श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 14
सूत्र - 22, 23
सूत्र - 22, 23
गुण प्रत्यय किसे कहते हैं? मनुष्य और तिर्यंच में अवधिज्ञान? अवधिज्ञान की विशेषताएँ! मन, वचन, काय की सरल प्रवृत्तियों को जानने वाला ज्ञान!
क्षयोपशमनिमित्तः षड् विकल्प: शेषाणाम् ।।1.22।।
ऋजुविपुलमती मन: पर्यय: ।।1.23।।
Rajendra Kumar Jain
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Sudesh Jain
Dekhi
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Sarojpatni
Mumbai
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शास्त्रों में किस ज्ञान का दूसरा नाम 'विभंग ज्ञान' है?
मिथ्या मति ज्ञान
मिथ्या श्रुत ज्ञान
मिथ्या मनःपर्यय ज्ञान
मिथ्या अवधि ज्ञान *
हमने जाना की सभी ज्ञानों में हमारे लिए श्रुतज्ञान के बारे में जानना महत्वपूर्ण है
श्रुतज्ञान दो प्रकार का होता है
पहला अक्षरात्मक अर्थात जो ज्ञान सुनकर होता है
वह सिर्फ पंचेन्द्रिय संज्ञी में ही होता है
वह हमारे लिए हितकारी है
और दूसरा अनक्षरात्मक अर्थात जो ज्ञान बिना सुने अपने आप होता है
यह एक इंद्री से संघी पंचेन्द्रिय तक सभी में होता है
हमने जाना भाव श्रुतज्ञान के क्षयोपशम से ही हम द्रव्य श्रुत को समझ सकते हैं
भाव श्रुतज्ञान 20 प्रकार के हैं
श्रुतज्ञान के चिन्तन से धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान होते हैं
सूत्र 21 से हमने अवधिज्ञान के प्रकरण को समझा
अवधिज्ञान के दो भेद हैं
पहला भव प्रत्यय अर्थात जिसमे भव या आयु कर्म का उदय ही कारण है
यह देव और नारकी के नियामक होता है
और दूसरा गुण प्रत्यय अर्थात जिसमें क्षयोपशम और सम्यग्दर्शन, सम्यग्चारित्र आदि गुण निमित्त होते हैं
यह मनुष्य और त्रियंच के होता है
इनमे क्षयोपशम तो सामान्य निमित्त है; सम्यग्दर्शन आदि गुण भी जरूरी हैं
यहाँ अवधिज्ञान का आशय सम्यग्ज्ञान से है मिथ्या ज्ञान से नहीं
मिथ्या अवधिज्ञान को विभंग ज्ञान कहते हैं
अवधिज्ञान के 6 भेद होते हैं
अनुगामी - जो हमारे साथ अन्य क्षेत्र, भव में भी चला जाए
अननुगामी- जो इस क्षेत्र में तो है मगर दूसरे क्षेत्रों, भवों में साथ न जाये; छूट जाये
वर्धमान अर्थात बढता हुआ जो गुणों की वृद्धि से बढ़ता चला जाता है
हीयमान अर्थात घटता हुआ जो संकलेश परिणामों के कारण से घटता जाये
अवस्थित- जैसा प्राप्त हुआ है, वैसा ही बना रहना
अनअवस्थित- जो विशुद्धि और संक्लेश के साथ बढ़-घट जाए
अवधिज्ञान देशावधि, परमावधि और सर्वावधि तीन प्रकार का होता है
देशावधि = चारों गतियों में हो सकता है
परमावधि और सर्वावधि केवल चरम शरीरी, उसी भव में मोक्ष जाने वाले मुनि महाराज को ही होगा
देव, नारकी, तीर्थंकर को अवधि ज्ञान सर्वाङ्ग से होता है
अन्य महापुरुषों को नाभि से ऊपर शुभ चिन्ह शंखादि पर अवधिज्ञान लगाना पड़ेगा
मिथ्या दृष्टि के चिन्ह नाभि से नीचे होते हैं
मन:पर्यय ज्ञान, दूसरे के मन में स्थित पदार्थ को, चिंतन को जानेगा
यह दो प्रकार का होता है:
ऋजुमति ज्ञान - दूसरे के मन में चल रहे सरल चिन्तन को जानेगा
वाहन विपुलमति ज्ञान कुटिल और सरल दोनों चिन्तन को जानेगा
ऋजुमति ज्ञान ऋजु मन, ऋजु वचन, ऋजु काय तीन प्रकार का होता है
विपुलमति ज्ञान ऋजु मन-वचन-काय की प्रवृत्ति, कुटिल मन-वचन-काय की प्रवृत्ति से छः प्रकार का होता है