श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 31
सूत्र - 35
Description
अग्नीपक्व भोजन नियम से अचित्त हो जाता है। मूलाचार में अग्निपक्व का महत्त्व। जल को प्रासुक करने विधि। स्पर्श, रस, गंध आदि में परिवर्तन आए बिना भोजन अचित्त नहीं होता। प्रासुक: अग्नि एक-एक part तक पहुँचे। सचित्त का टेस्ट ज्यादा अच्छा। सचित्त के साथ संमिश्रण।
Sutra
सचित्तसम्बन्ध-सम्मिश्राभिषव-दुःपक्वाहाराः।।7.35।।
Watch Class 31
WINNERS Day 31
26th, Jan 2024
Rashmi Jain
Chhindwara
WINNER-1
Avaneesh Kumar Jain
Roorkee
WINNER-2
Anju Jain
Depalpure
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
अग्नि पर पकी हुई सब्जी का सेवन करना निम्न में से क्या है?
अचित्त सेवन*
सचित्त सेवन
सचित्त से संबंध
सचित्त का मिश्रण
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र पैंतीस सचित्तसम्बन्ध-सम्मिश्राभिषव-दुःपक्वाहाराः में हमने भोगोपभोग परिमाण व्रत के पाँच अतिचार जाने
जैन दर्शन में सचित्त और अचित्त की बड़ी अनूठी परिकल्पना है
खाने-पीने की चीजें, वनस्पति आदि दो रूपों में मिलती हैं- सचित्त और अचित्त
सचित्त मतलब चित् अर्थात् चेतना या जीव सहित
चाहे वो त्रस जीव हों या एकेन्द्रियादि स्थावर
भोगोपभोग परिमाण व्रत का निर्दोष पालन करने वाला
कभी भी सचित्त वस्तु को नहीं खायेगा
अगर कभी तृष्णा, गृद्धता के कारण सेवन कर भी लिया तो यह व्रत का दोष होगा
सीधे सचित्त का, उससे संबंध होने पर और उसका मिश्रण होने पर सेवन करना- ये सब अलग-अलग दोष हैं
यहाँ सचित्त का अर्थ उस चीज से है जिसे हमने जीव रहित नहीं किया है
वस्तु को जीव रहित करने का सबसे मुख्य तरीका अग्निपक्व होता है
चीजें अग्नि में पकने पर निश्चित रूप से अचित्त हो जाती है
यह उत्कृष्ट मार्ग है
अचित्त करने के अन्य उपायों में हमेशा संदेह रहता है
कि वह पूर्णतः अचित्त हुआ या नहीं
जैसे चीजों को छिन्न-भिन्न कर अचित्त करने में संदेह रहेगा
कि कितना छिन्न-भिन्न करें
क्या चाकू का प्रहार हर part तक पहुँचेगा
या किसी अंश में जीव रहने की संभावना बनी रहेगी
कुछ लोग वृक्ष पर फल पकने के बाद या टूटने के बाद अचित्त मानते हैं
कुछ लोग उसे गर्म करने पर, piece करने पर अचित्त मानते हैं
पर मूलाचार के अनुसार, जो अग्निपक्व सेवन करता है, वही अचित्त का सेवन करता है
उसमें कोई संदेह नहीं रह जाता
चीज बिल्कुल पेलकर रस निकालने से,
अग्नि में सेकने से
या पानी आदि के सहयोग से सब्जी आदि बनाने से भी अचित्त हो जाती है
यह न समझते हुए, लोग अक्सर फल को दो piece करके ही अचित्त मान लेते हैं
हमने जाना कि भोजन की तरह ही, पानी भी गरम होने पर पूर्णतया अचित्त होगा
पानी छानने से केवल त्रस जीव दूर होते हैं
जलकायिक जीव उसमें बने रहते हैं
इसे प्रासुक अर्थात जीव रहित करने के लिए
इसे गरम करते हैं या इसमें लौंग आदि क्षारीय द्रव्य मिलाते हैं
प्रासुक होने के लिए वस्तु के स्पर्श, रस, गंध, वर्ण में से कुछ change होना चाहिए
इसलिए एक बाल्टी पानी में दो-चार लौंग डालने से वह प्रासुक नहीं होता
इतनी लौंगें डालनी चाहिए कि वह बिल्कुल लाल-लाल हो जाये
ठण्डे पानी और गर्म पानी के taste, स्पर्श और गंध में भी अन्तर आ जाता है
जिससे उसमें प्रासुकपना आता है
हमें स्पष्ट रूप से ध्यान रखना है कि जो प्रासुक करने के लिए
अग्नि, पदार्थ के एक-एक part तक पहुँचनी चाहिए
केवल piece करके ऊपर से तवे पर छुलाने से वह प्रासुक नहीं होगी
इस तरह का प्रासुक भोजन-पान करने से पहला सचित्त सेवन का दोष नहीं लगता
दूसरे सचित्त से संबंध दोष में हम प्रासुक वस्तुओं का सचित्त वस्तुओं से संबंध कर देते हैं
अचित्त और सचित्त को साथ रख देते हैं
हमने जाना कि भोजन में ज्यादातर स्वाद सचित्त चीजों में आता है
जैसे सलाद, कच्ची ककड़ी, टमाटर, खीरा आदि
दाल आदि अग्निपक्व अचित्त चीजों के साथ कच्ची चीजें खाने से taste बनता है
इसलिए भोगने की तीव्र लालसा के कारण यह भोगोपभोग परिमाण व्रत का अतिचार है
कभी-कभार अचित्त चीजें न मिलने पर कच्ची चीजों का उपयोग करना भी दोष में आता है
जैसे कुछ और न मिलने पर, रोटी-पराँठा को टमाटर के साथ खाना
तीसरे सचित्त सम्मिश्रण दोष में हम उन प्रासुक चीजों का सेवन कर लेते हैं
जिनमें न लेने योग्य सचित्त चीजें मिल गयी हैं
जिन्हें हम अलग नहीं कर पाते
यह सचित्त का सम्मिश्रण है
जैसे किसी पकी हुई सब्जी में कच्चे टमाटर piece करके मिलाना