श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 14
सूत्र - 08,09,10,11
सूत्र - 08,09,10,11
जम्बूद्वीप संबंधी सातों क्षेत्रों के नामों की सार्थकता। जम्बूद्वीप संबंधी छह कुलाचलों के नामों की सार्थकता। नक्शे में विदेह क्षेत्र संबंधी भोगभूमियों देवकुरु और उत्तरकुरु का वर्णन। नक्शे में भरतक्षेत्र का वर्णन। विजयार्ध पर्वत के नाम की सार्थकता:। नक्शे में ढाई द्वीप का वर्णन। नक्शे में पंचमेरू का वर्णन। ढाई द्वीप में स्थित पाँच मेरू एवं पाँच-पाँच भरतक्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र। ढाई द्वीप में स्थित 170 शाश्वत कर्मभूमियों का वर्णन। मध्यलोक के 458 अकृत्रिम जिनालयों का वर्णन। अस्सी वक्षार पर्वत के जिनालय। प्रत्येक गजदंत पर एक जिनालय होता है। रूचकवर पर्वत के चार जिनालय। कुण्डलवर पर्वत के चार जिनालय। मानुषोत्तर पर्वत पर स्थित चार जिनालय। 30 कुलाचल पर्वत पर 30 जिनालय। 4 इष्वाकार पर्वत के 4 जिनालय। 5 देवकुरु-5 उत्तरकुरु संबंधी जिनालय। नंदीश्वर द्वीप में स्थित 52 जिनालय। पंचमेरू के 80 जिनालय।
द्वि-र्द्वि-र्विष्कम्भाःपूर्व-पूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥08॥
तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजन-शत-सहस्र विष्कम्भो जम्बूद्वीप:॥09॥
भरत-हैमवत-हरि-विदेह-रम्यक-हैरण्यवतैरावतवर्षा: क्षेत्राणि॥10॥
तद्विभाजिन:पूर्वापरायता हिमवन-महाहिमवन-निषध-नील-रुक्मि-शिखरिणो वर्षधर पर्वता:।।११।।
Trishla Jain
Delhi
WIINNER- 1
Kalpana
Pune
WINNER-2
Amit kumar jain
Kalka Haryana
WINNER-3
निम्न में से कौनसा नाम विदेह क्षेत्र की भोगभूमि का है?
पूर्वकुरु
पश्चिमकुरु
उत्तरकुरु*
दक्षिणकुरु
हमने जाना कि जम्बूद्वीप के प्रत्येक क्षेत्र और पर्वत का नाम सार्थक है
भरत क्षेत्र - चक्रवर्ती राजा भरत के नाम पर है
हैमवत क्षेत्र - हिमवान पर्वत के निकट दोनों ओर से घिरा है
हरि क्षेत्र - सिंह के समान शुक्ल वर्ण हैं और यहाँ के लोगों का रंग भी शुक्ल होता है
विदेह क्षेत्र - में शाश्वत कर्मभूमि हैं और देह से मुक्त होने उपक्रम हमेशा चलता रहता है
रम्यक क्षेत्र - एक रमणीय स्थान है
हैरण्यवत क्षेत्र - में अच्छे हैरण्य यानि स्वर्ण के समान रंग वाले लोग रहते हैं
ऐरावत क्षेत्र - चक्रवर्ती राजा ऐरावत के नाम पर है
पर्वतों में
हिमवन - हिम से घिरा हुआ है
महाहिमवान - पर ज्यादा बर्फ होती है
निषध- पर आकर के देव-देवियाँ क्रीड़ा करते हैं
नील - मयूर के कंठ के समान नील वर्ण का होता है
रुक्मि - चाँदी की तरह सफेद होता है
शिखरी- पर बहुत सारे शिखर और कूट बने होते हैं
