श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 36
सूत्र - 22,23,24
सूत्र - 22,23,24
वनस्पति जिनके अन्त में हैं, ऐसे सभी जीव, एकम् मतलब एक इन्द्रिय वाले होते हैं l पृथ्वी में स्पर्शन-इन्द्रिय से होने वाली प्रवृत्तियाँ देखने को मिलती है l वनस्पति तक के स्थावर जीवों में स्पर्शन इन्द्रिय जन्य ज्ञान प्रवृत्ति रहती है l अन्य इन्द्रियों वाले जीवों के उदाहरण l दो इन्द्रिय जीवों के उदाहरण l तीन और चार इन्द्रिय जीवों में इन्द्रियों की क्रम से वृद्धि l पंच इन्द्रिय जीव मन-रहित और मन सहित दो प्रकार से हैं l संज्ञा- संज्ञी से तात्पर्य l
वनस्पत्यन्तानामेकम्।l22।l
कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेकैक वृद्धानि।l23ll
संज्ञिनः समनस्काः।l24ll
Kiran jain
Ashok Nagar
WIINNER- 1
Alka jain
Udaipur
WINNER-2
Sonali jain
Indore
WINNER-3
निम्न में से कौनसा जीव तीन-इन्द्रिय है?
बिच्छू *
चींटी *
भँवरा
लट
सूत्र 22 में हमने जाना कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति स्पर्शन इन्द्रिय वाले एक इन्द्रिय जीव होते हैं
इस सूत्र में स्थावर की परिभाषा वाले सूत्र 13 पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावरा: में वनस्पति इंगित है
अतः वनस्पति है जिसके अंत में वे एक इन्द्रिय वाले जीव हैं
हमने जाना कि एक इन्द्रिय की उत्पत्ति के लिए
स्पर्शन-इन्द्रिय का क्षयोपशम
वीर्यान्तराय और मतिज्ञानावरण कर्मों का क्षयोपशम
शरीर-नाम-कर्म का उदय और
जाति-नाम-कर्म का उदय चाहिए
सभी स्थावरों में स्पर्शन-इन्द्रिय-जन्य ज्ञान होता है
और इनमें स्पर्शन-इन्द्रिय से होने वाली प्रवृत्तियाँ देखने को मिलती हैं जैसे
पृथ्वी आस-पास की पृथ्वी को अपने ही जैसी बना लेती है
जल के बिन्दु जल के साथ मिल जाते हैं
अग्नि के फुलिंगे दूसरी अग्नि के साथ में जुड़ते चले जाते हैं
वायु भी वायु के साथ मिल जाती है और
स्पर्शन-इन्द्रिय के माध्यम से वनस्पति की जड़ें कहीं से कहीं तक फैल जाती हैं
सूत्र 23 से हमने अन्य इन्द्रियों वाले जीवों के बारे में जाना
दो इन्द्रिय जीवों में स्पर्शन और रसना इन्द्रिय होती है
जिससे वे स्पर्श और रस का ज्ञान करते हैं
जैसे कृमि, शंख और सीप में रहने वाले जीव,
कुक्षि, पेट में पड़ने वाले कृमि
क्षुल्लक, वराटक नामक दो इन्द्रिय जीवों का ज्ञान हमें प्रतिक्रमण में मिलता है
तीन इन्द्रिय जीवों में स्पर्श, रस और गंध का ज्ञान आ जाता है जैसे
पिपीलिका यानि चींटी,
कुन्थु नामक छोटे-छोटे जीव,
बालों में होने वाले जुएँ,
बिच्छू,
दीमक आदि
चार इन्द्रिय जीवों में स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु इन्द्रिय होती हैं जैसे
भँवरा, पतंगा, डांस मशक यानि मच्छर आदि
पाँच-इन्द्रिय जीवों में मनुष्य के अलावा नारकी हैं, देव हैं, पशु हैं, पक्षी हैं
एक से चार इन्द्रिय वाले जीव नियम से अमनस्क या मन से रहित हैं
पंचेन्द्रियों में संज्ञी और असंज्ञी दोनों होते हैं
संज्ञी-जीव मन से सहित होते हैं और
असंज्ञी जीव मन से रहित होते हैं
सूत्र 24 में हमने जाना के संज्ञी जीव मन सहित अर्थात समनस्क होते हैं
यहाँ संज्ञा शब्द का अर्थ उसके अन्य उपयोगों से अलग है
न इसका मतलब मति-स्मृति-संज्ञा वाले ज्ञान से है
और न ही जीवों में होने वाले सामान्य-ज्ञान से है
न इसका मतलब किसी के नाम से है
न इसका मतलब आहार आदि चार संज्ञाओं से है
कक्षा के अंत में हमने एक महत्वपूर्ण सवाल की भूमिका को समझा कि
संज्ञी-जीव समनस्क होते हैं या समनस्क-जीव संज्ञी होते हैं?
इनमे कोई अंतर है क्या?