श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 16

सूत्र - 14,15

Description

पर्वतों पर स्थित सरोवरों के नामपर्वतों पर स्थित सरोवरों के नाम करणानुयोग सम्बन्धी सम्यग्ज्ञान कैसे प्राप्त करें? बुन्देलखण्ड के लोगों की तरह हओ कहना सीख लोयथा ज्ञान का नाम सम्यग्ज्ञान हैबुद्धि को निःसंदेह बनाओहृदों और कुलाचल पर्वतों का वर्णनहृदों और कुलाचल पर्वतों की लम्बाई-चौड़ाई और गहराई

Sutra

पद्म-महापद्म-तिगिंछ- केशरि- महापुण्डरीक-पुण्डरीका ह्रदास्तेषामुपरि॥14॥

प्रथमो योजन सहस्रायामस्तदर्ध विष्कम्भो हृदः ॥15॥

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WINNERS

Day 16

14th October, 2022

सुशीला जी पाटनी

किशनगढ़ (राजः)

WIINNER- 1

Snehalata Pahade

USA

WINNER-2

विपाशा जैन

कुसमी

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

चौथे हृद का नाम क्या है?

महापद्म

तिगिंछ

केशरी*

महापुण्डरीक

Abhyas (Practice Paper):

https://forms.gle/5WTKUbXUTvJuXPR96

Summary

  1. सूत्र चौदह पद्म-महापद्म-तिगिंछ- केशरि- महापुण्डरीक-पुण्डरीका ह्रदास्तेषामुपरि में हमने जाना कि कुलाचल पर्वतों के ऊपर ह्रद होते हैं

    1. यानि बहुत बड़े-बड़े तालाब, सरोवर


  1. इनके नाम हैं

    • पहले हिमवन पर पद्म

    • दूसरे महाहिमवन पर महापद्म

    • तीसरे निषेध पर तिगिंछ

    • चौथे नील पर केशरी

    • पाँचवें रुक्मि पर महापुण्डरीक और

    • अंतिम शिखरी पर पुण्डरीक


  1. इन सरोवरों के नाम उसमें रहने वाले कमलों के नाम के आधार से पड़ गए हैं

  2. मुख्यतः ये नाम रूढ़ी से यानि अनादि काल से हैं

    • और जो व्यवस्था अनादि से है उसमें कोई कारण नहीं होता

    • जैसे भरत क्षेत्र का नाम भरत चक्रवर्ती के नाम पर है यह मुख्य कारण नहीं है

    • मुख्य कारण है कि यह अनादि काल से ही भरत क्षेत्र है


  1. हमने जाना की आज लोग रूढ़ि शब्द का गलत अर्थ लगाते हैं

    • कि इसका आशय परम्परा से या कोई रूढ़ियों से धर्म का पालन करना होता है


  1. जबकि रूढ़ि का मतलब है जो उसी रूप में चला आ रहा हो

  2. इसका आशय

    • अनादि कालीन शब्दों से,

    • अनादि कालीन व्यवस्थाओं से,

    • अनादि कालीन संरचनाओं से है


  1. हमने जाना कि इन आकृतिम रचनाओं के स्वरूप पर विश्वास होना ही सम्यग्दर्शन का कारण है

  2. करणानुयोग सम्बन्धी सम्यग्ज्ञान और श्रद्धान के लिए लोक में जो भी चीजें जिस ढंग से व्यवस्थित हैं, उन्हें उसी रूप में जानना

    • इस पर श्रद्धा बिना सम्यग्दर्शन अधूरा है

    • यह सम्यग्ज्ञान की एक परीक्षा करने का एक अंग है


  1. इसके लिए हमें अपनी बुद्धि को विश्राम देना पड़ेगा

    • और जैसा कि आचार्य श्री कहते हैं, बुंदेलखंड के लोगों की तरह 'हओ' कहना भी सीखना पड़ेगा


  1. हमें श्रद्धान करना होगा कि

    • अनादिकाल से बने पद्म सरोवरों के पर्वत भी अनादिकाल से ऐसे ही मणियों और रत्नों से खचित तट वाले हैं

    • हर पर्वत आगामी की लम्बाई-चौड़ाई दूसरे पर्वत की अपेक्षा उसकी दूनी या आधी बताई है

    • जैसी कर्मभूमि, भोगभूमि बताई गई हैं वे वैसी ही हैं


  1. दिमाग में प्रश्न नहीं उठने चाहिए

    • कि अनादिकाल से ये सब कैसे चल सकता है

    • बिना किसी ईश्वर, ब्रह्मा, निमित्त के?


  1. ज्यादा बुद्धि लगाने से doubt ही होगा और interest नहीं आएगा

    • क्योंकि यह बुद्धि का विषय नहीं है

    • बुद्धि का काम है कि सूत्रों और शास्त्रों के माध्यम से हम इनको जानलें

    • सन्देह करने से यह बुद्धि में जाना बन्द हो जाएगा


  1. आचार्य समन्तभद्र महाराज ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा है

    • जो निस्संदेह होकर जानता है वही सम्यग्ज्ञान है

    • जैसा है उसको वैसा ही स्वीकार करो

    • अतः बुद्धि को निस्सन्देह बनाओ


  1. सूत्र पंद्रह - प्रथमो योजन सहस्रायामस्तदर्ध विष्कम्भो हृदः में हमने छः कुलाचल पर्वतों के बीचों-बीच में बने हुए हृद के विस्तार के बारे में जाना

  2. यह सभी पर्वत पूर्व-पश्चिम दिशा में लम्बे फैले हुए हैं

  3. इसका आयाम पूर्व-पश्चिम में एक हजार योजन है

    • यह इसकी लम्बाई है


18. आगे हम इन हृदों के बारे में विस्तार से जानेंगे