श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 01
सूत्र - 01
सूत्र - 01
आत्मा के प्रदेशों में परिस्पंदन होने को योग कहा जाता है । योग के अंतरंग कारण और बहिरंग कारण जानिए। आत्मा का परिणाम भाव और शरीर की क्रिया द्रव्य कहलाती है। द्रव्य मनोयोग और भाव मनोयोग। काय योग के सात भेद कौन से हैं ?
काय-वाङ् - मन:कर्मयोगः॥6.1॥
31st July, 2023
Sharda Jain
Ghaziabad
WINNER-1
Ritu Jain
Rohtak
WINNER-2
Maina Jain Chhabra
Mumbai
WINNER-3
25 क्रियाओं में से कौनसी क्रिया करने योग्य है?
सम्यक्त्व क्रिया*
दर्शन क्रिया
अनाभोग क्रिया
स्वहस्त क्रिया
षष्ठम् अध्याय में हम जीव और अजीव तत्त्व के संयोग से बने आस्रव तत्त्व को समझेंगे
हम लोग अक्सर योग का अर्थ ध्यान, समाधि या जोड़ मानते हैं परन्तु यहाँ
सूत्र एक काय-वाङ्-मन:कर्मयोगः में हमने जाना कि योग का अर्थ काय, वचन और मन के कर्म यानि क्रिया है
इनके द्वारा आत्मा के प्रदेशों में उत्पन्न परिस्पंदन को योग कहते हैं
काययोग तो नियम से सभी संसारी जीवों में पाया जाता है
एकेन्द्रिय के पास केवल काययोग
दो इन्द्रिय आदि के पास काययोग और वचनयोग
और मन के सन्निधान से संज्ञी पंचेन्द्रिय के तीनों योग होते हैं
योग होने के लिए दो कारण आवश्यक होते हैं - अंतरंग और बहिरंग
वीर्यांतराय कर्म के क्षयोपशम से आत्मा में उत्पन्न स्पंदन की क्षमता इसका अंतरंग कारण है
इसके बिना कोई योग नहीं होता
शरीर नाम कर्म के उदय से जीव में काय वर्गणाओं को खींचने की शक्ति आती है
इन काय वर्गणाओं के आलंबन से आत्मा के प्रदेशों में हो रहे परिस्पंदन को काययोग कहते हैं
इसका अंतरंग कारण वीर्यांतराय कर्म का क्षयोपशम
और बहिरंग कारण - वर्गणाओं का आलम्बन है
वचनयोग का अंतरंग कारण रसना इन्द्रिय मति-ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम है
और भाषा वर्गणाओं का आलंबन बहिरंग कारण है
बिना रसना इन्द्रिय के वचनयोग की क्षमता नहीं आती
कर्मों के क्षयोपशम के कारण से और भाषा वर्गणाओं के आलंबन से आत्म प्रदेशों में हो रहे परिस्पंदन को वचनयोग कहते हैं
इसी प्रकार मनोयोग में मनो वर्गणाओं के आलंबन से आत्म प्रदेशों में परिस्पंदन होता है
इसके लिए नोइन्द्रियावरण कर्म का क्षयोपशम आवश्यक है
इससे ही मन बनता है
हमने जाना कि मन, वचन या काय की क्रिया करने के लिए आत्मा परिणाम करता है
आत्मा का यह परिणाम भावयोग है
और वर्गणाओं के आलंबन से हुई क्रिया द्रव्ययोग है
आत्मा का परिणाम भाव और शरीर की क्रिया द्रव्य कहलाती है
शरीर की क्रिया करने के लिए तत्पर आत्मा के परिणाम भाव काययोग हैं
और काय वर्गणाओं के आलंबन से हुई शरीर की क्रिया द्रव्य काययोग है
इसी प्रकार वचन बोलने को उन्मुख आत्मा के परिणाम भाव वचनयोग हैं
और उनके होने पर भाषा वर्गणाओं के आलम्बन से हो रहे आत्म प्रदेशों का परिस्पंदन द्रव्य वचनयोग है
इसी प्रकार मन के द्वारा विचार करने के उन्मुख आत्मा के परिणाम भाव मनोयोग हैं
और द्रव्य मनोवर्गणाओं के आलंबन से हुई क्रिया द्रव्य मनोयोग है
हमने जाना कि यह योग,
पहले मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर तेरहवें सयोग केवली गुणस्थान तक होता है
बारहवें गुणस्थान तक यह क्षयोपशम भाव के साथ होता है
जहाँ मन, वचन, काय की क्रियाएँ आत्मा के अंदर परिस्पंदन पैदा करती रहती हैं
लेकिन आगे के गुणस्थान में वीर्यान्तराय, ज्ञानावरण आदि कर्मों के क्षय होने के कारण क्षयोपशम भाव का अभाव हो जाता है
इसलिए वहाँ पर द्रव्य मनोयोग तो होता है लेकिन भाव मनोयोग नहीं होता
मन में विचार करने के लिए उन्मुख आत्मा का उपयोग नहीं होता
हमने जाना कि काय वर्गणायें सात प्रकार की होती हैं
और काययोग एक समय में एक ही प्रकार की वर्गणा का आलंबन लेता है
अतः काययोग सात प्रकार के भी होते हैं
औदारिक
औदारिक मिश्र
वैक्रियिक
वैक्रियिक मिश्र
आहारक
आहारक मिश्र
और कार्मण काययोग