श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 10
सूत्र - 12
सूत्र - 12
ज्योतिषी देवों का वर्णन। आकाश में दिखाई देने प्रकाशित चीजें ज्योतिषी देवों के विमान हैं। ज्योतिषी देवों का निवास मध्यलोक में है। एक राजू प्रमाण तिर्यक रूप फैले पूरे मध्यलोक के असंख्यात द्वीप-समुद्रों में ज्योतिषी देवों का अवस्थान/निवास हैं। ज्योतिष लोक के बारे में विज्ञान की अनिश्चितता(uncertainty)। ज्योतिष लोक के बारे में जैन ग्रन्थों की सटीक गणितीय व्याख्याएँ। प्रामाणिक बातों को मानना ही, सम्यग्ज्ञान है। चित्रा भूमि से सात सौ नब्बे (790) योजन ऊपर तारों के विमान हैं, जो ज्योतिष देवों के विमानों में सबसे नीचे हैं। एक महायोजन = दो हजार(2000) कोश। चित्रा भूमि से ज्योतिष्क देवों के विमानों की दूरी। जैन दर्शन के अनुसार, चन्द्रमा के विमान की चित्रा भूमि से दूरी छप्पन लाख किलोमीटर है।
ज्योतिष्काः सूर्याचन्द्रमसौ-ग्रह-नक्षत्र-प्रकीर्णक-तारकाश्च।।12।।
Asha. Singhai.
Panager
WINNER-1
मंजू जैन
भोपाल
WINNER-2
Naveen Jain
Jaipur
WINNER-3
चित्रा भूमि से सूर्य के विमान कितनी दूरी पर हैं?
710 योजन
790 योजन
800 योजन*
880 योजन
सूत्र बारह - ज्योतिष्काः सूर्याचन्द्रमसौ-ग्रह-नक्षत्र-प्रकीर्णक-तारकाश्च से हमने जाना कि आकाश में दिखाई देने वाली प्रकाशित चीजें ज्योतिषी देवों के विमान होती हैं
सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे, ये सभी ज्योतिषी देव होते हैं
'ज्योतिष' मतलब प्रकाश, आभा से युक्त
इन देवों के विमान विशेष आभा, प्रकाश वाले होते हैं
इसलिए इनका ज्योतिष्क नाम सार्थक है
इनके विमान और रहने का स्थान आकाश में ज्योतिष मण्डल में होता है
जो सूर्य-चन्द्रमा की आकृति हमें दिखाई देती है,
वह इन ज्योतिषी देवों के विमानों का बाह्य आकार है
ये विमान किसी गेन्दनुमा गोल चीज को बीचों-बीच से दो भाग करने पर प्राप्त अर्धगोलाकार जैसी आकृति के होते हैं
इनका निचला surface हम लोगों को दिखाई देता है
लेकिन ऊपरी surface पर उन देवों के बड़े-बड़े आवास बने हुए रहते हैं
ये विमान एक लाख योजन के सुमेरु पर्वत की अपेक्षा बहुत नीचे हैं
और इसी अपेक्षा से इनका अवस्थान मध्यलोक में है
यदि हम केवल अधोलोक और उर्ध्वलोक मानें तो यह उर्ध्वलोक में आते हैं
ये असंख्यात संख्या में होते हैं
एक राजू विस्तार वाले मध्यलोक के असंख्यात द्वीप-समुद्रों में
इन ज्योतिषी देवों के विमान फैले हुए हैं
और वहाँ प्रकाश करते हैं
हमने देखा कि ज्योतिष लोक के बारे में विज्ञान अनिश्चित है
और हम नए नए ग्रहों आदि की खोज के news सुनते रहते हैं
वहीं जैन ग्रन्थों में इसकी सटीक गणितीय व्याख्याएँ हैं
असंख्यात द्वीप-समुद्रों का भी पूरा गणित है
हर चन्द्रमा के, सूर्य के विमानों के आकार का भी गणित है
और उन असंख्यातों की संख्या का भी पूरा वर्णन है
हमने देखा कि प्रामाणिक बातों को मानना ही सम्यग्ज्ञान है
वैज्ञानिक अपने अनुमान से कुछ भी बोल देते हैं तो वह विज्ञान तो हो सकता है
लेकिन सम्यग्ज्ञान नहीं होता
विश्वास करने के लिए भी अकाट्य हेतु/logic दिए जाते हैं
जो बाद में भी किसी तरीके से differ नहीं करते
पहले कुछ कहा, बाद में कुछ कहने लगे
इससे पता चलता है कि science में certainty के साथ में कुछ होता ही नहीं है
ज्योतिषी विमानों की ऊँचाई समतल स्थान से नापते हैं
यह सम स्थान रत्नप्रभा पृथ्वी के चित्रा भूमि का सम पृथ्वी भाग है
आचार्यों में बताया है कि सबसे पहले तारों के विमान सम भूमि से सात सौ नब्बें योजन ऊपर आते हैं
चूँकि एक महायोजन दो हजार कोश का होता है
यह लगभग इकतीस लाख साठ हज़ार miles होता है
या पचास लाख छप्पन हजार किलोमीटर
चित्रा भूमि से सात सौ नब्बे योजन ऊपर ताराओं का ज्योतिष मण्डल प्रारम्भ होता है
उससे दस योजन ऊपर सूर्य के विमान मिलेंगे यानि आठ सौ योजन ऊपर
उसके अस्सी योजन ऊपर चन्द्रमा के विमान मिलेंगे यानि आठ सौ अस्सी योजन ऊपर
अलग अलग देशों के विज्ञान के अनुसार चन्द्रमा की दूरी तीन लाख, पाँच लाख, बारह लाख या तेरह लाख मानी जाते हैं
जबकि जैन गणित अनुसार यह छप्पन (56) लाख 32 (हजार) किलोमीटर होती है