श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 07
सूत्र - 07
सूत्र - 07
मोक्षमार्ग में मुख्यता पुरुष की ही है। स्त्री कथा विकथा । राग की प्रवृत्ति से बचे ।ब्रह्मचर्य व्रत के लिए घातक- मानसिक अब्रह्म भाव। उन्मत्तता का कारण - गरिष्ठ भोजन । तामसिक भोजन और इष्ट रस। ब्रह्मचर्य का मतलब शरीर से राग नहीं होना।
स्त्रीरागकथा-श्रवण-तन्मनोहरांग निरीक्षण-पूर्वरतानुस्मरण-वृष्येष्टरस-स्वशरीर-संस्कारत्यागाः पञ्च ॥7.7॥
30th, Nov 2023
अनीता जैन
गाजियाबाद
WINNER-1
Ritu Jain
Surya Nagar
WINNER-2
Nidhi gangwal
Singhana
WINNER-3
निम्न में से वृष्य का मतलब क्या है?
राग कथा
निरीक्षण
गरिष्ठ*
शव की तरह
सूत्र सात
स्त्रीरागकथा-श्रवण-तन्मनोहरांग निरीक्षण-पूर्वरतानुस्मरण-वृष्येष्टरस-स्वशरीर-संस्कारत्यागाः पञ्च में हमने ब्रह्मचर्य व्रत की पाँच भावनाएँ जानी
जो महाव्रत और अणुव्रत दोनों के लिए हैं
त्याग शब्द को हमें हर पद से जोड़ना है
पहली स्त्रीरागकथाश्रवण त्याग भावना में स्त्री संबंधी राग कथाओं को सुनने का त्याग होता है
यह सुनकर लोग प्रश्न करते हैं कि क्या ये भावना सिर्फ पुरुषों के लिए है?
स्त्री क्या करेगी?
मुनि श्री समझाते हैं कि मोक्ष मार्ग में मुनि की मुख्यता है
मुनि, क्षुल्लक-ऐलक, पुरुष व्रती आदि ही आगे बढ़ कर सामायिक आदि चरित्र में लीन होकर ध्यान आदि से केवलज्ञान प्राप्त कर सकते हैं
इस दृष्टि से यहाँ पुरुष की मुख्यता से कथन किया है
मुख्य रूप से वही महाव्रती होते हैं
आर्यिका उपचार से महाव्रती होती हैं
शास्त्रों में पुरुषों को ही समझाने के लिए लिखा जाता है
हमें इसे गलत नहीं समझना चाहिए
हमने जाना कि सूत्र सार्वकालिक होते हैं
ऐसा नहीं कि पंचम और चतुर्थ काल के सूत्र अलग होंगे
दोनों ही कालों में ब्रह्मचर्य व्रत की भावना धारण करने वाले, यही भावना करेंगे
पर पुरुष संबंधी राग कथा श्रवण का त्याग करना भी इसमें गर्भित है
स्त्रियाँ इसमें यथायोग्य स्त्री की जगह पुरुष शब्द लगाकर अपना भाव जोड़ सकती हैं
यही मुख्य-गौण की व्यवस्था है
राग कथा का श्रवण करने से, चर्चा करने या सुनने से हमारे अन्दर राग की प्रवृत्ति पैदा होती है
कथानकों में नारद जी आदि से स्त्री के सौंदर्य का वर्णन सुनकर राजा उसे पाने के लिए लालायित हो जाते हैं
इसलिए हमने ऐसी कथाओं में interest नहीं लेना चाहिए
जहाँ interest नहीं रहता, वहाँ राग नहीं रहता
और अगर कभी लगे कि हमारे अंदर interest बढ़ रहा है
तो हमें उस बात को रोककर कुछ change करना चाहिए
दूसरी भावना तन्मनोहराङ्ग-निरीक्षण त्याग में उनके रूप-सौंदर्य, शरीर के अंगों के निरीक्षण यानि बार-बार देखने का त्याग होता है
बार-बार देखने से हमारे अंदर राग की प्रवृत्ति बढ़ती है
मुनि श्री ने समझाया कि भीतर राग के कारण, देखने में ताकने की भावना आ जाती है
बिना देखे तो हमेशा संभव नहीं हो सकता
लेकिन देख करके भी हमारे अंदर राग उत्पन्न नहीं होना चाहिए
स्त्री-पुरुष को इसे अपने अनुसार घटित कर, उनमें interest नहीं लेना चाहिए
तीसरी भावना पूर्वरतानुस्मरण त्याग में पूर्व में किये भोग, काम चेष्टाएँ का मन में स्मरण करने का त्याग होता है
यह ब्रह्मचर्य के लिए घातक है
इनको बार-बार स्मरण करना और उसमें सुख लेना मानसिक अब्रह्म कहलाता है
इसलिए हमें अपनी स्मृति पर भी control रखना होगा
कि पूर्व की बातें या तो स्मरण न आएं
और अगर आयें तो तुरंत रुक जाएँ
चौथी भावना भोजन-पान संबंधी - वृष्य रस और इष्ट रस त्याग की है
यहाँ रस में सभी प्रकार के भोजन आते हैं
वृष्य यानि गरिष्ठ भोजन बहुत गर्म या वायुकारक होते हैं
जिससे चित्तवृत्तियाँ उत्तेजित हो जाती हैं
सामान्य चीजें को ज्यादा घोट कर गरिष्ठ किया जाता है
जैसे दूध से मलाई, फिर रबड़ी और फिर खोआ
लहसुन, प्याज जैसे गर्म तामसिक भोजन और कुछ दालें, पेय पदार्थ आदि भी गरिष्ठ होते हैं
यदि हमें गरिष्ठ के सेवन में रस आता है, तो हम ब्रह्मचर्य में दृढ़ नहीं रह सकते
इष्ट रस का अर्थ है जो चीज हमको ज्यादा इष्ट है
इसके कारण मन बार-बार देह को पुष्ट करने में लगता है
अपने स्वभाव में नहीं लगता
इसलिए ब्रह्मचर्य के पालन के लिए हमें भोजन पान को सीमित कर वृष्य और इष्ट रस का त्याग करना चाहिए
पाँचवीं भावना स्वशरीरसंस्कार-त्याग में हम शरीर को एक शव की तरह देखते हैं
उससे कोई राग नहीं करते