श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 42
सूत्र - 33,34,35,36,37
सूत्र - 33,34,35,36,37
जघन्य गुण वाले परमाणु का बंध नहीं होता। गुणों की समानता होते हुए भी जो सदृश्य गुण में है, उनका बंध नही होता। दो अधिक गुण वालो का आपस में बंध होता है। गुड और दूध के उदाहरण से बन्ध और परिणमन को समझिए।
स्निग्धरूक्षत्वाद्बंध: ॥5.33॥
न जघन्य-गुणानाम् ॥5.34॥
गुण-साम्ये सदृशानाम् ॥5.35॥
द्वयधिकादि-गुणानां तु ॥5.36॥
बन्धेऽधिकौ पारिणामिकौ च ॥5.37॥
Vimlesh Jain
Khurai
WINNER-1
Narendra Kumar Jain
Ghaziabad
WINNER-2
Kusum Jain
Faridabad
WINNER-3
आपस में बंध किसका होता है?
समान शक्ति अंश वालों का
एक अधिक गुण वालों का
दो अधिक गुण वालों का*
तीन अधिक गुण वालों का
हमने पाँच सूत्रों के माध्यम से पुद्गल परमाणुओं की बंध व्यवस्था को समझा
सूत्र तैंतीस स्निग्ध-रूक्षत्वाद्-बन्ध: में हमने जाना कि
स्निग्ध और रूक्षपने से पुद्गलों में बंध होता है
यह उनके स्निग्ध और रूक्ष गुण के माध्यम से होता है
स्निग्ध मतलब चिकनापन या greasy nature
अनेक चिकने पुद्गल परमाणुओं से मिलकर चिकनी चीजें बनती हैं
और रूक्ष परमाणुओं से रूक्ष चीजें
modern science स्निग्ध को negative और रूक्ष को positive charge atom कहती है
परमाणु की negative या positive संयोजकता के कारण उसकी bonding होती है
इसे physics में electrovalent bonding कहते हैं
अणु के संयोग उनके अन्दर की properties के कारण होता है
सूत्र चौंतीस न जघन्य-गुणानाम् के अनुसार जघन्य गुण वाले परमाणु का बंध नहीं होता
जघन्य मतलब बिल्कुल lowest degree वाला
स्पर्श गुण की तरह ही स्निग्ध और रूक्ष गुण की अनेक पर्याय और भाग होते हैं
ये एक से लेकर अनन्त रूप है
परमाणु या तो स्निग्ध होता है या रूक्ष
जिस परमाणु में स्निग्धता या रुक्षता वाली पर्याय का जघन्य अंश होगा
उसका बंध नहीं होता
क्योंकि उसके अन्दर bonding करने की power नहीं होती
हमने जाना कि जैन शास्त्रों में गुणों के शक्ति के अंश को अविभागी प्रतिच्छेद कहते हैं
एक गुण वाले परमाणु में भी शक्त्यंश एक से लेकर के infinite तक होते हैं
सदृश्य परमाणुओं में गुणों के अविभागी प्रतिच्छेद बराबर होते हैं
सूत्र पैंतीस गुण-साम्ये सदृशानाम् के अनुसार गुणों में समानता के बाद भी सदृश्य परमाणु का बंध नहीं होगा
एक गुण वाला एक गुण वाले के समान होता है
और दो आदि गुण वाला दो आदि गुण वाले के
इन समान गुणों वाले परमाणु में यदि अविभागी प्रतिच्छेद बराबर भी होंगे
तो उनमें बंध नहीं होगा
जैसे दो गुण स्निग्ध वाले परमाणुओं के समान शक्त्यंश होने पर भी बंध नहीं होगा
सूत्र छत्तीस द्वयधिकादि-गुणानां तु के अनुसार दो अधिक गुण वालों का आपस में बंध होता है
दो गुण वाला परमाणु एक गुण वाले परमाणु से सूत्र चौंतीस के कारण
दो गुण वाले परमाणु से सूत्र पैंतीस के कारण बंध को प्राप्त नहीं होगा
इस सूत्र से वह चार गुण वाले परमाणु से बंध को प्राप्त होगा
स्निग्ध-स्निग्ध, रूक्ष-रूक्ष के अलावा स्निग्ध-रूक्ष और रूक्ष-स्निग्ध बंध भी होता है
ऐसे ही तीन गुण स्निग्ध वाला परमाणु
एक, दो, तीन, चार गुण वाले से नहीं
सिर्फ पांच गुण वाले परमाणु से बंध कर सकेगा
वह छह, सात, आठ गुण वालों से भी बंध नहीं कर सकेगा
सूत्र सैंतीस बन्धेऽधिकौ पारिणामिकौ च में हमने जाना कि
बंध की अधिकता होने पर वह अधिक रूप ही परिणमन कर जाता है
अर्थात बंध के बाद बंध ज्यादा गुण वाले रूप परिणमन कर जाता है
जैसे गुड़ में धूली के कण मिलने पर, धूली गुड़ जैसी मीठी हो जाती है
लेकिन करकरापन वैसा ही रहता है
जैसे गाय के दूध में भैंस का थोड़ा दूध डालने से वह भी चिकना हो जाता है
उसके साथ उसका बंध हो जाता है
और परिणमन भी
इन सूत्रों को समझकर कुछ प्रश्न हमें आ सकते हैं
जैसे क्या एक स्निग्ध वाला परमाणु कभी बंध को प्राप्त नहीं हाेगा?
क्या एक रूक्ष वाला परमाणु हमेशा एक रूक्ष वाला ही बना रहेगा?
क्योंकि उसका किसी के साथ बंध नहीं होता
हमने जाना खन्दाखलु कालकरणा दो अर्थात स्कन्ध या पुद्गल काल के अनुसार परिणमन करते हैं
समय के साथ उनकी स्निग्धता या रूक्षता की शक्त्यंशों में भी परिवर्तन होता है
उनके गुण बढ़ जाएंगे
जो उनके बंध का कारण बनेगा