श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 06
सूत्र - 3,4
Description
अध:करण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण परिणामों की उत्पत्ति l द्वितीयोपशम-सम्यग्दर्शन l तीन करण परिणाम किसके लिए चाहिए? नई-छहढाला में गुणस्थान का अच्छा वर्णन है l उपशम-सम्यग्दर्शन के साथ में सातवाँ गुणस्थान भी हो सकता है l औपशमिक चारित्र आठवें से ग्यारहवें गुणस्थान में होगा l अंजन चोर का श्रद्धान सिर्फ सम्यग्दर्शन की बातें करने से कुछ नहीं होगा l सम्यग्चारित्र ग्रहण करने की विधि l क्षायिक भाव कितने प्रकार के हैं? क्षायिक भावों का वर्णन l
Sutra
सम्यक्त्व-चारित्रे।l3।l
ज्ञान-दर्शन-दान-लाभ-भोगोपभोग-वीर्याणि च।।४।।
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WINNERS
Day 06
15th Apr, 2022
Nirmala Kala
Barwani(MP)
WIINNER- 1
Megha Jain
Panvel
WINNER-2
रेनु जैन
मयूर विहार दिल्ली
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
दर्शन-मोहनीय कर्म के सत्ता-नाश से आत्मा में किसकी प्राप्ति होगी?
क्षायिक-ज्ञान
क्षायिक-दर्शन
क्षायिक-दान
क्षायिक-सम्यक्त्व *
Abhyas (Practice Paper):
Summary
हमने जाना कि पाँचों लब्धियाँ योग्यतायें हैं और काल-लब्धि इन्हीं में गर्भित है
काल-लब्धि भी हमें काल-लब्धि आने पर ही समझ आयेगी :)
हमने जाना कि उपशम-श्रेणी पर उपशम-सम्यग्दृष्टि या क्षायिक-सम्यग्दृष्टि ही चढ़ते हैं
क्षयोपशम-सम्यग्दृष्टि नहीं
वे पहले सप्तम गुणस्थान में अपने सम्यग्दर्शन को फिर से उपशम-सम्यग्दर्शन करता है
इसे द्वितीयोपशम-सम्यग्दर्शन कहते हैं
जब भी कुछ असंख्यात-गुणी निर्जरा के विशेष कार्य होते हैं तो अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण के विशिष्ट परिणाम होते हैं जैसे
क्षायिक-सम्यग्दर्शन की प्राप्ति करना
चारित्र-मोहनीय का उपशमन करना, उसका क्षय करना
द्वितीयोपशम-सम्यग्दर्शन करना
प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन होते ही उस आत्मा का गुणस्थान पहले से चौथा, छटवाँ और direct सातवाँ भी हो सकता है
गृहस्थ के लिए चौथे-पाँचवें गुणस्थान और मुनि महाराज सातवें गुणस्थान में जा सकते हैं
एक एकांत भ्रान्ति जो कुछ पण्डितों ने पढ़ा राखी है कि पहले सम्यग्दर्शन कर लो फिर कुछ होगा
उन्हें कभी भी चारित्र के भाव नहीं होते
सिद्धान्त से जो महाव्रतों को direct धारण कर रहा है, उसको सम्यग्दर्शन हो ही जाता है
उसने गुरु के ऊपर श्रद्धा कर ली और व्रतों से कल्याण होगा यह मान लिया तो इसी का नाम सम्यग्दर्शन है
हमने जाना औपशमिक-चारित्र आठवें, नौंवें, दसवें और ग्यारवें गुणस्थानों में होता है
हमने अंजन चोर की कहानी से समझा कि एक चोर जो रात्रि में वैश्या के पास था, सही श्रद्धान होने पर दूसरे दिन सुबह सुमेरू पर्वत पर ऋद्धिधारी मुनि महाराज से दीक्षा ले लेता है
जो कम्मे-सूरा सो धम्मे-सूरा
अंजन चोर ने direct दीक्षा ली, उसको सम्यग्चारित्र हो रहा है
बिना तत्त्वों के ज्ञान के सम्यग्दर्शन हो रहा है क्योंकि
गुरु और अरिहंत भगवान के वचनों पर अटूट विश्वास रखने से उसे सप्त-तत्त्वों का ज्ञान रहा है
जो एकांती तत्त्व ज्ञान से सम्यग्दर्शन का ढिंढोरा करते हैं और जिन्हें गुरुओं पर श्रद्धा नहीं, चारित्र लेने के कभी भाव नहीं - उन्हें तत्त्व ज्ञान का कोई लाभ नहीं
हमने जाना कि गृहस्थ का भी दो प्रतिमा लिए बिना कल्याण नहीं होगा
व्रत लेने के बाद निरन्तर अभ्यास से उसके अन्दर सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की दृढ़ता बढ़ती जाती है
हमने सूत्र चार में जाना कि क्षायिक भाव नौ प्रकार के होते हैं
ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से क्षायिक-ज्ञान
दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से क्षायिक-सम्यग्दर्शन
दान-अन्तराय कर्म के क्षय से क्षायिक-दान
लाभ अन्तराय कर्म के क्षय से क्षायिक-लाभ
भोग अन्तराय कर्म के क्षय से क्षायिक-भोग
उपभोग अन्तराय कर्म के क्षय से क्षायिक-उपभोग
वीर्यान्तराय कर्म के क्षय से क्षायिक-वीर्य
दर्शन-मोहनीय कर्म के क्षय से क्षायिक-सम्यक्त्व
चारित्र-मोहनीय कर्म के क्षय से क्षायिक-चारित्र की प्राप्ति होती है
सूत्र में सिर्फ सात प्रकार दिए हैं मगर “च”शब्द से सम्यक्त्व और चारित्र की वृत्ति होने से नौ प्रकार हो जाते हैं
क्षायिक मतलब किसी कर्म के क्षय से उत्पन्न भाव
क्षय का मतलब उस आत्मा के अन्दर अत्यन्त अभाव हो जाना