श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 06
सूत्र - 03,04,05,06
सूत्र - 03,04,05,06
भवनवासी देवों के असुरकुमार और व्यन्तर देवों के राक्षस जाति के देवों के निवासस्थान पंक भाग में है । अब्बहुल भाग में नारकी जीवों के बिल हैं, इस भाग में जाकर असुरकुमार जाति के देव नारकियों के दुःखों को उदीरित करते हैं। सोलहवें स्वर्ग तक के देव भ्रमण या सम्बोधन आदि हेतु तीसरे नरक तक जा सकते हैं । नरकों में उत्पन्न होने वाले जीव कौन-कौन से होते हैं? कौन-कौन से जीव किस नरक तक उत्पन्न हो सकते हैं?पहले नरक के नारकियों की सम्यग्दर्शन सम्बन्धी योग्यता। दूसरे नरक से छटवें नरक तक के नारकियों की सम्यग्दर्शन सम्बन्धी की योग्यता । सातवें नरक के नारकी की सम्यग्दर्शन सम्बन्धी योग्यता । विभिन्न नरकों से निकलने वाली जीवों की योग्यताएँ भिन्न भिन्न होती हैं। नरक से निकलने के बाद भी आत्मा में तत्सम्बन्धी संस्कार होते है । नरकों से निकला हुआ जीव चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव यह सब नहीं बनता। नारकियों की उत्कृष्ट आयु । नारकियों की जघन्य आयु ।
नारका नित्याशुभतरलेश्या-परिणाम-देह-वेदना-विक्रिया:ll३ll
नारकी जीव परस्पर में एक-दूसरे के दुःख को उकसाते हैं परस्परोदीरित दुःखाः॥4॥
संक्लिष्टाऽसुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः।l५।l
तेष्वेक-त्रि-सप्त-दश-सप्तदश-द्वाविंशति-त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमा सत्त्वानां परा स्थितिः ।।६।।
Himani Jain
New delhi
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Sandhya Narendra Jain
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कौनसे नरक से निकला हुआ जीव तीर्थंकर बन सकता है?
तीसरे नरक से*
चौथे नरक से
पहले से चौथे नरक से
किसी से नहीं
असुरकुमार भवनवासी देवों और राक्षस व्यन्तर देवों के निवासस्थान चौरासी हजार योजन बाहुल्य वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के पंक भाग में हैं
अब्बहुल भाग में नारकी जीवों के बिल हैं
और असुरकुमार के देव उनके दुःखों को उदीरित करते हैं
वे तीसरे नरक तक ही जा सकते हैं
सोलहवें स्वर्ग तक के कल्पवासी आदि देव भी भ्रमण या सम्बोधन हेतु तीसरे नरक तक जा सकते हैं
इनका स्पर्शन ऊपर छह राजू, नीचे दो राजू होता है
हमने जाना कि नरकों में कौन कौन से जीव उत्पन्न हो सकते हैं
एकेन्द्रिय, विकलत्रय, भोगभूमि के मनुष्य, देव और नारकी, नरक में उत्पन्न नहीं होते हैं
असंज्ञी पंचेन्द्रिय पहले नरक तक
सरिसृप जाति के हिंसक जीव दूसरे नरक तक
माँसाहारी पक्षी जैसे बाज, चील आदि तीसरे नरक तक
भुजंग जैसे अजगर आदि चौथे नरक तक
सिंह आदि क्रूर माँसाहारी जीव पाँचवें नरक तक
स्त्री छटवें नरक तक
और पुरुष सातवें नरक तक जा सकते हैं
वर्तमान में कोई भी संहनन के अभाव में छटवें-सातवें नरक नहीं जा सकता
हमने नारकियों की सम्यग्दर्शन सम्बन्धी योग्यता को भी जाना
पहले नरक में क्षायिक सम्यग्दृष्टि अगर जाएगा तो वह निकलते समय भी क्षायिक सम्यग्दृष्टि ही रहेगा
यहाँ मिथ्यादृष्टि जीव भी उत्पन्न हो सकता है और वह निकलते समय उसका गुन्स्थान गुणस्थान पहला मिथ्यात्व, दूसरा सासादन या चौथा सम्यग्दर्शन हो सकता है
दूसरे से छटवें नरक तक जीव मिथ्यात्व के साथ ही आयगा लेकिन मिथ्यात्व, सासादन या अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान के साथ निकल सकता है
सातवें नरक में मिथ्यात्व के साथ ही जीव आता है और मिथ्यात्व के साथ ही निकलता है
हमने जाना कि नरक के संस्कारों के कारण वहाँ से निकल कर जीव कहाँ-कहाँ तक जा सकता है
सातवें नरक का जीव, नियम से तिर्यन्च ही बनेगा
छटवें नरक का जीव, मनुष्य या तिर्यन्च बन सकेगा
वह सम्यग्दृष्टि बन सकेगा लेकिन देशसंयमी नहीं
पाँचवें नरक का जीव, सम्यग्दृष्टि और सकलसंयमी बन सकेगा
चौथे नरक का जीव, केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकेगा
लेकिन तीर्थंकर आदि नहीं बनेगा
पहले-दूसरे-तीसरे नरक में, तीर्थंकर प्रकृति के बन्ध के साथ भी जीव निकल सकता है
नरकों से निकला हुआ जीव तीर्थंकर तो बन सकेगा परन्तु चक्रवर्ती, बलदेव आदि नहीं
सूत्र 6 में हमने नारकियों की आयु के बारे में जाना
पहले में दस हजार वर्ष से एक सागर
दूसरे में एक से तीन सागर
तीसरे में तीन से सात सागर
चौथे में सात से दस सागर
पाँचवें में दस से सत्रह सागर
छवें में सत्रह से बाईस सागर और
सातवें में बाईस से तैंतीस सागर की आयु होती है