श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 04
सूत्र - 02, 04
Description
तत्त्वार्थ में भी देव शास्त्र गुरु है और देव शास्त्र गुरु में भी तत्त्वार्थ हैं? तत्त्व और तत्त्वार्थ एक ही? तत्त्वार्थ का श्रद्धान कहना या देव-शास्त्र-गुरू का श्रद्धान कहना एक बात है? सम्यग्दर्शन कहाँ-कहाँ होता है? तिर्यंच गति में सम्यग्दर्शन की शर्त? सम्यग्दर्शन का लक्षण पशुओं और नारकियों में कैसे घटित होगा? सम्यग्दृष्टि जीव की प्रतीति में क्या आएगा? क्या अरिहन्त भगवान सम्यग्दृष्टि हैं? सात तत्त्वों में सामान्य-विशेष? सम्यग्दर्शन को पहले क्यों रखा?
Sutra
तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्।l1.2ll
जीवाजीवास्रव बन्धसंवरनिर्ज्जरा मोक्षास्तत्त्वम्।l1.4ll
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WINNERS
Day 04
11th Feb, 2022
Akhil Jayanand Mehta
सोलापुर महाराष्ट्र
WINNER-1
Santosh
Jain
मेरठ
WINNER-2
Mahesh Prasad Gupta
कोटा
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
सात तत्त्वों में अगर हम सामान्य-विशेष घटित करना चाहे तो निम्न में से सामान्य कौनसा है?
1. अजीव *
2. आस्रव
3. बंध
4. संवर
Summary
कल हमने जाना था कि सम्यग्दर्शन की दो सैद्धांतिक परिभाषाऐं हैं
तत्त्वार्थ सूत्र के अनुसार - तत्त्वार्थ पर श्रद्धान
और रतनकरण्डक श्रावकाचार के अनुसार - देव-शास्त्र-गुरु पर श्रद्धान
आज हमने समझा की वास्तव में दोनों परिभाषाएँ एक ही हैं
हमने समझा किस तरह से हम देव-शास्त्र-गुरु में ही की तत्त्वार्थ निहित हैं
सिद्ध भगवान में कर्म रूप अजीव तत्त्व से रहित आत्मा देखें
आत्मा का जड़ के अलग होने में मोक्ष देखें
अरिहंत भगवान में शरीर (अजीव पदार्थ) में रहकर शरीर से भिन्नता देखें
गुरु में संवर और निर्जरा देखें
संवर यानी आत्मा में आते कर्मों को रोकना, आस्रव को रोकना
निर्जरा = बंधे कर्म का टूटना
संवर और निर्जरा विरोधी हैं आस्रव और बंद के
अतः हम कह सकते हैं कि संवर से पाप और पुण्य का आस्रव रोक रहे हैं
और पहले से बंधे हुए कर्म की निर्जरा कर रहे हैं
हम यदि में देखेंगे तो हमें जीव-अजीव, आस्रव-बंध सब दिखेगा।
इसी तरह हम तत्त्वर्थों में भी देव-शास्त्र-गुरु देख सकते हैं
जीव तत्त्व और अजीव तत्त्व के अलग होने पर मोक्ष तत्त्व देखने पर सिद्ध-अरिहन्त यानि देव में दिखता है
संवर, निर्जरा, आस्रव का रोकना, बंध का हटाना हमें गुरु में दिखता है
शास्त्र में हमें तत्वार्थ और देव-शास्त्र-गुरु दोनों का ज्ञान मिलेगा
हमने जाना की सम्यग्दर्शन चारों गतियों में होता है- देव गति, नरक गति, मनुष्य गति और संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच गति
सम्यग्दृष्टि जीव की प्रतीति में क्या आएगा? आत्मा और कर्म का आभास
भव प्रत्यय- जैसा भव मिला है, उसके कारण से जो पर्याय मिली है, उसको भोगना ही भव प्रत्यय है।
अरिहन्त और सिद्ध में परमावगाढ़ सम्यग्दर्शन होता है
यानि वे इतने ज्यादा प्रतीति में अवगाहित हो गए, इतना परम अवगाढ़ हो गया उसमें कि उनकी वह प्रतीति कभी भी छूटेगी नहीं
सम्यग्दर्शन का सामान्य रूप है देव-शास्त्र-गुरु पर दृढ श्रद्धा
सम्यग्दर्शन का विशेष रूप है सात तत्त्व पर दृढ श्रद्धा
सामान्य रूप में दो ही तत्व हैं जीव और अजीव
विशेष रूप से तत्त्व हैं आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष