श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 07

सूत्र - 07,08

Description

मध्यलोक को तिर्यकलोक भी कहते हैं। प्रथम द्वीप-समुद्र के नाम 'जम्बूद्वीप' और 'लवणसमुद्र'अन्तिम द्वीप-समुद्र 'स्वयंभूरमण द्वीप' और 'स्वयंभूरमण समुद्र'ये सभी द्वीप-समुद्र शुभ नाम वाले हैं। मध्यलोक का उर्ध्व विस्तारप्रथम द्वीप का नाम 'जम्बूद्वीप' होने का कारण जम्बू-वृक्ष का स्वरूप सभी द्वीप-समुद्र क्रमशः दुगुने-दुगुने विस्तार वाले हैं। विभिन्न द्वीप-समुद्रों के नामजम्बूद्वीप आदि शुभ नाम वाले द्वीप-समुद्र अनेक-अनेक हैं 'असंख्यात' अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी के जानने में आता हैश्रुतज्ञान परोक्ष रूप से 'असंख्यात' को जानता हैपल्य का प्रमाण

Sutra

जम्बूद्वीप-लवणोदादयःशुभनामानो द्वीप-समुद्राः॥07॥

द्विर्द्विर्विष्कम्भाः पूर्व-पूर्व परिक्षेपिणो वलयाकृतयः॥08॥

Watch Class 07

WINNERS

Day 07

03th October, 2022

किरण जैन

हांसी

WIINNER- 1

Sushilathote

Ashta

WINNER-2

शोभा जैन

वारासिवनी बालाघाट

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

धातकीखण्ड द्वीप के पहले क्या आएगा?

क्षीरवर समुद्र

लवण समुद्र*

कालोदधि समुद्र

पुष्करवर समुद्र

Abhyas (Practice Paper):

https://forms.gle/ezfQqcyVoXb2v4PBA

Summary


  1. तीन लोकों को जानने के क्रम में अब तक हमने अधोलोक के बारे में जाना

  2. सूत्र 7 में मध्यलोक के बारे में जाना

    • यहाँ मुख्य रूप से मनुष्यों और तिर्यंचों का वास होता है

    • और यह असंख्यात द्वीप-समुद्रों से भरा हुआ है जिनका विस्तार तिर्यक यानि तिरछे रूप में रहता है

    • इसलिए इसे तिर्यकलोक भी कहते हैं


  1. प्रथम द्वीप-समुद्र का नाम 'जम्बूद्वीप' और 'लवणसमुद्र' है

  2. और अन्तिम द्वीप-समुद्र का नाम ‘स्वयंभूरमण द्वीप’ और ‘स्वयंभूरमण समुद्र’ है

  3. मध्यलोक की ऊँचाई एक लाख योजन है

  4. सुमेरू पर्वत और चाँद-सितारे, सूर्य, नक्षत्र आदि सभी मध्यलोक में ही आते हैं

  5. ऊर्ध्वलोक हमको नहीं दिखता

  6. जम्बूद्वीप सबसे प्रमुख है और बीचों-बीच में है

  7. इसका नाम इसके मध्य में स्थित उत्तर कुरु नाम की भोगभूमि में स्थित जम्बू-वृक्ष के नाम पर है

    • यह एक अनादिनिधन अकृत्रिम वृक्ष है जो रत्नों का बना है

    • यह वनस्पतिकायिक न होकर पृथ्वीकायिक होता है

    • जम्बू-वृक्ष पर और इसके परिवार वृक्षों पर अकृत्रिम चैत्यालय होते हैं

    • और शाखाओं पर देवादि वास करते हैं


  1. सूत्र 8 में हमने जाना कि असंख्यात द्वीप-समुद्र क्रमशः दोगुना-दोगुना विस्तार वाले हैं

  2. विभिन्न द्वीप-समुद्रों के नाम हैं

    • जम्बूद्वीप और उससे दुगनी चौड़ाई वाला लवणसमुद्र

    • उससे दुगना धातकीखण्ड द्वीप और उससे दुगना कालोदधि समुद्र

    • फिर पुष्करवर द्वीप और पुष्करसमुद्र

    • फिर वारुणी वर द्वीप और वारुणी वर समुद्र

    • क्षीरवर द्वीप और क्षीरवर समुद्र

    • घृतवर द्वीप और घृतवर समुद्र

    • इक्षुवर द्वीप और इक्षुवर समुद्र

    • आठवाँ नन्दीश्वर द्वीप और नन्दीश्वर समुद्र

    • उसके बाद अरुणवर द्वीप और अरुणवर समुद्र

    • अरुणाभास द्वीप और अरुणाभासवर समुद्र

    • कुण्डलवर द्वीप और कुण्डलवर समुद्र

    • शंखवर द्वीप और शंखवर समुद्र

    • और तेरहवाँ रूचकवर द्वीप फिर रूचकवर समुद्र


  1. सभी द्वीप-समुद्र जम्बूद्वीप आदि शुभ नाम वाले होते हैं

    • चूँकि नाम संख्यात होते हैं और द्वीप-समुद्र असंख्यात

    • एक ही नाम के अनेकों द्वीप-समुद्र होते हैं

    • यानि जम्बूद्वीप एक नहीं है, अनेकों हैं

    • यहाँ जो जम्बूद्वीप बताया गया है वह पहले नम्बर का है


  1. असंख्यात संख्या सिर्फ अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी के जानने में आती है

    • केवलज्ञानियों को यह प्रत्यक्ष दिखता है

    • मतिज्ञान और श्रुतज्ञानी भी इसे गिनती के रूप में या गणित के रूप में जान लेते हैं


  1. त्रिलोकसार आदि ग्रन्थों में इन असंख्यात द्वीप-समुद्रों को नापने का तरीका भी बताया गया है

  2. पल्य और असंख्यात जैसी संख्याओं को नापने के लिए कुण्ड बनाए जाते हैं

    • जैसे शलाकाकुण्ड, महाशलाका, प्रतिशलाका

    • और उन कुण्डों में रोम भरे जाते हैं

    • उन रोमों को जब खाली किया जाता है, तो उसके माध्यम से पल्य बनता है

    • और उसके बाद में सागर की उपमा आती है

    • उससे इन असंख्यात द्वीप और समुद्रों की भी नाप की जाती है


  1. असंख्यात, यह संख्या अनन्त नहीं है

    • संख्यात मतलब numerable, जिसको हम count कर सकते हैं

    • और असंख्यात मतलब innumerable, जिसको हम count नहीं कर सकते लेकिन वह count होती है