श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 12
सूत्र - 07
सूत्र - 07
बौद्ध मत- मिथ्या मत। बौद्ध मत केवल अनित्य भावना पर आधारित। अशरण भावना। कोरोना काल में अशरण भावना ही मुख्य। संसार भावना। संसार भावना से संसार का स्वरूप समझ आता है।
अनित्याशरण-संसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्रव- संवर-निर्जरा-लोक-बोधिदुर्लभ-धर्मस्वाख्यातत्त्वानुचिन्तन-मनुप्रेक्षाः॥9.07॥
17, oct 2024
WINNER-1
WINNER-2
WINNER-3
अशरण भावना के बाद कौनसी भावना आती है?
अनित्य भावना
संसार भावना*
अन्यत्व भावना
एकत्व भावना
हमने आज कि अनुप्रेक्षाओं में सिर्फ ज्ञान या पाठ करना ही नहीं,
बार-बार चिन्तन करना उपयोगी होता है।
आज राजा, राणा या छत्रपति तो हैं नहीं
इसलिए इनके चिन्तन से हमें कुछ नहीं मिलेगा।
हमें उसका चिन्तन करना चाहिए
जो हमारे पास हो,
जिससे हम जुड़ते हैं।
हमने जाना कि बौद्ध मत अनित्य भावना पर आधारित है।
उनके लिए संसार में सब अनित्य है,
हमारे अन्दर आने वाला विचार भी अनित्य है।
वे बस मन को मानते हैं
और मन में उठने वाली विचारों की तरंगों पर ही ध्यान लगवाते हैं-
“जो भी विचार आए उसे अणिंचम्, अणिंचम् करके
छोड़ते जाओ।”
यह विचार एक दृष्टिकोण से तो ठीक है
क्योंकि अनित्य विचार tension release कर देता है
किन्तु आत्मा को नहीं मानने,
और एकान्तिकता के कारण
बौद्ध मत मिथ्या है।
जब हम अपने विचारों से ही परेशान होते हैं
उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाते,
भीतर ही भीतर पीड़ित होते हैं,
तब हमें ध्याना चाहिए कि-
सब क्षणिक है,
कुछ भी हमेशा रहने वाला नहीं है,
जो पहले आया था वह चला गया,
अब कुछ और आ रहा है,
यह भी चला जाएगा।
इस भावना से हम कभी परेशान नहीं होंगे।
बौद्ध मत एकमात्र इसी भावना पर आधारित है।
अनेकान्त दर्शन में बताई गई एक-एक बात को लेकर
लोगों ने एक-एक धर्म,
एक-एक पन्थ बनाया हुआ है
और अपने स्वाध्याय और चिन्तन की कमी के कारण
अपने पास सब कुछ होते हुए भी
हम इधर-उधर देखते हैं।
अनित्य के बाद हमने अशरण भावना जानी-
शरण दो तरह की होती हैं-
लौकिक
और अलौकिक
हमारा घर-परिवार लौकिक शरण है
जिनके साथ हम सुरक्षित महसूस करते हैं।
और जब ये शरण हिलती है
तो हम अलौकिक शरण
यानि साधु-संत
और भगवान की शरण में जाते हैं
किन्तु उसमें शान्ति मिल जाए- यह जरुरी नहीं,
क्योंकि हमारा विश्वास इस शरण में होना चाहिए
जो समय और ज्ञान के साथ
धैर्य से आता है
अधीर होकर उसे भी छोड़ने पर-
अन्तिम शरण-अपना ज्ञान बचता है।
अपनी ज्ञान-दर्शन रूप आत्मा की शरण में रह कर
हम बाहरी शरण से अपना मोह छुड़ा सकते हैं।
शान्ति उसी से मिलती है
सबके सामने अपनी व्यथा सुनाने से नहीं।
अशरण भावना सबसे अधिक मृत्यु से जुडी हुई है
हम सभी इस काल-राक्षस के मुँह में दबे हुए हैं,
इससे कोई किसी को नहीं बचा पाता।
हम घर बन्द कर लें,
सब सुरक्षित कर लें,
फिर भी मृत्यु ले जाती है
जैसे corona के समय- कभी बाहर नहीं निकलने वालों के,
घर में भी corona घुस गया
और घर के सदस्यों को ले गया।
ऐसे वियोगों के दुःख से खुद को बचाने के लिए हम विचारें-
जो गया हम उसकी शरण नहीं थे,
हमारी कोई शरण नहीं है।
हमें अपनी अप्पा या परमप्पा ही शरण है।
तीसरी संसार भावना में हमने जाना
चारों गतियों में अनन्त जीव हैं,
सब संसार में परिभ्रमण कर रहे हैं।
हम एक पर्याय में जन्म लेते हैं,
उसमें वृद्धि करते हैं,
फिर मरकर,
दूसरी पर्याय में जन्म ले लेते हैं।
अनादि काल से ऐसे ही घूम रहे हैं।
तीन लोक में कोई ऐसी जगह नहीं
जहाँ हमने जन्म न लिया हो,
मरे न हों।
इन्हीं चारों गतियों में ही घूमते रहते हैं।
इस चिन्तन से हम-
अपनी लालसाओं को नियन्त्रित कर पाएँगे।
बच्चों में कुछ कर दिखाने की
कुछ बनने की ज़िद रहती है।
उनके दिमाग में दूसरे संसार की भावना इतनी प्रबल होती है कि
इस संसार भावना का विचार नहीं आता
लेकिन job आदि लग जाने के बाद उनके तेवर ठण्डे पड़ते जाते हैं
कि इससे ज्यादा नहीं हो पायेगा