श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 36

सूत्र - 37

Description

एक कोड़ा-कोड़ी सागर के चतुर्थ काल में सिर्फ ६३ शलाका पुरुष होते हैं। ६३ शलाका पुरुषों का विभाजन। महापुरुष १६९ हैं जिनमे ६३ शलाका भी शामिल हैं। १६९ शलाका महापुरुषों का विभाजन। इन महापुरुषों के बारे में जानकर हम आत्मा में पुण्य का प्रभाव जान सकते हैं। मनुष्यों की maximum and minimum आयु। यह पूरी आयु की सीमा एक भव परावर्तन में पूरी करी जाती है। हर जीव ने ये सारी आयु भोगी हैं। लोक विज्ञान पढ़ने का फायदा। विशुद्धि बढ़ाने के तरीके। तिर्यंच शब्द के साथ योनि क्यों प्रयोग करते हैं?तिर्यंचों की आयु की सीमा भी मनुष्यों की तरह होती है। क्षुद्र भव सबसे छोटा संसार है। सम्यग्दृष्टि जीव का काम लोक में जीवों के दुखों को देखकर संसार से डरना है।

Sutra

नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते ॥3.38॥

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WINNERS

Day 36

23st November, 2022

WIINNER- 1

WINNER-2

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

कुलाचल पर्वत के जिनालयों में कितने जिनबिम्ब होते हैं?

1

24

72

108*

Abhyas (Practice Paper):

https://forms.gle/p7pBuRYGx8aK9kJk8

Summary

  1. हमने जाना कि महापुरुषों का प्रभाव, कार्य और उनके द्वारा अर्जित पिछले जन्म का पुण्य सब जीवों की अपेक्षा से अलग quality का होता है

    • इसी कारण एक कोड़ा-कोड़ी सागर के चतुर्थ काल में जहाँ करोड़ों जीव मोक्ष जाते हैं,

    • शलाका पुरुष सिर्फ त्रेसठ ही होते हैं


  1. ये शलाका पुरुष भी किसी कर्मभूमि में ही कर्म करके आते हैं

    • और किसी कर्मभूमि में महापुरुष बनते हैं


  1. ये त्रेसठ होते हैं

    • चौबीस तीर्थंकर

    • बारह चक्रवर्ती

    • नौ बलभद्र

    • नौ नारायण और

    • नौ प्रतिनारायण


  1. महापुरुषों की संख्या कहीं-कहीं एक सौ उनहत्तर भी बताई जाती है

    • जिसमें त्रेसठ शलाका पुरुषों के अलावा

    • चौबीस तीर्थंकरों के माता-पिता अड़तालीस

    • ग्यारह रुद्र

    • नौ नारद

    • चौबीस कामदेव

    • और चौदह कुलकर भी होते हैं


  1. कुलकर या मनु, तीर्थंकरों से भी पहले, युग के प्रारंभ में होते हैं

  2. शलाका पुरुष भव्य जीव ही होते हैं

    • और नियम से निकट भविष्य में मोक्ष जाते हैं


  1. इनके बारे में जानकर हम समझते हैं कि कर्मभूमि में अर्जित पुण्य से आत्मा की उन्नति होती है और जीव के अन्दर विशिष्ट प्रभाव पैदा करने की शक्ति भी आती है

  2. सूत्र अड़तीस नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते में हमने जाना कि

    • मनुष्यों की अधिकतम आयु तीन पल्य, भोगभूमि के मनुष्य की होती है

    • और जघन्य आयु अंतर्मुहूर्त होती है

    • लब्धि अपर्याप्तक मनुष्यों की आयु और पर्याप्तक मनुष्यों की जघन्य आयु अंतर्मुहूर्त होती है


  1. सूत्र उनतालीस तिर्यग्योनिजानां च से हमने जाना कि तिर्यंचों की आयु की सीमा भी मनुष्यों की तरह होती है

    • अधिकतम तीन पल्य और जघन्य अंतर्मुहूर्त


  1. चूँकि तिर्यंच गति में योनि स्थान सबसे ज्यादा होते हैं, इसलिए सूत्र में तिर्यञ्च के साथ योनि शब्द जोड़ा जाता है

  2. हमने जाना कि हर एक मनुष्य अपना भव परावर्तन पूरा कर चुका है

    • अर्थात अंतर्मुहूर्त से लेकर के तीन पल्य की आयु में हर आयु को भोग चुका है



  1. इसलिए हमें विदेह क्षेत्र और भोगभूमियों की चिंता छोड़कर

    • कर्मभूमि में ऐसे कर्म करने चाहिए जिससे हम कर्मों से रहित हो सकें


  1. क्षुद्र भव सबसे छोटा संसार होता है

    • इससे छोटा संसार किसी जीव को नहीं मिलता

    • यह नियम से लब्धि अपर्याप्तक जीवों को मिलता है

    • जिनका पर्याप्तियाँ पूर्ण करने से पहले ही मरण हो जाता है

    • और एक स्वस्थ मनुष्य की श्वास के अठारहवें भाग में इनका जन्म-मरण हो जाता है


  1. हमने जाना कि लोक विज्ञान पढ़ने से लोक में रहने वाले जीवों के दुःख-सुख सब दिखाई देने लग जाते हैं

    • सम्यग्दृष्टि जीव को लोक में जीवों के दुःखों को देखकर संसार से डरना चाहिए

    • कि मैं भी कहीं इसी प्रकार की योनियों में न पड़ जाऊँ

    • और जिससे असंख्यात वर्षों तक दुःख भोगूं

    • संसार की दौड़ का कोई अन्त नहीं है

    • और इस दौड़ से निकलने के लिए यह ज्ञान जरूरी है

    • इस तरह की भीति होना ही सम्यग्ज्ञान और इस अध्याय का फल है


  1. शांति से अपना धर्म-ध्यान अधिक से अधिक करने से विशुद्धि होगी

    • विशुद्धि से ही आत्मा की उन्नति होगी

    • और कर्मों का क्षय होगा

16. इसके लिए हमें क्लेश, दुःखी रहना आदि मानसिकताओं को छोड़ना चाहिए