श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 23
सूत्र - 9
सूत्र - 9
ज्ञान की महत्ता दर्शन से अधिक है l ज्ञान पूज्य है उपकारी है l ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग के प्रकार l ज्ञान और दर्शन उपयोग होने का क्रम l संसारी जीवों में होने वाले दर्शनोपयोग l एकेन्द्रिय से संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में दर्शनोपयोग का कार्य किस प्रकार होगा? अचक्षु-दर्शनोपयोग कहाँ तक है? एकेन्द्रिय में, दो-इन्द्रिय में, तीन-इन्द्रिय जीवों में कौन-सा दर्शनोपयोग होगा? संज्ञी जीवों में अचक्षु दर्शनोपयोग कैसे काम करता है? हमारे उपयोग एक साथ काम नहीं l कर्म के क्षयोपशम और लब्धियों के अनुसार जीव के उपयोग की परिणति बनती है l
स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः ।l ९ ll
सुशीला गोधा
रतलाम
WIINNER- 1
Savita Jain
Shamli
WINNER-2
Manjula Jain
Jaipur
WINNER-3
चक्षु दर्शनोपयोग निम्न में से किन में नहीं होगा?
तीन इन्द्रिय जीवों में *
चार इन्द्रिय जीवों में
असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में
संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में
सूत्र 9 में हमने उपयोग के भेदों को जाना
सिद्धान्त की दृष्टि से पहले दर्शनोपयोग होता है, फिर ज्ञानोपयोग
जहाँ दर्शन वस्तु का सामान्य अवलोकन करता है और उसका निर्णय नहीं कर पाता
ज्ञान वस्तु के साकार, विशेष स्वरूप को ग्रहण करता है और उसका निर्णय करता है
इसलिए ज्ञान पूज्य है, उपकारी है
और सूत्र में दर्शन से पहले आता है
ज्ञानोपयोग पाँच सम्यक् ज्ञानोपयोग और तीन मिथ्या ज्ञानोपयोग के भेद से आठ प्रकार का होता है
मति-ज्ञानोपयोग
श्रुत-ज्ञानोपयोग
अवधि-ज्ञानोपयोग
मनःपर्यय-ज्ञानोपयोग और
केवल-ज्ञानोपयोग
yh sabhi सम्यग्ज्ञानोपयोग हैं
और
कुमति-ज्ञानोपयोग
कुश्रुत-ज्ञानोपयोग और
कुअवधि-ज्ञानोपयोग
ye sabhi मिथ्या ज्ञानोपयोग हैं
दर्शनोपयोग चार प्रकार के हैं
चक्षु-दर्शनोपयोग
अचक्षु-दर्शनोपयोग
अवधि-दर्शनोपयोग और
केवल-दर्शनोपयोग
हमने जाना कि क्षायोपशमिक-ज्ञानों में पहले दर्शन होगा, बाद में ज्ञान होगा
और क्षायिक ज्ञान में दर्शन और ज्ञान साथ-साथ होते हैं
यानि सामान्य अवलोकन और विशेष ज्ञान एक साथ होता हैं
मनःपर्यय-ज्ञान से पहले दर्शन नहीं होता बल्कि "ईहा" मति ज्ञान होता है
अभी हमें केवल-दर्शनोपयोग और अवधि-दर्शनोपयोग नहीं होगा
सिर्फ मतिज्ञान और श्रुतज्ञान के साथ होने वाले चक्षु-दर्शनोपयोग और अचक्षु-दर्शनोपयोग होगा
इनमें चक्षु-दर्शनोपयोग हमारे लिए अधिक उपकारी है इसलिए क्रम में पहले आता है
चक्षु दर्शनोपयोग चक्षु दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम और चक्षु इन्द्रिय के साथ होता है
अचक्षु दर्शनोपयोग अचक्षु दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम और बिना चक्षु इन्द्रिय के होता है
एकेन्द्रिय, दो-इन्द्रिय और तीन-इन्द्रिय जीवों में सिर्फ अचक्षु-दर्शनोपयोग होता हैं
चार-इन्द्रिय, असंज्ञी-पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में चक्षु और अचक्षु-दर्शनोपयोग दोनों होते हैं
संज्ञी जीवों में ज्ञान चाहे स्पर्शन-इन्द्रिय सम्बन्धी, रसना-इन्द्रिय, कर्ण-इन्द्रिय सम्बन्धी या घ्राण-इन्द्रिय सम्बन्धी हो, इन सबसे पहले होने वाला दर्शनोपयोग अचक्षु दर्शनोपयोग होता है
जैसे बिना पीछे देखे चोटी बना लेना
या बिना देखे यह जानना कि गले से पसीना बह रहा रहा है
हमने जाना कि अभी हमारे 2 ज्ञानोपयोग और 2 दर्शनोपयोग काम कर रहे हैं
मगर आत्मा में एक समय पर चारों में से एक ही उपयोग काम करता है
चाहे वो मति-ज्ञानोपयोग, श्रुत-ज्ञानोपयोग हो या चक्षु-दर्शनोपयोग, अचक्षु-दर्शनोपयोग
यह हर अन्तर्मुहूर्त में बदलता है और बिना थके, रुके अपना निरन्तर काम करता रहता है
इससे आत्मा हर समय जानने देखने की प्रक्रिया करता है
चैतन्य आत्मा में कर्म के क्षयोपशम और लब्धियों के अनुसार जीव के उपयोग की परिणति बनती है