विदेह क्षेत्रों में दक्षिण दिशा में देवकुरु और उत्तर में उत्तरकुरु भोगभूमि हैं
उत्तरकुरु क्षेत्र के right में जम्बूवृक्ष होता है
और देवकुरु के left में शाल्मली चैत्य वृक्ष
जम्बूद्वीप का नाम जम्बूवृक्ष के नाम पर है
धनुषाकार भरतक्षेत्र के बीच में विजयार्ध पर्वत एक line जैसा है
उत्तर-दक्षिण में गंगा और सिंधु नदियाँ इस क्षेत्र को छह खण्डों में विभाजित करती हैं
तीन विजयार्ध पर्वत से ऊपर, तीन नीचे
नीचे का बीच वाला खंड आर्यखण्ड है
शेष पाँच म्लेच्छखण्ड हैं
विजयार्ध पर्वत की बड़ी-बड़ी गुफाएँ और कपाटों को केवल चक्रवर्ती खोल पाता है
और वह भी छह महीने वहीं बैठकर धुएँ आदि शांत होने का इंतजार करता है
इसके साथ ही उसके आधी विजय हो जाती है, अतः विजय+अर्ध नाम सार्थक है
आर्यखण्ड के ऊपर म्लेच्छखण्ड के बीचों-बीच में वृषभाचल पर्वत जहाँ छह खण्डों का विजेता चक्रवर्ती अपना नाम लिखता है
ढाई द्वीप में जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्ड द्वीप, कालोदधि समुद्र और पुष्करार्ध द्वीप आते हैं
इसमें कुल पाँच मेरु पर्वत एक line में हैं
जम्बूद्वीप के center में सुमेरू
एक-एक धातकीखंड और पुष्करार्ध द्वीप में left और right में
इन पाँचों मेरुओं के चारों ओर सुमेरू जैसी ही व्यवस्था है
अतः यहाँ पाँच भरत और पाँच ऐरावत की दस कर्मभूमियाँ हैं
बत्तीस गुना पाँच - 160 विदेह क्षेत्र की कर्मभूमियाँ हैं
कुल 170 कर्मभूमियाँ हैं
इन सभी कर्मभूमियों में तीर्थंकर अजितनाथ के समय पर तीर्थंकर विद्यमान थे
हमने मध्यलोक के अकृत्रिम जिनालयों को भी नक़्शे से जाना
विदेह क्षेत्र की आठ नगरियों का विभाजन चार वक्षार पर्वत और तीन विभंग नदियाँ से होता है
अतः 32 नगरी के 16 वक्षार पर्वत
और पाँच मेरू संबंधी 80 पर्वत
अतः कुल 80 वक्षार पर्वत सम्बन्धी जिनालय
प्रत्येक गजदंत के सिद्धायतन कूट पर स्थित एक जिनालय होता है
एक मेरू संबंधी चार गजदंत
तो पाँच मेरू संबंधी 20 गजदंत
अतः 20 गजदंत जिनालय
तेरहवें नम्बर के रुचकवर पर्वत के चार दिशाओं में 4 जिनालय
ग्यारहवें नम्बर के कुण्डलवर द्वीप के चार दिशाओं में चार जिनालय
मानुषोत्तर पर्वत ढाई द्वीप और बाकी के सभी द्वीप-समुद्र को विभाजन करता है
उसके ऊपर चार दिशाओं में 4 जिनालय
एक मेरू संबंधी छह कुलाचल पर्वतों पर एक-एक जिनालय
अतः पाँच मेरू संबंधी 30 जिनालय
इष्वाकार पर्वतों के माध्यम से धातकीखण्ड द्वीप का विभाजन होता है
4 इष्वाकार पर्वतों के 4 जिनालय
5 देवकुरु-5 उत्तरकुरु में वृक्षों के 10 जिनालय
आठवें नंदीश्वर द्वीप में स्थित 52 जिनालय हैं
पाँच मेरू संबंधी 80 जिनालय
इस तरह कुल चार सौ अठ्ठावन जिनालय