श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 02
सूत्र - 02
सूत्र - 02
क्या आदमी को वास्तव में ज्ञान चाहिए? मरता भी है आदमी तो किसके लिए? किसका नाम आकुलता? सुख का लक्षण? निराकुल सुख कहाँ मिलेगा? क्या संसार का कोई भी सुख निराकुल सुख है? सम्यक् शब्द क्यों जोड़ा? दर्शन से क्या तात्पर्य है? समीचीन श्रद्धान होने पर जिस पदार्थ का जैसा स्वभाव है वैसा ही यथार्थ में जानेंगे? मोक्ष का मार्ग और संसार के मार्ग का स्वरूप कैसा? क्या आज का विज्ञान सही और उपयोगी ज्ञान देने में समर्थ? पत्थर को सोना बना सकते! शरीर की विज्ञान और जीव विज्ञान में भिन्नता। सम्यग्चारित्र क्या है? सम्यक् दृष्टि गृहस्थ मोक्ष मार्गी? सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र तीनों connected कैसे?
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्राणि मोक्षमार्ग:।l1.1ll
हेमलता जैन
मेरठ
WIINNER- 1
मनोज कुमार जैन
दिल्ली
WINNER-2
सीमा शैलेन्द्र शाह
उज्जैन
WINNER-3
निराकुल आत्म सुख को प्राप्त करने का नाम क्या है?
1. सम्यक् दर्शन
2. सम्यक् ज्ञान
3. सम्यक् चारित्र
4. मोक्ष *
आज हमने जाना कि संसारी जीव क्या चाहता है?
वह सुख की इच्छा करता है, ऐसा सुख जिसमें दुःख ना हो
ज्ञान की इच्छा लिए उसे हमेशा जाग्रत रहना होगा
इसलिए वह ज्ञान भी सिर्फ तब तक चाहता हैं जब तक उसमें सुख हो
यहाँ तक कि वह आत्महत्या जैसे कर्म भी सुख की अभिलाषा में करता है
हमने सीखा कि निराकुलता का मतलब है आकुलता में कमी, पूर्ण शान्ति, पूर्ण सन्तुष्टि, पूर्ण सुख की अवस्था
संसार का कोई भी सुख निराकुल सुख नहीं है
इसलिए आकुलता संसार को बढ़ाने का मार्ग है, दुःख का कारण है
वहीं सुख निराकुलता का नाम है
और वह निराकुल सुख मोक्ष में ही होता है
इसलिए निराकुलता को प्राप्त करने के रास्ते का नाम ही मोक्ष मार्ग है
और वह है सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग:
सम्यक् शब्द समीचीनता, शुद्धि और सही के अर्थ में आता है
दर्शन का यहाँ मतलब विश्वास करना है, श्रद्धान करना है, to believe
अतः सम्यग्दर्शन में right belief, सही श्रद्धान होता है
पहले ज्ञान का उपयोग करके मोक्ष मार्ग जानो फिर उस पर believe करो
सम्यग्ज्ञान से जो पदार्थ जैसा है उसको वैसा ही यथार्थ जानते हैं
सांसारिक ज्ञान में न तो जीव विज्ञान में जीव यानि आत्मा के बारे में कुछ बताते हैं; मात्र शरीर तक ही सीमित रहते हैं
और न ही भौतिकी में द्रव्य आदि बताते हैं, सिर्फ द्रव, तरल और ठोस आदि ही बताते हैं
सम्यग्ज्ञान प्राप्त करने के बाद जीव; संसार के दुःख को दूर करने के लिए जो आचरण करता है, वह सम्यग्चारित्र है
सम्यग्दर्शन के बाद सम्यग्ज्ञान होता है और उसके पश्चात् सम्यग्चारित्र होगा। यह क्रम है।
जो व्यक्ति सम्यग्दृष्टि, ज्ञानी होने के बाद में चारित्र की इच्छा करता है वही वस्तुतः मोक्ष मार्गी होता है
चार गतियों में घूमने का नाम ही संसार है और मिथ्या दर्शन, मिथ्या ज्ञान, मिथ्या चारित्र संसार का मार्ग हैं
गृहस्थों में सम्यग्चारित्र के आभाव में मोक्षमार्ग संभव नहीं है
परन्तु राजपुत्रवत् योग्यता होने के कारण; सम्यग्दृष्टि गृहस्थ को भी मोक्षमार्गी कह सकते हैं