद्ध करते हैं
और हम लोग दिमाग भी नहीं लगा पाते
इसी अज्ञानता का लोग फायदा उठाते हैं
इसीलिए भगवान द्वारा बताया, आचार्यों द्वारा लिखा हुआ ही सत्य है, अनेकांत है
पंडितों की बातों को हमें प्रामाणिकता की कसौटी पर कसना चाहिए
सूत्र उनतालीस कालश्-च - में हमने जाना कि काल भी एकप्रदेशी, स्वतंत्र अस्तित्व वाला द्रव्य है
च शब्द से इसमें
नित्या-वस्थितान्य-रूपाणि - 4
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य-युक्तं सत् - 30
सद्-द्रव्य-लक्षणम् - 29
तद्-भावाव्ययं-नित्यम् - 31
नाणोः - 11
सूत्र fit हो जाते हैं
काल के स्वरूप के बारे में पंचास्तिकाय, द्रव्य संग्रह आदि ग्रंथों में बताया गया है
कि लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक अणु के रूप में एकप्रदेशी काल द्रव्य स्थित होता है
लोककाश के अंसख्यात प्रदेशों के बराबर ही कालाणुओं की संख्या हैं
जो पूरे लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर अवस्थित हैं
ये निश्चय काल का स्वरूप है
व्यवहार काल को हम गणना करके बनाते हैं
सूत्र चालीस सोऽनन्त-समयः के अनुसार यह अनंत समय वाला होता है
वर्तमान के किसी क्षण की अपेक्षा से past और future दोनों अनंत हैं