श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 51
सूत्र - 24
सूत्र - 24
नाम-प्रत्ययाःसर्वतो योगविशेषात् सूक्ष्मैक क्षेत्रावगाहस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्त प्रदेशाः।।8.24।।
23,July 2024
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निम्न में से किस जीव में वचनयोग नही होगा?
एकेन्द्रिय जीव में*
तीन इंद्रिय जीव में
असंज्ञी पंचेंद्रिय जीव में
संज्ञी पंचेंद्रिय जीव में
प्रदेश बन्ध के प्रकरण में हमने, इसके विशेषण जाने-
पहला, नाम-प्रत्यया यानि नाम के कारण प्रदेश बन्ध होता है।
दूसरा, सर्वत: अर्थात् बन्ध हर भव में चलता रहता है।
तीसरा, योग-विशेषात् यानि
योगों की विशेषता से इसमें विशेषता आती है,
योग अर्थात् हमारे मन, वचन और काय की प्रवृत्ति।
एकेंद्रिय में केवल काययोग होता है,
दो इन्द्रिय से वचनयोग शुरू होता है,
और संज्ञी पंचेन्द्रिय में मनोयोग भी होता है।
जितने-जितने इन्द्रिय, मन आदि बढ़ते जाएँगे
उतनी-उतनी योगों की शक्ति बढ़ने से अधिक बन्ध होगा।
जैसे हम जितने bulb, cooler, fridge, use करते हैं
उतना ही बिजली का bill बढ़ता है।
इसी तरह एकेंद्रिय के कम बन्ध या bill आता है
और संज्ञी पंचेन्द्रिय में अधिक।
जिसकी शक्ति जितनी अधिक, उसके योग उतने ही strong होंगे।
क्योंकि शक्ति आत्मा में ही आती है।
और योग संहनन के ऊपर depend करते हैं
उससे योगों की शक्ति और बढ़ जाती है।
योगों के अनुसार कर्मों के amount निरंतर घटते-बढ़ते हैं-
योग अस्थिर और चंचल होने से अधिक,
और शान्त होने से कम बन्ध होता है।
मन-वचन-काय की एकाग्रता से योग शांत होते हैं।
इसलिए हमें युवावस्था में एकाग्रता सीख लेनी चाहिए-
क्योंकि बुढ़ापे में शरीर कांपते रहने से,
काय और मनोयोग बढ़ जाने से,
एकाग्रता नहीं होती।
बिना एकाग्रता रखे हम चंचलता
और प्रदेश बन्ध की संख्या पर limit नहीं लगा सकते
योग करके हम अपने योगों को शान्त करते हैं
जहाँ अर्हं ध्यान योग में ध्यान से योग control होते हैं
वहीं अन्य योग हमारे योगों को और चंचल बनाते हैं।
हमने जाना-
कर्म वर्गणाऍं सूक्ष्म होती हैं।
हमें दिखती नहीं,
प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय नहीं बनती।
प्रमाण अर्थात् ज्ञान दो प्रकार के होते हैं-
प्रत्यक्ष और परोक्ष
अनुमान प्रमाण परोक्ष होता है। 2.24
प्रत्यक्ष न दिखने वाली चीजें अनुमान प्रमाण से जानी जातीं हैं।
अनुमान ज्ञान यानि कार्य-कारण सम्बन्ध-
यह कारण होगा, तभी यह कार्य होगा।
हम अनुभव और तर्क से समझ सकते हैं कि
हर चीज़ का कोई-न-कोई कारण अवश्य होता है।
जैसे हम मनुष्य ही क्यों बने
इस प्रश्न पर science मौन है।
इसका अदृश्य कारण कर्म का उदय है।
कर्म फल के कारण जीव- मनुष्य, पशु आदि बनता है।
हर कार्य का कारण कर्म होता है।
कर्म से ही हमारे जीवन में सब चीज़ें चलती हैं,
और जीवन की प्रक्रिया बनी रहती है।
कर्म परमाणु एक-क्षेत्रावगाह स्थित होते हैं-
एक क्षेत्र अर्थात् आत्मा के स्थानों पर ही
कर्म परमाणु स्थित हैं, उनका अवगाह है।
ऐसा कोई स्थान नहीं-
जहाँ कर्म परमाणु आत्मा के साथ न हो।
जो कर्म-परमाणु जहाँ हैं,
वहीं स्थित रहते हैं।
जहाँ स्थित रहते हैं, वहीं-वहीं पर divert होकर,
आत्मा में बन्धते हैं।
हम दुनिया में फैली हुई वर्गणाओं को नहीं खींचते।
कर्म का बंध सर्वात्म-प्रदेशेषु यानि
आत्मा के सभी प्रदेशों में होता है।
ऐसा नहीं कि हाथ हिलाने से
केवल हाथ के प्रदेशों में ही कर्म-बन्ध होगा,
या उसमें ज्यादा कर्म-परमाणु आएँगे।
वे पूरे आत्मा के प्रदेशों में जाऍंगे।
आत्मा के कोई ऐसे प्रदेश नहीं-,
जो निश्चल हो,
जहाँ कोई गति न हो,
या जहाँ प्रदेश बंध न हो रहा हो।
बंध ‘अनन्तानन्त प्रदेशा:’ होते हैं-
यानि संख्यात, असंख्यात नहीं,
अनन्तानन्त कर्म-परमाणु हर समय आत्मा में बंधते रहते हैं।
एक समय में बंधने वाले कर्म समय प्रबद्ध कहलाते हैं।
समय प्रबद्ध के अनुसार, आत्मा में कर्मबंध होता रहता है।
बंधकर वे आठ रूपों में divide होते हैं।
सबमें प्रदेशों की amount अलग-अलग पहुँचती है।
वे अपनी स्थिति के अनुसार रहते हैं।
और जब वे अपनी स्थिति पूरी करके फल देते हैं
तब हमें उसका अनुभव होता है।